पटना जिले के हिन्दुनी गांव की निवासी हीरा देवी बताती हैं कि, “बाल्टी तो दे दिया, 2 महीने का 60 रुपए भी ले लिया, उसके बाद कुछ हो नहीं रहा था। अब खुद ही बाहर डालने जाना पड़ता है, जब कचरे वाला आएगा नहीं तो घर में कचरा नहीं न रखेंगे, बाहर फेंक आते हैं।”
लेखन – सुचित्रा
Bihar Free Balti Yojana : बिहार सरकार द्वारा राज्य को साफ सुथरा रखने के लिए मुफ्त बाल्टी योजना की शुरुआत साल 2022 में की गई थी। इस योजना के तहत प्रत्येक पंचायत के नागरिकों को नीली व हरी रंग की दो बाल्टियां फ्री में दी गई। दो तरह की बाल्टियां इसलिए दी गई हैं ताकि गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रखा जा सके। गीले कचरे के लिए हरे रंग की बाल्टी और सूखे कचरे के लिए नीले रंग की बाल्टी दी गई। इस योजना का लाभ ऑफलाइन मिल रहा है, इसमें ऑनलाइन प्रक्रिया का झंझट नहीं है। इसमें दस्तावेज के तौर पर आधार कार्ड, राशन कार्ड, मोबाइल नंबर की आवश्यकता है।
इस योजना का लाभ बिहार के लोगों को तो मिला, पर वो बाल्टियां सच में कूड़ा रखने के काम आ रही हैं? या इसका इस्तेमाल किसी और उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। खबर लहरिया के इस आर्टिकल में आपको जानने को मिलेगा।
इस योजना की पहल तो बिहार सरकार ने इसलिए ही की थी, ताकि स्वच्छ भारत मिशन को बढ़ावा मिले और गंदगी न फैलें। लेकिन यह योजना असफल होती दिखाई दे रही है। लोगों को फ्री में बाल्टियां तो मिली लेकिन कचरा आज भी गलियों और सड़कों पर पड़ा हुआ है। लोगों ने कचरे को उठाने के लिए 30 रुपए महीना भी दिया, उन्हें रशीद भी मिली पर कचरा उठाने की प्रक्रिया कुछ ही दिन चली, बाद में सफाई कर्मचारी कचरा उठाने नहीं आये। जिसके बाद अब कुछ लोग कचरा बाहर ही फेंकने जाते हैं। कुछ लोग उन बाल्टियों में अपनी जरूरतों का सामान रखते हैं।
पटना जिले के हिन्दुनी गांव की निवासी हीरा देवी बताती हैं कि, “बाल्टी तो दे दिया, 2 महीने का 60 रुपए भी ले लिया, उसके बाद कुछ हो नहीं रहा था। अब खुद ही बाहर डालने जाना पड़ता है, जब कचरे वाला आएगा नहीं तो घर में कचरा नहीं न रखेंगे, बाहर फेंक आते हैं।”
इस गांव के लोग नहर में कचरा फेंकने को मजबूर हैं क्योंकि यहां सफाई के लिए कोई आता नहीं। जब बाल्टी दी गई तो बड़ी-बड़ी बातें की गई कि गांव को साफ़ रखना है लेकिन नजर उठा के देखेंगे तो कचरा मिलेगा।
पार्वती बताती हैं, “पहले कचरा रखते थे उसमें लेकिन अब उसमें पानी रखते हैं। बाल्टी दी है तो कचरा उठाने के लिए आना चाहिए न, यहां कोई आता नहीं है। झाड़ू लगाने वाला नहीं आता है यहां कचरा वाला क्या ही आएगा।”
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सफाई कर्मचारी को समय पर नहीं मिला पैसा
खबर लहरिया ने सफाई कर्मचारी से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि समय से पैसा नहीं मिलता है इसलिए छोड़ दिए कचरा उठाना। हिन्दुनी गांव के सफाई कर्मचारी रमन मांझी बताते हैं कि, ” हमेशा बोलते हैं पैसा बढ़ाएंगे लेकिन तीन महीने का पैसा बाकी है इसलिए छोड़ दिए।”
तो वहीं महिला सफाई कर्मचारी मुस्कान कहती हैं, “डेढ़ साल काम करते हो गया, झाड़ू लगाने का काम करती थी। पहले समय से पैसा मिलता था लेकिन एक महीने से गड़बड़ कर दिया है।”
अंजू देवी वार्ड सदस्य का कहना है कि “मुखिया को मिलाकर 14 वार्ड हैं हम, बैठक हुई थी तब बताया गया था बाल्टी फ्री में देनी है। अब गांव वाले उसमें कचरा रखें या कुछ उसमें हम क्या कर सकते हैं। गांव में योजना का कोई असर नहीं हुआ आज भी गंदगी वैसी ही है।”
सरकार गांव के विकास के लिए योजनाएं लाती तो हैं पर क्या सच में इसका असर हो रहा है? इसकी जाँच तक करने कोई नहीं आता है। क्या सच में इन योजनाओं का उद्देश्य पूरा हो रहा है? अगर नहीं, तो ये योजना सिर्फ नाम के लिए शुरू की जाती है। आज भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए जो चश्मा दर्शया गया है वो वास्तव में गंदगी से धुंधला ही है जिसे हटाने की आवश्यकता है, सच में भारत को स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। बढ़ते प्रदूषण का एक कारण यह भी है कि लोग खुले में कचरा फेकतें हैं। कचरे से निकलने वाली जहरीली गैस जानलेवा बीमारियों का कारण बनती है।
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