देश का 2021-22 तक का बजट आ गया है और बीते साल कोरोना महामारी के कारण इसमें कुछ प्रमुख परिवर्तन देखे गए हैं। उन्हीं में से एक है “जेंडर बजट” यानी लिंग उत्तरदायी बजट। सोमवार, 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट की प्रस्तुति हुई जिसमें कुछ मुख्य बातें जो सामने आयी हैं वो हैं कि स्वास्थ्य सेवा के लिए करीब 2 लाख करोड़ की धनराशि का निवेश किया जाएगा। साथ ही कोविड -19 की वैक्सीन के लिए 35,000 करोड़ रु का निवेश किया जाएगा।
जेंडर बजट का नहीं रखा गया ध्यान–
महिलाओं के खलाफ होने वाले भेदभाव को रोकने और लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2006 से लिंग उत्तरदायी बजट को वार्षिक बजट का हिस्सा बनाया था। इसके अंतर्गत कुल केंद्रीय बजट का 5 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों के लिए नियुक्त किया जाता है।
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कुछ बिंदुयों को ध्यान में रखा गया है जैसे कि निर्भया फंड के लिए 10 करोड़ का निवेश किया गया है, प्रधानमंत्री आवास योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना को वैसा का वैसा ही रखा गया। लेकिन इसके अलावा ज़्यादातर मुद्दों को नज़र–अंदाज़ ही किया गया। माना जा रहा था कि महिलाओं को अवैतनिक नौकरियों से मुक्त करा कर उनके लिए एक स्थायी वेतन बांधा जाएगा। साथ ही गरीब महिलाओं के लिए काम करने की जगहों में सुधार और उनकी सुरक्षा के लिए भी कुछ व्यवस्था की जाएगी। परन्तु आम बजट में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला।
कोरोना महामारी के चलते परेशानी झेल रही हैं महिलाएं–
जैसा कि आंकड़ें बताते हैं कि घरेलु हिंसा, आजीविका के नुक्सान और आय क्षमता में गिराव के कारण कोरोना महामारी की मार सबसे पहले महिलाओं ने ही झेली है, और ऐसा माना जा रहा था की इस बार बजट में इन बातों को ध्यान में रखा जाएगा, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हर साल की तरह इस साल भी कुल बजट में से 5% से भी कम लिंग उत्तरदायी बजट यह दर्शाता है कि हमारे देश में महिला सशक्तिकरण को कितनी कम प्राथमिकता दी जा रही है।
‘द क्विंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, बजट 2020-21 में महिला और बाल विकास मंत्रालय में महिलाओं की विशिष्ट योजनाओं की लागत 3,919 करोड़ रुपये थी और इसमें 15 प्रतिशत की गिरावट के साथ इस बार के बजट में 3,310 करोड़ रुपये की कमी देखी गई।
बताते चलें कि बीते वर्ष, कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते सैकड़ों महिलाओं ने मुसीबतों का सामना किया है। जहां पूरे देश के आंगनवाड़ी सेंटर बंद थे जिसके कारण गर्भवती महिलाओं और 5 साल से कम आयु के बच्चों की माओं को परेशानियां झेलनी पड़ी, वहीं घरेलु सामग्री जैसे एल पी जी गैस और खान–पान की वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ते रहे, जिसकी वजह से गरीबी रेखा से नीचे और मध्य वर्ग की महिलाआं को अच्छी खासी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। बजट 2021-22 से लोगों को उम्मीद थी की शायद महिलाओं को कुछ राहत मिलेगी, लेकिन इस बार भी उन्हें निराश किया गया।
अगर सरकार को महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करना है तो सिर्फ योजनाएं बनाने से कुछ नहीं होगा, सरकार को इन योजनाओं पर काम भी करना होगा, साथ ही उनपर निवेश भी करना होगा जिससे देशभर की करोड़ों महलाओं और लड़कियों को इसका लाभ मिल सके।