क्या कैंसर की बीमारी भारत में महामारी का रूप ले चुकी है? विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2030 तक विश्व में कैंसर पीड़ितों की संख्या एक करोड़ से ऊपर पहुँच जायेगी। भारत में हर वर्ष करीब 2 लाख लोग कैंसर के रोगियों में बढ़ोत्तरी होती है। वही हर वर्ष करीब 5 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आकर दम तोड़ देते हैं।
कोरोना महामारी के समय यह बड़ा सवाल है कि क्या इस बीमारी के प्रति उतना ही संवेदनशील है स्वास्थ्य विभाग? जबकि हमारी रिपोर्टिंग ये कहती है कि कैंसर पीड़ित लोग पैसों के अभाव और अस्पताल तक न पहुंच पाने के कारण इलाज़ नहीं करा पाए हैं। यूपी में रोगी ज्यादा संसाधन कम केजीएमयू के रेडियोथेरेपी विभाग के प्रमुख प्रो. एमएल भट्ट ने लगातार कैंसर के रोगियों की बढ़ती संख्याय और पर्याप्त संसाधनों की कमी पर चिंता जाहिर की है।
उन्होंने बताया, सिर्फ यूपी में ही हर साल दो लाख नए कैंसर के रोगियों की पुष्टि हो रही है। अगर संसाधनों की बात करें तो पूरे प्रदेश में केवल तीन संस्थानों केजीएमयू, लोहिया इंस्टीधट्यूट और बीएचयू में कैंसर के रोगियों के इलाज की सुविधा है। इन तीनों सेंटरों पर भी सिर्फ 50 से 60 हजार मरीज ही कैंसर के इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। यहां संसाधन भी सीमित हैं।
इसके चलते अन्य कैंसर के रोगी बिना इलाज मौत के मुंह में जा रहे हैं। संसाधनों के साथ ही हमारे दश में कैंसर रोग विशेषज्ञों की भी काफी कमी है। दो कैंसर पीड़ित व्यक्तियों की आप बीती बांदा शहर के मोहल्ला कटरा निवासी कल्लू चौरसिया का कहना है कि वह 4 साल से कैंसर पीड़ित हैं। अब तक में लगभग चार लाख रुपये लग चुका है। बांदा से कानपुर और अब मुंबई का इलाज चल रहा है। कहीं से किसी भी तरह की सरकारी सुविधा नहीं मिल पाई जबकि मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर मदद की गुहार लगाई थी।
उन्होंने यह भी बताया कि महाराष्ट्र की सरकार से चालीस हजार रुपये की मदद भी की थी। कोरोना के चलते न तो पैसे की व्यवस्था हो पाई और न ही इलाज़ के लिए मुंबई जा पाए। दूसरा मामला जिला महोबा, ब्लाक जैतपुर गांव बगवान के रहने वाला कमलेश राजपूत लड़की उन्नति राजपूत का है। उनका कहना है कि उन्नति राजपूत को ब्लड कैंसर की बीमारी है।
22 जून को उनकी बेटी की रिपोर्ट आई जिसमें पता चला कि उसको ब्लड कैंसर है। उन्होंने अपनी बेटी के इलाज में ढाई लाख रुपये खर्च कर दिए जब पैसा नहीं बचा था तब लोगों और मीडिया से मिले ₹500000 आर्थिक सहयोग से बेटी का इलाज कराए हैं और अब पैसा खत्म है। अब समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करें। उनको कुछ लोगों से बता चला कि मुख्यमंत्री पोर्टल से पैसा मिलता है।
वह सांसद के यहां गए लेकिन सांसद मिले नहीं। कोरोना महामारी और लोकडाउन ने सारे रास्ते बंद कर दिए। यहां तक कि उन्हें अपनी लड़की को लेकर कानपुर जाना था और सारी ट्रेन बस बन्द थे तो डीएम ने चार पहिया गाड़ी से ले जाने की परमीशन तक नहीं दी। रिपार्टिंग के दौरान हमने बांदा और महोबा सीएमओ से बात की। उनका कहना है कि वह इस बीमारी की जागरूकता के लिए पूरे साल काम किया जाता है। सरकारी जो भी सुविधाएं हैं उनका लाभ पीड़ितों को मिलता है।