टीकमगढ़ जिले में रहने वाले हसीन खान लगभग 15-16 साल से गमले बनाने का काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने गमले बनाना पंजाब से सीखा था। उनका कहना है कि उन्होंने यह काम इसलिए सीखा क्योंकि वह खेती नहीं कर पाते। यही काम करके अपने परिवार का भरन-पोषण करते हैं। एक दिन में वह दस से बारह गमले बना लेते हैं। वह गमले के अलावा मंदिर आदि भी बनाते हैं। इसे बनाने के लिए डस्ट सीमेंट की जरूरत होती है।
चार तसला डस्ट, एक तसला सीमेंट मिलाकर गमले को तैयार किया जाता है। वह कहते हैं कि कभी-भी तो हफ्तों तक बिक्री नहीं होती। गमले घर की सजावट, गाय-भैसों के भूसे आदि में काम आते हैं। दीपावली के समय ही गमलों की सबसे ज़्यादा बिक्री होती है। कई बार पैसे कम होने की वजह से वह अन्य चीजें नहीं बना पाते। लेकिन उनकी गमले बनाने में ही रुचि है।