खबर लहरिया खेती जड़ी बूटी के नाम के दाम तो मिलते है, पर काम के नहीं

जड़ी बूटी के नाम के दाम तो मिलते है, पर काम के नहीं

तुलसी, अदरक,अश्वगंधा की चाय मिल जाय तो मज़ा आ जाए जैसे टैग लाइन आज कल जोड़ो पर है हर कम्पनी अपने प्रोड्कट को आयुर्वेदिक बता कर ग्राहकों की जेब खाली कराते हैं. लेकिन आप जानते है ये जड़ी बूटी आखिर आती कहाँ से और कैसे है? जो इसका उत्पादन या फिर चुनने का काम करते है उनकी स्थिति और उन्हें कितने पैसे मिलते है ?

इसकी जानकारी के लिए हम पहुंचे उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के छपरट गाँव यहाँ के 1200 आदिवासी परिवार जड़ी बूटी ढूंढने का काम ही करते है लेकिन उनकी स्थिति ? गांव छपरट ब्लाक महरौनी जिला ललितपुर गांव के सहरिया आदिवासी लोगों का कहना है कि यह जड़ी बूटी का काम पूर्व जन्म से ही करते आ रहे हैं क्योंकि हम लोगों के पास और कोई रोजगार ना कोई धंधा नहीं है इसलिए हम लोग जड़ी बूटी का ही काम करते आ रहे हैं और जंगल में जैसे की लकड़ी का काम करते थे तो अब इस पर काफी रोक टोक लग गई है तो लकड़ी नहीं करते हैं और जड़ी बूटी का काम करते हैं इसकी पहचान तो हम लोगों ने नहीं की है जो बाहर से विदेश से लोग आए हैं

उन लोगों ने हम लोगों की जड़ी बूटी की ही पहचान करवाई है क्या है जड़ी बूटी को दो आग लाओ तो हम लोग पूर्व जानते हैं हमारे यहां का काम करते आ रहे हैं जैसे भूरे घमरा ऐसे ही जड़ी बूटियों का काम करते हैं पूरी होती है तो कहते हैं धात ठनका पडता हैं तो ऐसी स्थिति में भूरी की जड़ को बांटकर दूध पी लेते हैं तो इससे धाता दवा कराने से नही मिट पाती है पर जड़ी बूटी से मिट जाता है इसलिए हम लोग ही इसी का इस्तेमाल से हमारे किसी को धात पड़ती हो या किसी को गर्मी है तो दूध में इसकी जड़ी बूटी बाटकर कर के पिला देते हैं तो तुरंत आराम लग जाता है जो घमरा होता है तो कहते हैं कि इसका काजल बनाया जाता है और जो गोधरा है तो इसका की अगरबत्ती बनती है बस यह कहते हैं बाहरी लोग आते हैं तो मुझे इतना खास पता नहीं और कहते हैं जो अंग्रेजी दवाइयां है ठंडी ठंडी में आती हैं तो इसी जड़ी बूटी की बनाई जाती हैं
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बस हम लोगों को तो बस इसके पहचान कराई थी तो हम लोग इसको काफी दूर जंगल में जाते हैं पर एक जगह नहीं मिलती है जगह-जगह ढूंढना पड़ता है और नदी के किनारे इस तरह से रहते हैं जैसे सांप के मुंह में लटके रहते हैं अगर हम लोग अपनी जान की परवाह नहीं करते हैं क्योंकि अगर हम लोग अपनी जान की परवाह करेंगे तो अपने बच्चों का भरण पोषण कैसे कर पाए हैं तो हम लोग नदी में ऐसी ठंड में कोहरे में ही अपना काम करते रहते हैं और इसको पहले हम लोगों को खोजने पड़ता है खुद करके लाते हैं तो पाच दिन सुखाना पडता है सुखाने के बाद मे आगी से भूलना पड़ता है फिर इसको हम लोग बैचने के लिए ले जाते है तो 10 या ₹15 किलो बिकता है तो इससे हम लोग कोई मायने नहीं रखते हैं इसलिए हम लोग इसी का काम करते हैं

क्योंकि हमारे परिवार का इससे खर्च तो चलता है इसके अलावा और कुछ नहीं हो पाता है जैसे हमारे परिवार में 6 से 5 बच्चे हैं तो उनका भरण-पोषण कैसे करें सरकार से कई तरह की बातें कर जाते हैं पर इस बात को कोई नहीं पूरा करता है हमारे यहां पर जैसे कि हम लोग रह रहे तो रहने के लिए मकान भी नहीं है तो कहां जाएं तो जाएं कहां जाएं इसमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है बस हम लोग तो यह जड़ी बूटी का काम इसलिए करते हैं कि बस हम लोगों के जो परिवार में बच्चे हैं तो बस थोड़ा खाने पीने का खर्चा जाता है इसके अलावा है ही क्या है जड़ी बूटी खोजते हैं

तो इसी को ही पकड़ लगती है कहीं-कहीं ठेकेदार वगैरह ले जाते हैं तो वह पकड़े जा रहे हैं अभी बहुत काम होता है इसलिए हम लोग एक दिन में ज्यादा नहीं चार पांच किलो का ही माल मिलता है उसी को ले करके आते हैं तो सुबह से हम लोग करीब 8:00 बजे निकल जाते हैं और शाम को 6:00 बजे आते हैं भूखे प्यासे उसी पर रहते हैं जैसे हम लोग पानी भी तक नहीं ले जाते हैं तो उसी नदी का पानी पी कर के अपना पूरा दिन गुजार लेते हैं क्योंकि हम लोगों को मजबूर है जाए तो जाए कहां जाए हम लोग जड़ी बूटी काम कर रहे हैं पहले के लोग तो आ रही ज्यादा करते थे अभी तो थोड़ा ऐसा है कि आप जड़ी-बूटी नहीं मिलती है भटकने पडता है