खबर लहरिया Blog ‘गढ़वा किला’ जो मध्यकालीन से कर रहा है जीवित रहने का प्रयास

‘गढ़वा किला’ जो मध्यकालीन से कर रहा है जीवित रहने का प्रयास

यूपी के प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ में शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर स्थित गढ़वा किला 1750 ई. में बारा के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया था। यह किला लगभग दो किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है।

Garhwa Fort is fighting to stay alive since the medieval period

                                                                                                      गढ़वा किले के अंदर मौजूद मंडप की तस्वीर जो अब टूट चुका है ( फोटो साभार – संध्या/ खबर लहरिया)

रिपोर्ट व तस्वीर – संध्या 

1750 ई. में बारा के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया ‘गढ़वा किला/गढ़वा दुर्ग’ ऐतिहासिक होने के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व भी रखता है। पुरातत्व कहने से मतलब है जो प्राचीन वस्तुओं,सभ्यताओं और संस्कृति के अध्ययन से संबंधित होता है। यह शब्द उन चीजों के बारे में बताते हैं जो पुरातात्त्विक खुदाई, खोज, और अनुसंधान के ज़रिये से प्राप्त होते हैं।

यूपी के प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ में शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर स्थित यह किला कई बार काफी अकेला भी नज़र आता है। ऐसा इलसिए भी क्योंकि यहां तक आने के लिए समय-समय पर चलने वाले साधन मौजूद नहीं है। इससे यहां लोगों की आवाजाही उतनी नहीं होती। लोगों के बिना आखिर एक किला सिर्फ एक सुनसान जगह ही तो है जिसकी ऊंची दीवारें किसी को अंदर झांकने तक नहीं देती और न कोई किले से बाहर झांक पाता है।

यह अनुभव मेरा है, इस जगह को लेकर, इस किले को लेकर। वो किला जो मुझे बेहद अकेला दिखाई देता है। कई बार पहुंच से दूर तो कई बार पहुंच के पास।

जब मैनें सोचा कि मुझे यहां पहुंचना है तो मैंने और मेरी साथी ने ई-रिक्शा लिया। रास्ता, गिट्टियों से बिखरा था, धूल उड़ रही थी और आसपास एक दम शांति। रिक्शे से उतरकर जब किले की तरफ बढ़ी तब भी यह शांति मेरे साथ ही थी।

पास में एक गांव देखा जो किले के अंदर जाने के दरवाज़े से बस दस मिनट की दूरी पर बसा हुआ था। किले का पहला दरवाज़ा खोला जो लोहे से बना हुआ था। आस-आस एक दम सन्नाटा। मेरे और मेरे साथी के अलावा वहां सिर्फ दो गॉर्डस पानी के फिल्टर के पास बैठे हुए दिखाई दिए।

ये भी देखें – गढ़वा किला: ग्रामीण क्षेत्रों के भीतर बसा ‘1750’ में बना किला

वहां कुछ कमरे बने हुए थे जिसे देखकर लग रहा था कि शायद गार्ड्स वहीं रहते हैं। अपने साथ ले गए बैग को हमने गार्ड के पास जमा कर दिया और अंदर सिर्फ पैसों वाला पर्स और फोन लेकर गए। किले में इसके आलावा कोई भी चीज़ लेकर जाना मना है।

किले के दरवाज़े की तरफ आगे बढ़ते हुए दो शिलालेख दिखाई दिए जिन्हें देखकर लग रहा था कि उन्हें बनाये हुए ज़्यादा समय नहीं हुआ है। एक पत्थर पर हिंदी व अंग्रेजी में किले के खुलने और बंद होने का समय लिखा हुआ था।

स्मारक खुलने का समय – सूर्योदय
स्मारक बंद होने का समय – सूर्यास्त

महानिदेशक – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली

मन में सवाल आया कि आखिर किले का सूरज से क्या रिश्ता है? कहीं सूरज की किरणें किले के किसी हिस्से में अपना कोई राज़ तो नहीं खोलती जो हम जैसे इंसान देख नहीं पाते? बहुत कुछ सोचने लगी फिर बोला खैर आगे बढ़ते हैं।

दूसरे पत्थर पर गढ़वा दुर्ग के इतिहास और उससे जुड़ाव के बारे में लिखा हुआ था कि उसे किसने बनाया और किले में क्या-क्या चीज़ें हैं जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे।

गढ़वा किले का इतिहास

मौजूदा जानकारी के अनुसार, गढ़वा किला लगभग दो किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। किले के अंदर किसी भी तरह की गंदगी फैलाने के लिए सख्त जुर्माना भी रखा गया है।

किले के अंदर घुसने पर भी वो शांति जो पूरे रास्ते मेरे साथ थी, वो किले के अंदर भी दिखाई दी। शांति और किले का अकेलापन, जहां शायद मुझ जैसे मुसाफिर कभी-कभार आकर इनसे गुफ्तगू कर लिया करते हैं।

किला क्षतिग्रस्त था। किले की अंदर की दीवारें,भवन,कई मंडप व मूर्तियां अपना स्वरूप खो चुकी थीं। बिखरी ईंटें और अधूरापन किले के हर हिस्से में देखी जा सकती है।

पुरातत्व विभाग द्वारा किले के बाहर पत्थर पर लिखी गई जानकारी के अनुसार,यहां पाए गए अवशेष गुप्तकालीन के समय के हैं। इस जगह से चन्द्रगुप्त, कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त काल के सात अभिलेख मिले हैं।

पाए गए अभिलेख बताते हैं कि पहले इस जगह का नाम ‘भट्टा ग्राम” था जो गुप्तकाल में एक समृद्ध नगर हुआ करता था।

किले के पश्चिमी हिस्से में गर्भगृह और स्तंभों पर टिका हुआ मंडप के रूप में बनाया गया मंदिर है। इसके पूर्वी भाग में दो बड़े जलाशय मौजूद हैं।

Garhwa Fort is fighting to stay alive since the medieval period

                                                                                                         गढ़वा किले के जलाशय की तस्वीर जिसमें अब काई जम चुकी है व पानी गंदा हो चुका है

यह जलाशय कितने गहरे हैं इसकी तो कोई जानकारी नहीं है लेकिन जिस तरह से जलाशय को बनाया गया है, वह बेहद आकर्षक है। जलाशय या उसे तालाब कह लें, उसका रंग काई जमने की वजह से हरा हो चुका है। उसमें गंदगी भी देखी जा सकती है।

जलाशय तक पहुंचने के लिए कई रास्ते और उनसे जुड़ी सीढ़ियां बनाई गई हैं जिनके कोण रोचक है। उनकी आकृति और आकृति को ढांचे देने के लिए किए गए कटाव सराहनीय है। हालांकि, इन्हें इतने शानदार तरह से बनाने वाले कलाकारों के बारे में कहीं भी बात नहीं की गई है और न ही इसकी कोई जानकारी मौजूद है।

दूसरा जलाशय भी पहले वाले जलाशय का ही प्रतिबिंब है।

गढ़वा किले में है गुप्तकाल से मध्यकाल की मूर्तियां

Garhwa Fort is fighting to stay alive since the medieval period

                                                                                        मध्यकालीन की मूर्तियां जिन्हें किले में एक अलग कमरे में सलाखों के अंदर संरक्षित करके रखा गया है

पुरातत्व विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार,यहां मध्यकालीन के समय के कई भवनों के अवशेष भी है। यहां गढ़वा,रामनगर और रिखियन से बड़ी संख्या में मूर्तियां हैं जो गुप्तकाल से लेकर मध्यकाल तक संबंधित हैं। इन मूर्तियों को मूर्ती शाला में रखा गया है।

यह मूर्तियां लोहे की सलाखों के पीछे एक दायरे में बंद आपको दिख जाएंगी। इसमें आपको भगवान हनुमान, भगवान विष्णु के 10 अवतारों, व अन्य कई देवी-देवताओं की मूर्ति दिखाई देंगी। किसी मूर्ति के ऊपर का हिस्सा नहीं है तो किसी मूर्ती के सिर्फ अंश के हिस्से समेटकर ज़मीन पर ढांचागत तरीके से रख दिए गए हैं।

इन पूर्तियों के नीचे GF-25,GF-26,GF-27 जैसे अक्षर व नंबर भी आपको लिखे हुए दिखाई देंगे। यह नंबर इनके अस्तित्व से जुड़े हैं या ये कुछ और है, इसकी खोज ज़ारी है।

                                                                              गढ़वा किले में मौजूद मंडप के द्वार की तस्वीर जहां नृत्य करती महिलाओं के साथ खम्भो पर नक्काशी की गई है

जब हम मंडप के आकार वाले मंदिर को देखते हैं तो उसके दरवाज़ें पर बेहद बारीकी से नकाशी के साथ महिलाओं की मूर्तियों को दीवार पर उकेरा गया है।

कई मंडप के सिर्फ स्तंभ रह गए हैं जिसे शायद अब और मंडप नहीं कहा जा सकता। मंडप का हर हिस्सा एक-दूसरे से अलग होता हुआ साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। ऐसा लगता है कि वह बस किसी तरह से खड़ा हो रखा है।

Garhwa Fort is fighting to stay alive since the medieval period

                                                                                                                                                                क्षतिग्रस्त हो चुके स्तंभ की तस्वीर

किले के परिसर में मौजूद स्तंभों पर फूलों व भगवान गणेश के स्वरूप की नकाशी की गई है। हालाँकि, कुछ को स्पष्ट देखा जा सकता है और कुछ अब पहचान में नहीं आते।

इस किले का साथ अभी भी फिलहाल यहां खड़े स्तंभ और दीवारें दे रही हैं लेकिन परिसर में बैठी शांति और अकेलापन किले की कहानी का अहम हिस्सा रहे हैं।

इतिहासकर्ता, पुरातत्व की पढ़ाई करने वाले और नई-नई जगहों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए इस किले के पास बताने के लिए काफी कुछ है। कुछ चुप्पी,कुछ किस्से और शायद साथ भी!

 

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