लेखन – गीता व सुचित्रा
मेरा नाम गीता देवी है, मैं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की रहने वाली हूं। हाल ही में मैंने दिल्ली से मुंबई का अपना पहला अकेला फ्लाइट सफर किया। यह सफर मेरे लिए किसी सपने जैसा था। नए शहर, नए अनुभव और कई अनजान रास्ते लेकिन सच मानिए, ये सफर सिर्फ रोमांचक ही नहीं बल्कि सीखने वाला भी रहा।
जब मुझे पता चला कि मुझे अवार्ड लेने के लिए मुंबई जाना है और सफर फ्लाइट से करना है तब से मेरे मन में अजीब सी हलचल थी। उत्साह और घबराहट दोनों थी। फ्लाइट पकड़ने से पहले की तैयारी में मैंने अपने परिवार और दोस्तों को बाय कहा और सामान अच्छी तरह से पैक किया। ट्रेन से दिल्ली जाना था। हमारे ऑफिस की HR शिवानी जी ने मेरी फ्लाइट की टिकट बुक कर दी थी लेकिन मेरे दिमाग में एक बात बार-बार घूम रही थी। ‘इंग्लिश नहीं आती, एयरपोर्ट कैसे मैनेज करूंगी? लेकिन फिर खुद को समझाया कि यह अपना ही देश है, रास्ता कहीं न कहीं निकल ही आएगा।
फ्लाइट और ट्रेन पकड़ने का उत्साह
21 नवंबर को मैंने बांदा से संपर्क क्रांति ट्रेन पकड़ी। ट्रेन 22 नवंबर की सुबह 5 बजे दिल्ली पहुंचती है लेकिन उस दिन किस्मत ने थोड़ा इम्तिहान लेना तय कर लिया। ट्रेन लेट हो गई और इसी बीच मेरी सीनियर का फोन आ गया “गीता, एयरपोर्ट जल्दी पहुंचो, फ्लाइट न छूट हो।” यह सुनते ही मेरी धड़कनें तेज हो गईं। उधर, मुझे दिल्ली में होटल पर लड़कियों को छोड़ना था और रास्ते में ट्रैफिक का झंझट अलग लेकिन मैंने ठान लिया था कि हार नहीं मानूंगी। होटल के काम निपटाते हुए मैं किसी तरह एयरपोर्ट पहुंची और वक्त रहते चेकिंग कर ली।
फ्लाइट में विंडो सीट पाकर हुई खुश
दिल्ली का इंदिरा गांधी एयरपोर्ट देखकर मेरी आंखें चमक गईं। पहली बार इतनी बड़ी जगह पर थी। थोड़ी घबराहट हुई लेकिन धीरे-धीरे सब मैनेज हो गया। फ्लाइट में बैठते ही मैं खिड़की के पास वाली सीट देखकर खुश हो गई। आसमान से नीचे की दुनिया देखने का रोमांच ही अलग था। मैंने आसपास के सहयात्रियों से बातचीत की। मुंबई के बारे में सुना और साथ ही किताब पढ़ते हुए सफर का आनंद लिया।
जब फ्लाइट मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज एयरपोर्ट पर उतरी तो उसकी भव्यता देख मैं बस हैरान रह गई। एयरपोर्ट तो पहुंच गई लेकिन असली परीक्षा टैक्सी बुक करने की थी। मुझे नहीं पता था कि किस गेट से टैक्सी मिलेगी। मैं इधर-उधर भटकती रही। कभी गेट नंबर 9 पर तो कभी गेट नंबर 7 पर। आखिरकार एक सज्जन ने बताया कि गेट नंबर 4 से टैक्सी मिलेगी। वहां से होटल जाते वक्त रास्ते में समुद्र के किनारे का नजारा देखकर मेरा दिल फिर से पुराने दिनों की यादों में चला गया।
मुंबई शहर को करीब से देखने की ख़्वाहिश
2012 में मैं अपनी टीम के साथ ट्रेन से मुंबई आई थी। तब हमने शाहरुख खान का घर ‘मन्नत’ देखने की कोशिश की थी लेकिन देख नहीं पाए थे। जब टैक्सी समुद्र के किनारे-किनारे जा रही थी तो मुझे वही रास्ते और नज़ारे बहुत जाने-पहचाने से लग रहे थे। आखिर में मुझसे रहा नहीं गया और मैंने टैक्सी वाले से पूछ ही लिया..“भाई साहब, यह मन्नत है क्या?” टैक्सी वाले ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया..“नहीं मैडम, मन्नत बांद्रा में है ये वह जगह नहीं है।” उसकी बात सुनकर मैं हंस पड़ी लेकिन अंदर से बहुत रोमांचित महसूस कर रही थी।
अवार्ड समारोह
होटल पहुंचते ही मैंने सहेलियों को फोन किया और थोड़ी देर आराम करने के बाद साड़ी पहनकर अवार्ड समारोह के लिए तैयार हुई। साड़ी में खुद को शीशे में देखते ही एक अजीब सी खुशी महसूस हुई। हम सभी सहेलियां साथ में फोटो खींचते हुए अवार्ड लेने पहुंचे। जब हमने स्टेज पर जाकर अपनी फिल्म के लिए अवार्ड लिया तो उस पल की खुशी शब्दों में बयान नहीं कर सकती। उस फिल्म के लिए हमने साल भर मेहनत की थी और आखिरकार हमें उसका फल मिला।
मुंबई से लौटने के बाद दिल्ली में मेरी ‘उड़ान फैलोशिप’ की टीम के साथ घूमने का एक और शानदार मौका मिला। 24 नवंबर का दिन मेरे लिए बहुत खास रहा। हमने क़ुतुब मीनार, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन जैसे ऐतिहासिक स्थलों को देखा और सेल्फी खींच-खींचकर दिन को यादगार बना दिया। दिल्ली की मशहूर सरोजनी मार्केट में खरीदारी करते वक्त तो ऐसा लगा मानो मैं अपने शहर की गलियों में लौट आई हूं। मैट्रो का सफर भी बहुत मजेदार था। भीड़ भले ही थी लेकिन नया अनुभव था।
यह पूरा सफर मेरे लिए सिर्फ एक यात्रा नहीं थी बल्कि एक नई शुरुआत थी। मैंने सीखा कि अगर आप घबराहट को हटा दें और नए अनुभवों को अपनाने के लिए तैयार हों तो दुनिया में कुछ भी मुश्किल नहीं है। चाहे एयरपोर्ट की भीड़ हो, इंग्लिश बोलने वाले लोग हों या रास्ते की चुनौतियां…सबका हल निकल आता है। यह सफर मेरे जीवन का एक ऐसा अध्याय बन गया है जिसे मैं हमेशा अपने दिल में संजोकर रखूंगी।
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