2018 से नियुक्त सभी उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में से लगभग 715 में से 551 उच्च कही जाने वाली जातियों से हैं। इसकी तुलना में लगभग 22 अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी के हैं, 16 अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी के हैं, 89 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के हैं और 37 अल्पसंख्यक हैं।
लेखन – सुचित्रा
संसद में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि 2018 से उच्च न्यायालयों में 77 % जज समान्य श्रेणी, 3 % अनुसूचित जाति, 2 % अनुसूचित जनजाति और 12 % अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं। उन्होंने बताया कि भारत के संविधान में उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति के लिए आरक्षण का प्रवधान नहीं है। सरकार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के उम्मीदवारों पर विचार करने का अनुरोध कर रही है। यह बात उन्होंने 20 मार्च 2025 को संसद में मनोज झा के सवाल के जवाब में कही थी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संसद में उच्च न्यायपालिका में विविधिता को लेकर जनता दल के सांसद मनोज झा ने सवाल रखा था। मनोज झा ने पिछले दिनों में कहा था कि उच्च न्यायालयों / High Courts में एससी / SC, 16 एसटी / ST, 89 ओबीसी / OBC और अल्पसंख्यक Minority group और महिलाओं का प्रतिन्धित्व कम हो गया है। हाल के वर्षों में जजों की नियुक्ति में इन वर्गों से जजों में कमी आई है। ऐसे में सरकार सुप्रीम कोर्ट / Supreme Courtसे जजों की नियक्तियों की प्रक्रिया पर बात करेगी तो क्या यह सम्भव होगा?
7 सालों में उच्च न्यायालयों में सबसे ज्यादा जज समान्य श्रेणी से
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसका जवाब देते हुए जानकारी दी कि उच्च न्यायलयों में जजों के पदों की नियुक्ति की जिम्मेदारी के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की होती हैं। उन्होंने बताया कि 2018 से नियुक्त सभी उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में से लगभग 715 में से 551 उच्च कही जाने वाली जातियों से हैं। इसकी तुलना में लगभग 22 अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी के हैं, 16 अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी के हैं, 89 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के हैं और 37 अल्पसंख्यक हैं।
संविधान में जजों की नियक्ति के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं
लालनटोप की रिपोर्ट में बताया गया कि अर्जुन राम मेघवाल ने लिखित जवाब में कहा सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति सविधान के अनुछेद 124, 217 और 224 के तहत की जाती है। इसका मतलब है कि जो किसी भी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं करते हैं।
कॉलेजियम प्रणाली से होता है जजों का चयन
भारत के संविधान अनुछेद 124 (2) में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के जजों से सलाह और बातचीत कर के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट जज की नियुक्ति करेंगे। इसके लिए कॉलेजियम बनाया जाता है।
उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए आरक्षण पर विचार
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा “सरकार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध कर रही है कि न्यायाधीशों (जजों) की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर उचित विचार किया जाए।”
2022 में भी विचार करने के लिए कहा था
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में भी इसी तरह की बात सामने आई थी जब राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में इसी तरह का जवाब दिया गया था। यह जवाब पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजेजू ने दिया था और कहा था कि “हम उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध कर रहे हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर उचित विचार किया जाए ताकि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता सुनिश्चित हो सके।”
आरक्षण को लेकर अकसर विवाद होता है इसे ख़त्म करने को लेकर या तो इसकी मांग को लेकर, पर क्या वास्तव में इसका लाभ उन्हें मिल रहा है? आज भी कई शैक्षणिक संस्थानों में या फिर सरकारी पदों पर जितनी उनके लिए सीट आरक्षित है उस हिसाब से वो सीट भरी नहीं जाती। आज भी अधिकतर ऊँचे पदों पर उच्च जाति कही जाने वाले ही लोग उन पदों पर नियुक्त हैं।
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