खबर लहरिया Blog घोड़ा नाच: आधुनिकता के प्रभाव से घोड़ा नाच की संस्कृति खो रही अपनी पहचान

घोड़ा नाच: आधुनिकता के प्रभाव से घोड़ा नाच की संस्कृति खो रही अपनी पहचान

घोड़ा नाच न केवल एक नृत्य है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है। इस नाच के लिए कलाकार अपने शरीर को घोड़े के आकार वाले ढांचे में डालते हैं जो रंग बिरंगे कपड़ों से ढाका होता है। घोड़ा नाच के दौरान कलाकार पारंपरिक गीत गाते हैं और शारीरिक मुद्राएं करते हैं – जैसे कि कूदना, झूमना और अन्य नृत्य क्रियाएं।

घोडा नाच की तस्वीर (फोटो साभार: सुशीला)

रिपोर्ट – सुशीला, लेखन – सुचित्रा 

आज की तेज़ी से बदलती दुनिया में हम अपनी पुरानी परंपराओं को कहीं न कहीं भूलते जा रहे हैं। घोड़ा नाच भी इनमे से एक है जो अब बहुत कम देखने को मिलता है। घोड़ा नाच जिसे कई जगह ‘धोबिया नाच’ भी कहा जाता है। यह राजस्थान की प्रसिद्ध सांस्कृतिक कलाओं में से एक है। यह खासकर धोबी समुदाय द्वारा शादियों और मेलों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है।

घोड़ा नाच: परंपरा का अद्भुत रूप

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राहुल शर्मा इस धोबिया नाच की संस्कृति को आगे ले जाना चाहते हैं और इस परम्परा को सहेज के रखना चाहते हैं।  हिमांशु शर्मा का कहना है कि घोड़ा नाच न केवल एक नृत्य है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है। इस नाच के लिए कलाकार अपने शरीर को घोड़े के आकार वाले ढांचे में डालते हैं जो रंग बिरंगे कपड़ों से ढाका होता है। घोड़ा नाच के दौरान कलाकार पारंपरिक गीत गाते हैं और शारीरिक मुद्राएं करते हैं – जैसे कि कूदना, झूमना और अन्य नृत्य क्रियाएं।

घोड़ा नाच विलुप्त होती परंपरा

हिमांशु शर्मा का दृढ़ विश्वास है कि इस पारंपरिक नृत्य को जीवित रखना और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना बेहद महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि अगर कोई सामाजिक कार्यक्रम होता है, तो वह इस नृत्य का आयोजन करेंगे ताकि युवा पीढ़ी इसे देख सके और इस कला से जुड़ी सुंदर यादें बना सके। हालांकि, आजकल की आधुनिकता और बदलाव के कारण, घोड़ा नाच जैसे पारंपरिक आयोजनों की प्रासंगिकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। वाराणसी जैसे शहरों में जहां यह एक समय में एक अहम सांस्कृतिक धरोहर हुआ करता था, अब यह प्रथा दुर्लभ होती जा रही है।

डीजे और आधुनिकता का प्रभाव

लाल बिहारी वाराणसी के अनुसार, पहले घोड़ा नाच शादियों और अन्य खुशियों के मौकों का हिस्सा हुआ करता था। यहां तक कि जब किसी घर में बेटा पैदा होता था, तो लोग इसे खुशी के मौके पर बुलाते थे। लेकिन अब 2010 के बाद से यह परंपरा लुप्त होती जा रही है। आजकल लोग डीजे और आधुनिक संगीत की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, जो कभी-कभी सामाजिक समरसता को प्रभावित कर सकते हैं। इसके विपरीत, घोड़ा नाच में परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर आनंद ले सकते थे। इसके माध्यम से सकारात्मक संदेश और लोक गीतों का अनुभव कर सकते थे।

घोड़ा नाच ‘धोबिया नाच’ मनोरंजन का हिस्सा 

राधेश्याम, जो 50 वर्षों से ढोलक बजा रहे हैं। उनका कहना है कि पहले यह नृत्य और संगीत केवल मनोरंजन का साधन था। कई जगह आज भी इसे लोग बड़े उत्साह से देखते हैं। इसे देख लोग और बच्चे दोनों बहुत खुश होते हैं। 

पहले, जब किसी घर में कोई कार्यक्रम होता था, तो वहाँ चार लोग जो चुटकुले करते थे, चार लोग जो नाचते थे, और चार लोग जो घोड़ा डांस करते थे, कुल मिलाकर लगभग 15-16 लोग होते थे। लोग आराम से बैठकर इसका आनंद लेते थे। 

‘धोबिया नाच’ विलुप्त होने से लोगों के रोजगार पर असर 

यह एक सांस्कृतिक विरासत है और हमारे रोज़गार का भी हिस्सा था। राधेश्याम ने बताया कि पहले वे इस नृत्य के आयोजन के लिए 10,000 से 15,000 रुपये तक कमाते थे। दर्शक भी इनाम के रूप में 5000 से 6000 हजार तक धनराशि दे देते थे लेकिन अब यह कला विलुप्त हो रही है। लोग अब दूसरे रोजगार की ओर बढ़ने लगे हैं। अब स्थिति बदल चुकी है। आजकल, तीन से चार महीने में शायद ही कोई आर्डर मिलता हो। केवल वही लोग, जो इस कला के शौकिन होते हैं, प्रोग्राम के लिए आर्डर देते हैं।

हालांकि, राधेश्याम और हिमांशु शर्मा जैसे लोग इस कला को जीवित रखने के लिए प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस कला को छोड़ना नहीं चाहिए और इसे आगे बढ़ाना चाहिए। 

 

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