रंगों का त्यौहार होली आने वाली है. हर साल की तरह इस बार भी होली के त्योहार को रंगीन बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. होली के खुशनुमा रंग कई बार केमिकल और मिलावट की वजह से लोगों की जिंदगी को बदरंग कर देती है, लेकिन महोबा जिला के कस्बा कुलपहाड़ की रहने वाली 26 वर्षीय रूपा सिंह की पहल ने होली को सुखद और सुरक्षित बना दिया है. इनके बनाये रंग लोगों की जिंदगी में रंग घोल रहे है. वो भी बिना किसी तरह के नुकसान के. तो आइए मिलते हैं रूपा से और जानते हैं की वह कैसे रंग बना रही हैं…
जिला महोबा ब्लाक जैतपुर कस्बा कुलपहाड़ के रहने वाली 26 वर्षीय महिला ने बताया है कि अपने बुंदेलखंड का खास मार्च का महीना होता है जिससे अति खुशी मिलती है
रूपा सिंह 22 साल की उम्र से उन्होंने गुलाल बनाना सीखा है 1 साल तो उन्होंने अलग जगह से ट्रेनिंग भी ली है गुलाल बनाने के लिए अब अपने ही घर में बना रही हैं उसका कहना है कि हमारे बुंदेलखंड का कल्चर माना गया है जब होली आती है तो इतना ही यह कल्चर होता है कि 8 दिन के आगे से और 8 दिन होली हो जाने के बाद भी रंग गुलाल लोग खेलते रहते हैं और खुशियां मनाते रहते हैं एक दूसरे के डाल कर जिससे रंगलाल डालने से अति प्रेम होता है
मैं 4 साल से गुलाल बनाने का काम कर रही हूं मेरे बचपन के सपने थे कि हम लोगों दुकानों से लेते थे गुलाब और थोड़ा थोड़ा ही मिलता था हमें लगता था कि हमें गुलाल ज्यादा मिले और ज्यादा गुलाल डालकर हम खेले पर हम लोगों को एक एक पुड़िया या दो दो पुड़िया ही दुकानों से खरीदना पड़ता था तभी से हमारे मन में हो गया था कि हम गुलाल बनाएंगे यह कैसे बनता है जैसे ही कुछ दिन बीतने के बाद हमने गुलाल की ही सबसे पहले ट्रेन इंडिया और गुलाल बना रहे हैं होली के 15 दिन आगे से बनाने लगते हैं जिससे महोबा और कुलपहाड़ जैसे कस्बा में सप्लाई करते हैं
गुलाल बनाने के तरीके हैं आरा रोड बाजार से खरीद सकते हैं गौरा पत्थर मंगाइए और हम मंगाते हैं उसी से गुलाल को तैयार करते हैं गुलाल बनाना बहुत आसान चीज होती है जो कोई केमिकल कोई उस तरह की चीजें नहीं होती हैं सिर्फ हाथ का देसी गुलाल बनाते हैं
पहले रंग को पानी में डालते हैं और उसी पानी को अच्छा फल आते हैं जब वह खुल जाता है पानी फिर उसको उतार के ठंडा कर लेते हैं उसके बाद जो आरा रोड गौरव पत्थर का पाउडर होता है उसको उसी में कि नहीं देते हैं गिला गिला बना देते हैं जैसे वह गीला हो जाता है तो थोड़ा बहुत खूब या देते हैं और उसको धूप में फैला देते हैं इतना धूप उसमें लगाते हैं कि वह बिल्कुल सूख जाता है जब सूख जाता है तो उसको हाथों से मिलते हैं और हाथों से मसील के छन से जानते हैं
छन का ही छना हुआ झूला में पैक करवाते हैं
हमें कहीं जाना नहीं पड़ता है गुलाल बेचने के लिए इसको गुलाल खरीदना होता है वह हमारे ही घर से ले जाता है 5 किलो या गुलाल अस्सी नब्बे रुपए का देते हैं और मेरे शुरू से सपने थे गुलाल बनाने की वैसे तो मैं फीचरिंग की तैयारी कर रही हूं फिर भी अभी भी मैं सपने देख रही हूं कि साइत्य में टीचर भी बन गई तब भी मैं गुलाल बनाना नहीं छोडूंगी क्योंकि यह मेरा घर का काम है लेते हैं
और हर महिलाओं को भी कुछ ना कुछ करना चाहिए इतनी योजनाएं निकलती है उन योजनाओं को लाभ भी लेना चाहिए क्योंकि जैसे मैं ने खुद का पैसा लगाकर ट्रेन गेम गुलाल बनाने की ली थी ऐसे सब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना चाहिए उनको बैठा नहीं रहना चाहिए ताकि उनका परिवार आगे बढ़ सके
रागिनी कहती है कि हमारे यहां गुलाल बन रहा है महंगा मिलता है यह यहां बनने से हम लोगों
प्रकाश रानी ने बताया है कि पहले बहुत ज्यादा गुलाल की चला चली थी क्योंकि यह बुंदेलखंड का खास कल्चर हैपहले तो हमने कभी देखा भी नहीं था कि गुलाब कैसे बनता है जब से कुलपहाड़ कस्बे में बनने लगा तो हम देखते हैं कि गुलाल इस तरह से बनता है
गिरजा रानी ने बताया है कि जैसे यह महिला काम कर रही है इसी तरह से सारी महिलाएं अगर काम करने लगे तो जो लड़ाई दंगा। होता है वह ना होए क्योंकि सब लोग अपने अपने काम में व्यस्त था रहेंगे लड़ाई करने का टाइम ही नहीं बचेगा और हमने कभी गुलाल खेलते तो थे बचपन में और आज भी बूढ़े हो या जवान हो रंग भला ही ना डाले लेकिन गुलाल डालके पेर जरूर छूते हैं