साल 2002 में हुए गोधरा काण्ड मामले में आज 19 साल के बाद मामले के मुख्य आरोपी को आखिरकार पकड़ लिया गया है। सोमवार,15 फरवरी को पुलिस ने बताया कि मामले में सबसे बड़े साजिशकर्ता रफ़ीक हुसैन भटुक को गोधरा शहर से रविवार, 14 फरवरी को गिरफ्तार किया गया। जानकारी के अनुसार, 51 साल का भटुक ट्रेन को निशाना बनाने वाले साज़िशकर्ताओं के “मुख्य ग्रुप” का हिस्सा था। जिस ट्रेन को निशाना बनाया गया, उसमें कार सेवक आयोध्या से वापस आ रहे थे। पूरे मामले में 59 कार सेवकों की मृत्यु हुई थी। पंचामल सुप्रिटेनडेंट पुलिस लीना पाटिल ने बताया कि आरोपी पिछले 19 साल से पुलिस से भाग रहा था।
भटुक पर हत्या और हिंसा का था आरोप
पुलिस ने बताया कि किसी स्त्रोत से मिली जानकारी के ज़रिये उन्होंने गोधरा रेलवे स्टेशन के पास सिग्नल फालिआ क्षेत्र में 14 फरवरी की रात को भटुक को पकड़ा था। पुलिस ने कहा कि उसका बोगी पर पत्थर मारने और ट्रेन के अंदर पेट्रोल फेंकने में हाथ था। किसी और आरोपी ने ट्रेन में आग लगाई थी। इस मामले के बाद राज्य में हिंसक माहौल छा गया था। जिसमें तकरीबन 1000 लोग मारे गए थे।
जगह बदलकर छुप रहा था भटुक – लीना पाटिल
पंचामल सुप्रिटेनडेंट पुलिस लीना पाटिल ने बताया,”गोधरा की घटना के बाद, भटुक ने अपना ज़्यादातर समय दिल्ली रेलवे स्टेशन और कंस्ट्रक्शन साइट पर मज़दूर की तरह काम करके गुज़ारा। वह खुद को बचाने के लिए, अपने परिवार के साथ सुलतान फालिआ क्षेत्र में रहने चला गया। जहां वह गोधरा मामले से पहले रहा करता था। हमें हाल ही में पता चला कि उसने अपना घर बदला है और हम उसके घर पर भी गए थे। हम उसे पकड़ नहीं पाए क्यूंकि वह एक या दो दिन में निकल जाता था। लेकिन इस बार हम उसे पकड़ने में कामयाब रहे।”
गुजरात पुलिस का कहना है, भटुक के साथ अन्य आरोपी – सलीम इब्राहिम बादाम अलियास पानवाला, शौकत चरखा और अब्दुलमजीद यूसुफ़ मीठा, अभी भी गायब है। जिनके होने की मौजूदगी पाकिस्तान में बताई जा रही है।
यह था मामला
अहमदाबाद से लगभग 130 किलोमीटर दूर गोधरा स्टेशन पर 27 फरवरी साल 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एक डब्बे में साजिश के तहत आग लगाई गयी थी। जिसमें 59 लोगों की जलकर मौत हो गयी थी। जिनमें से ज़्यादातर लोग अयोध्या से लौट रहे कार सेवक थे। लेकिन आरोपियों द्वारा बार-बार यही कहा जा रहा था कि उनके द्वारा ट्रेन के डब्बे में आग नहीं लगाई गयी थी।
2017 में हाई कोर्ट ने मामले को लेकर बदले थे फैसले
साल 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 गोधरा वारदात में कुल 94 आरोपियों में से 11 लोगों की सज़ा को फांसी से बदलकर उम्रकैद कर दिया था। मामले में सारे आरोपी मुस्लिम ही थे। अदालत ने कहा कि इस मामले में किसी भी दोषी को फांसी की सज़ा नहीं दी जाएगी।
– गोधरा ट्रेन वारदात में एसआईटी ( स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) की एक विशेष अदालत ने 1 मार्च 2011 को 31 लोगों को दोषी ठहराया था। जबकि 63 लोगों को बरी कर दिया था। 11 लोगों को मौत की सजा और 20 लोगों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी।
– अदालत द्वारा साल 2007 में 63 लोगों को बरी किया गया था। जिसमें मुख्य आरोपी मौलाना उमरजी, गोधरा नगरपालिका के तत्कालीन प्रेजिडेंट मोहम्मद हुसैन कलोटा, मोहम्मद अंसारी और गंगापुर, उत्तर प्रदेश के नानूमिया चौधरी शामिल थे।
गोधरा कांड के बाद लिए गए यह सारे फैसले
– पूरे मामले में 1500 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ की गयी थी।
– 28 फरवरी से 31 मार्च 2002 तक गुजरात के कई इलाकों में बड़ी मात्रा में दंगे हुए थे। जिसमें तकरीबन 1000 हज़ार लोग मारे गए थे। मारे गये लोगों में ज्यादातर लोग अल्पसंख्यक समुदाय के थे।
– 3 मार्च, 2002 को गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटो) लगाया गया था।
– 6 मार्च, 2002 को गुजरात सरकार ने कमिशन ऑफ इन्क्वॉयरी ऐक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की थी।
– 9 मार्च,2002 को पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) का आरोप लगाया था।
– 25 मार्च,2002 को केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से आतंकवाद निरोधक अध्यादेश हटाया गया था।
– 27 मार्च,2002 को 54 आरोपियों के खिलाफ पहला आरोप पत्र दाखिल किया गया। लेकिन उन पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत आरोप नहीं लगाया गया। (पोटो बाद में पोटा, को उस समय संसद ने पास कर दिया था जिससे वह कानून बन गया)।
फिर से लगाया गया पोटा (आतंकवाद निरोधक कानून )
– 18 फरवरी 2003 को गुजरात में बीजेपी सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगाया गया।
– 21 नवंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन जलाये जाने के मामले में दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगा दी थी।
– 4 सितंबर 2004 को राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यू. सी. बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जांच का काम सौंपा गया था।
– 21 सितंबर को यूपीए सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।
– 17 जनवरी 2005 को यू. सी. बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि गोधरा ट्रेन की एस-6 बोगी में आग लगी थी और इस बात की आशंका को खारिज किया गया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।
– 16 मई, 2005 को पोटो समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाये जाएं।
– 13 अक्टूबर 2006 को गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि यू. सी. बनर्जी समिति का गठन अलग है क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है।
– 26 मार्च, 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जांच के लिये विशेष जांच आयोग बनाया था।
नानावटी आयोग की रिपोर्ट
– 18 सितंबर, 2008 को नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच रिपोर्ट सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था और एस-6 बोगी को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया।
– 20 फरवरी, 2009 को गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाये जाने पर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
– 01 मई, 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आर. के. राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ अन्य मामलों की जांच में तेजी लाई थी।
आखिर 19 सालों के बाद गुजरात में हुए सबसे बड़े साम्प्रदयिक मामले गोधरा काण्ड का आरोपी पकड़ा गया। 2002 में हुआ यह मामला, उस समय लोगों के लिए काफी हिंसात्मक रहा। लोगों ने उस समय बेहद हिंसात्मक दृश्य भी देखा, जिसकी झलक आज भी लोगों की आँखों में है। जो वारदात के दौरान घटना स्थल पर मौजूद थे। यह कुछ ऐसी सांप्रदयिक घटना था, जिसे लोग चाह कर भी भूल नहीं सकते।
द्वारा लिखित – संध्या