खबर लहरिया Blog निजीकरण के नाम पर मुनाफ़ा कमाती सरकार, नहीं है आम लोगों की परवाह

निजीकरण के नाम पर मुनाफ़ा कमाती सरकार, नहीं है आम लोगों की परवाह

जबसे साल 2020 शुरू हुआ , यही देखने को मिला है कि एक के बाद एक देश अपनी राष्ट्रीय सम्पत्ति खोते जा रहा है। यह कहना ज़्यादा बेहतर होगा कि सरकार देश की राष्ट्रिय सम्पत्ति को क़र्ज़ से बचने के लिए बेचे जा रही है। सरकार देश की संपत्ति को बचाने और संभालने में नाकामयाब रही है।

मोदी सरकार ने इसी साल 2020 में भारतीय रेलवे का निजीकरण कर दिया। जिसे मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक‘  कहा गया। 1 जुलाई 2020 को रेल मंत्रालय ने घोषणा की कि 109 जुड़े मार्गों में 151 ट्रेनें निजी क्षेत्रों द्वारा संचालित की जाएंगी। वहीं निजी क्षेत्र 30,000 करोड़ रुपयों का निवेश करेगा। सिर्फ ट्रेन चलाने वाले और सुरक्षकर्मी को ही रेलवे का कर्मचारी माना जायेगा। उसके आलावा अन्य काम करने वाले लोग निजी उद्योगों के कर्मचारी होंगे। साथ ही निजी कंपनियां किसी भी मार्ग की ट्रेन और स्वचालित यंत्र खरीदने के लिए आज़ाद होंगी।

निजी कंपनियों को अधिक किराया वसूलने, तय करने की आज़ादी

निजी ट्रेनों की शुरुआत अप्रैल 2023 से शुरू हो जायेगी। जिस प्रकार से निजी एयरलाइन्स काम करती है , वैसे ही रेलवे का भी संचालन किया जायेगा। निजी ट्रेनों में सफर करने वाले लोगों को पसंदीदा सीट और अधिक सामान रखने के लिए अलग से पैसे देने होंगे। साथ ही अगर किसी व्यक्ति को ट्रेन में ही कुछ और चीज़े चाहिए तो भी सवारी को उसके लिए अलग से भुगतान करना होगा। निजी ट्रेन ऑपरेटर्स अपने अनुसार किराया तय कर सकते हैं। मलतब ट्रेन का किराया अपने अनुसार कम या ज़्यादा कभी भी कर सकते हैं और सवारी को तय किया गया किराया देना ही होगा।

निजीकरण से होगी विकास में तेज़ी ?

सरकार के अनुसार निजीकरण करने से विकास में तेज़ी आएगी। इसके लिए सार्वजिनक और निजी भागीदारी का होना ज़रूरी है। सरकार 2030 तक रेल परियोजनाओं में लगभग 50 लाख करोड़ रुपयों तक का निवेश करने की सोच रही है। लेकिन केंद्रीय बजट 2019 के अनुसार इसका केवल एक हिस्सा ही सरकारी कोष के माध्यम से वित्तीय सहायता के लिए दिया जा सकता है। अभी जब सरकार यह बात ही सही तरह से नहीं कह पा रही की वह कहे गए रुपयों के अनुसार निवेश कर पायेगी या नहीं,तो अनुमानित विकास होना, न होना कई सवाल खड़े करता है।

माल गाड़ियों को यात्रा अनुकूल बनाया गया

अनुमानित तौर पर भारतीय रेलवे नेटवर्क में लगभग 70 प्रतिशत माल गाड़ियां हैं। जिसकी वजह से सामन्य ट्रेनों में ज़्यादा भीड़ मिलती है। 2021 तक इन माल गाड़ियों को यात्रियों के सफ़र के लिए तैयार कर दी जाएंगी। इससे सफ़र करने वाले यात्री धक्का-मुक्की से बच सकेंगे। साथ ही ट्रेनों में भीड़ कम होने के साथ काफ़ी जगह भी बन जायेगी। ज़्यादा जगह होने का मतलब है और अधिक यात्रियों का आना। जिससे की निजी कंपनियों को फ़ायदा मिलेगा। लेकिन सामान्य लोगों को इससे क्या लाभ।

रेल मंत्री ने किया निजीकरण का विरोध

रेल मंत्री पियूष गोयल ने सरकार द्वारा रेलवे का निजीकरण करने पर विरोध किया। समय-समय पर यूनियन ने रेल मंत्रालय के साथ मिलकर निजीकरण का विरोध प्रदर्शन भी किया। ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में ट्रेनों का निजी संचालन विफल रहा था। वहीं रेलवे बोर्ड अध्यक्ष वीके यादव ने इसे सार्वजनिक-निजी भागीदारी कहा।

पियूष गोयल ने कहा कि भारतीय रेलवे के निजीकरण की कोई योजना नहीं थी। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि भारतीय रेलवे के निजीकरण की कोई योजना या प्रस्ताव नहीं है, ऐसा नहीं होगा। भारतीय रेलवे इस देश के लोगों से संबंधित है, और यह ऐसा ही रहेगा।” -रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस साल राज्यसभा को बताया।

निजीकरण को लेकर सरकार द्वारा 2018-19 के दौरान दिए गए तर्क के दौरान यह बात सामने आयी थी कि 8.85 करोड़ यात्री सूची में थे और इनमे से सिर्फ 16 प्रतिशत लोगो को ही आरक्षण मिला था। जिसको लेकर सरकार को निजीकरण करने की वजह मिल गयी।

नेशनल हेराल्ड जुलाई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार रेलवे ने 5.35 करोड़ सीटें बढ़ाई हैं, जिनमें से 70 फीसदी एसी (वातानुकूलित) कोच है और 30 फीसदी स्लीपर कोच के है। यह आंकड़े साफ़ दिखा रहे है कि सरकार को आम जनता की कितनी फ़िक्र है। हर व्यक्ति के पास इतने पैसे नहीं है की वह आरमदायक रेल के डब्बों में बैठकर सफ़र करे। देश की आधी से ज़्यादा आबादी स्लीपर और जनरल डब्बों में सफ़र करती है। सामान्य लोगो के लिए सुविधा करने की बजाय सरकार उन लोगो के लिए सुविधा के इंतेज़ाम कर रही है जिनको सामान्य लोगो की तरह भरी ट्रेनों में सफ़र नहीं करना पड़ता है। क्या सरकार का काम सिर्फ मुनाफ़ा कमाना रह गया है। निजीकरण के नाम सरकार सिर्फ अमीर को और अमीर बना रही है और गरीब जनता के लिए चीज़े और भी मुश्किल कर रही है। 

अगर सामन्य जनता के लिए सरकार को कुछ करना होता तो वह ट्रेनों में सीटें बढ़ाने के साथ ट्रेन का किराया भी कम करती जिससे कि हर व्यक्ति सुविधाजनक ट्रेनों में सफर कर पाता। सरकार न तो देश की संपत्ति का रख-रखाव कर पायी और न ही सामान्य लोगों की मुश्किलें कम कर पायी।