खबर लहरिया Blog गोवर्धन योजना के बायोगैस प्लांट से ग्रामीणों को नहीं मिल रहा लाभ

गोवर्धन योजना के बायोगैस प्लांट से ग्रामीणों को नहीं मिल रहा लाभ

गौशाला में देखभाल कर रहे व्यक्ति का कहना है कि गांव की इस गोशाला में अन्ना गोवंश के गोबर से बायोगैस तैयार की जाती है। प्लांट बनकर तैयार होने के बाद इसका संचालन ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी में है। इस प्लांट से गैस का प्रयोग ईंधन के रूप में गौशाला के अंदर खाना बनाने के लिए किया जाता है और इसी संयंत्र के जरिए गौशाला की लाइट जलती है। उन्होंने सुना था कि प्लांट बनने के बाद इस बायोगैस प्लांट से सिलेंडर भरे जाएंगे लेकिन अभी तक यह प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है ना ही उतनी गैस बनती है।

GOBARdhan Scheme Biogas Plant Fails to Provide Benefits to Rural Communities in Banda District, UP.

                       बायो गैस प्लांट की देखभाल करने वाले व्यक्ति की तस्वीर जो बता रहे हैं कि उन्हें अभी तक इस प्लांट से कोई फायदा नहीं हुआ है (फोटो साभार – गीता देवी/ खबर लहरिया)

रिपोर्ट – गीता देवी, लेखन – सुचित्रा 

केंद्र सरकार ने वर्ष 2018-19 के आम बजट में गोवर्धन योजना (वेस्ट टू वेल्थ) का एलान किया था। अप्रैल 2018 में जल शक्ति मंत्रालय के तहत पेयजल और स्वच्छता विभाग द्वारा शुरू की गई थी। इसके बाद फरवरी-2018 में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों का आह्वान किया था कि वे गोबर और कचरे को सिर्फ कचरे के रूप में नहीं बल्कि आय के स्रोत के रूप में देखें। मगर प्रदेश में इस योजना के कार्य में दो साल से अधिक वक्त लग गया।

मुख्य सचिव आरके तिवारी की अध्यक्षता में बनाई गई योजना

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्य मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार (आरके) तिवारी की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस योजना को लागू करने की रणनीति को अंतिम रूप दिया गया। इसके लिए राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति में बायोगैस निर्माण व संचालन से जुड़े दो से तीन उद्यमियों व विशेषज्ञों, जैव ऊर्जा बोर्ड के राज्य समन्वयक, नाबार्ड के प्रतिनिधि व अपर मुख्य सचिव दुग्धशाला विकास को शामिल करने का फैसला हुआ। इसी तरह जिला स्तर पर गोवर्धन सेल गठित करने पर सहमति बनी। बैठक में यह भी तय हुआ कि योजना का संचालन पंचायतीराज निदेशालय करेगा। इसके लिए पंचायतीराज निदेशालय को नोडल एजेंसी नामित कर दिया गया है।

40 लाख की लागत से हुआ बायोगैस प्लांट का निर्माण

बांदा। बुंदेलखंड के चार जनपदों में केंद्र सरकार की गोबर-धन योजना से बायो गोबर गैस प्लांट की स्थापना का निर्णय 2021 में लिया गया था। चारों जनपदों से मॉडल के रूप में एक-एक के स्थायी गोशालाओं को चुन कर इस योजना में उन गांवों को शामिल किया गया था, जहां गोशालाएं और पशुओं की आबादी ज्यादा है। सरकार का बायोगैस प्लांट लगाने का उद्देश्य था कि इस प्लांट से निकलने वाली गैस व बिजली ग्राम पंचायतों को दी जाएगी, ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो सके।

इसी योजना के तहत बांदा जिले के नरैनी तहसील अंतर्गत आने वाले रगौली भटपुरा गांव में विशाल गौशाला में गोवर्धन योजना के तहत एक बायोगैस प्लांट लगाया गया था। यह प्लांट लगभग डेढ़ साल पहले बनाकर तैयार किया गया है। इस प्लांट में करीब 85 क्यूबिक मीटर गैस तैयार होगी। जो ग्राम पंचायत के लोगों को मिलेगी और लगभग 750 किलो बाट तक बिजली बनेगी। जो लोगों के घरों को रोशन करने में मदद करेंगी। इसी के तहत पंचायती राज विभाग ने ग्राम पंचायत रगौली भटपुरा में 40 लाख की लागत से बायोगैस प्लांट का निर्माण कराया है।

गौशाला में देखभाल कर रहे व्यक्ति का कहना है कि गांव की इस गोशाला में अन्ना गोवंश के गोबर से बायोगैस तैयार की जाती है। प्लांट बनकर तैयार होने के बाद इसका संचालन ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी में है। इस प्लांट से गैस का प्रयोग ईंधन के रूप में गौशाला के अंदर खाना बनाने के लिए किया जाता है और इसी संयंत्र के जरिए गौशाला की लाइट जलती है। उन्होंने सुना था कि प्लांट बनने के बाद इस बायोगैस प्लांट से सिलेंडर भरे जाएंगे लेकिन अभी तक यह प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है ना ही उतनी गैस बनती है। सरकार ने गोवर्धन योजना को बढ़ावा देने के लिए ये प्लांट बनवाया है। ताकि गौशाला में निकल रहे गोबर का सही उपयोग हो और इस बायोगैस से बनने वाली खाद सबसे ज्यादा उपयोगकारी होती है।

ग्राम प्रधान प्रतिनिधि को भी नहीं इसकी जानकारी

ग्राम प्रधान रन्नो देवी के पति मुन्ना सिंह बताते हैं कि जब ये बना था तब पूरी टीम वीडियो, पंचायत राज अधिकारी, डीएम सब शामिल थे। जब यह बन गया तब इसे उनको सौंप दिया गया है लेकिन काम सिर्फ गौशाला का हो रहा है। अभी इसमें और बजट खर्च होगा, अगर खुद गौशाला से गांव तक पाइपलाइन बिछाई जाए तो हो सकता है कि कुछ घरों को बिजली मिलने लगे और सिलेंडर भी भरे जा सकते हैं। फिलहाल के लिए ऐसा कुछ नहीं है और यह भी उन्होंने बताया कि एक इंजीनियर द्वारा इस प्लांट को देखा गया है। उनके द्वारा यह कहा गया है कि इसके भरे सिलेंडर ज्यादा दिन तक चल नहीं सकते लेकिन हां इसे जो खाद निकलती है वह बहुत फायदेमंद है और गौशाला का गोबर भी बर्बाद नहीं जाता।

बायोगैस प्लांट से सिर्फ गौशाला को लाभ

गौशाला की देखरेख कर रहे लोगों का कहना है कि इस प्लांट में 18 तसला गोबर प्रतिदिन डालते हैं जिससे उनको पर्याप्त खाना बनाने के लिए गैस मिल जाती है। इससे लाइट भी बराबर रहती है और इतना ही नहीं इसी बायोगैस प्लांट के जरिए जनरेटर भी चलता है और पानी आता है।

जिला पंचायत राज अधिकारी का कहना है कि यह बायोगैस प्लांट 85 यूनिट का है। इसमें लोगों को बिजली और गैस प्राप्त होगी 750 तक बिजली बन सकती है, लगभग 15 सिलेंडर भरे जा सकते हैं। इसके लिए वह विशेषज्ञ से मिलकर सलाह लेना चाहते हैं और इससे आए भी दुगनी होगी। जब सिलेंडर भरे जाएंगे तो उसमें बजट भी रखा जाएगा ताकि ग्राम पंचायत में जो लागत लगाई है। बायोगैस प्लांट एक अच्छा साधन है अभी तो एक ही बना है लेकिन वह चाहते हैं कि इस तरह के बायोगैस प्लांट छोटे-छोटे और भी लगाए जाए ताकि और भी सुविधा हो सके।

बायोगैस प्लांट का नहीं मिल रहा लाभ

रगौली गांव की रानी का कहना है, “बायोगैस प्लांट को बने डेढ़ साल हो गए लेकिन अभी तक ग्राम पंचायत में लोगों को कोई लाभ नहीं मिला है। प्लांट से ना तो सिलेंडर भरे गए हैं और ना ही उनको बिजली मिली है। हां जब बायोगैस प्लांट बन रहा था तो लोगों ने काफी उम्मीद लगाई थी कि अगर प्लांट से गैस भरेगी अच्छा होगा और उनके गांव में बिजली भी यही से मिलने लगेगी तो लाभकारी रहेगा, लेकिन ऐसा कुछ अभी तक देखने को नहीं मिला। हाँ, ये है कि गौशाला में जो लोग रहते हैं उनके खाना बनाने के लिए और उनकी बिजली के लिए सुविधा है।

 

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