इस गांव के लोगों का कहना है की यह जडी बूटी है और इसकी दवा बनती है और इसका बीज नहीं होता है. यह जडी बूटी है और जगंल मे पाई जाती है. और हमारे गांव मे पहले नहीं थी आज से दस साल पहले हमारे यहा के एक किसान दो या तीन किलो लायते थी और पहले वो ही इसकी खेती करते रहे पर हम लोगों कहते थे. की बहुत मेहनत होती है तो हम लोगों ने नहीं की फिर धीरे धीरे हम पता चला की इसकी मेहगाई जादा है.
तो फिर हम ने ही इसको खरीदा और लगाना सुरु कर दिये तो धीरे धीरे हमारे गांव मे सभी लोगों करने लगे तो आज की स्थिति मे हमारे यहा का सारा गांव इसी जडीबूटी की खेती करने लगा और इसका जादा आय है क्योंकि एक हजार या पन्द्रह सौ की बिकती है और इसके खरीद दार घर से लेजाते है और नहीं तो हम लोग ललितपुर या दिल्ली बेचने के लिये ले जाते है
और ललितपुर से जादा दामो मे दिल्ली मे बिकती है और इसको जून के माह मे लगाते है और फिर तीन या चार बार गुडाई करने पडती है अगर बारिश नहीं होती है तो पानी भी देने पडता है नबम्बर या दिसम्बर मे खोदते है और फिर बेचने के लिये ले जाते है और अगर ऐसी ही बेचते है तीन चार या पांच सौ रुपया मे बिकती है और अगर सुखाकर बेचते है तो एक हजार या पन्द्रह सौ मे बिकती है.