खबर लहरिया Hindi UP NEWS : खेती-किसानी का मौसम शुरू, लोहगढ़िया समुदाय के लोग बना रहे लोहे के औजार

UP NEWS : खेती-किसानी का मौसम शुरू, लोहगढ़िया समुदाय के लोग बना रहे लोहे के औजार

इन दिनों यूपी और बिहार में खेती-किसानी का काम ज़ोरों पर है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के जसरा ब्लॉक, गौहनिया बाज़ार और चित्रकूट सहित आसपास के इलाकों में किसान अपने खेतों में निराई-गुड़ाई का काम कर रहे हैं। इस समय लगभग 80% किसान खेतों में मेहनत कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें हंसिया, खुर्पी, कुल्हाड़ी जैसे पारंपरिक औजारों की सख्त जरूरत पड़ती है।

खुरपी की तस्वीर (फोटो साभार: सुनीता)

रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – सुचित्रा 

इसी कारण लोहगढ़िया की दुकानों में इन औजारों को बनवाने और तेज़ करवाने (फरगाने) वालों की भीड़ देखने को मिल रही है। एक खुर्पी को तेज़ करवाने (फरगाने) का खर्च लगभग 10 रुपए आता है, जबकि नया खुर्पी बनवाने पर करीब 50 रुपए लगते हैं।

इन दिनों चित्रकूट जिले के कुछ गांवों में भी खेती का काम ज़ोरों पर है। ऐसे में गांवों के किनारे-किनारे, खासकर सड़क के पास, कई लोहगढ़िया समुदाय के लोग दुकानें लगाकर किसानों के लिए हंसिया, खुर्पी और कुल्हाड़ी जैसे औजार बना रहे हैं। कुछ किसान उनके पास  पुराने औजारों को तेज़ (फरग) कर रहे हैं।

आपको बता दें लोहगढ़िया समुदाय को बंजारे और घुमंतू भी कहा जाता है क्योंकि इनका कोई स्थायी स्थान नहीं होता। ये अपना लोहे का सामान कुछ महीनों के लिए सड़क पर अस्थायी दुकान लगाकर बेचते हैं और लोहे के सामान बनाने का काम करते हैं।

यहाँ एक दिलचस्प बात यह है कि पुरुषों के साथ महिलाएं भी बराबरी से काम कर रही हैं। गांवों के कई परिवार इस पारंपरिक कार्य में जुड़े हैं। इसमें महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।

महिला हाथ में हसिया खेती का सामान पकड़े हुए (फोटो साभार: सुनीता)

इन लोहगढ़िया को काम करता देख तो हिंदी साहित्य जगत के जानेमाने लेखक केदारनाथ अग्रवाल की कविता “मैंने उसको” याद आ जाती है। कविता कुछ इस तरह से है –

मैंने उसको

जब-जब देखा,
लोहा देखा,
लोहे जैसा–
तपते देखा,
गलते देखा,
ढलते देखा,
मैंने उसको

गोली जैसा
चलते देखा!

ये कविता लोहगढ़िया के जीवन को बयान करती नज़र आती है। आप भी जब भी सड़क किनारे उन्हें लोहे के सामान बनाते हए देखेंगे तो यही लगेगा कि कैसे उनका जीवन भी एक लोहे के सामान के इर्द गिर्द घूमता है। यही तो उनकी कमाई का जरिया है जिससे वे अपना घर परिवार चलाते हैं।

हसिया की तस्वीर (फोटो साभार : सुनीता)

लोहे के समान बनाने की प्रक्रिया

  • इस काम के लिए खास तरह का देशी जुगाड़ इस्तेमाल किया जा रहा है। इस काम को करने के लिए तीन लोगों की ज़रूरत होती है
  • एक व्यक्ति मशीन के सहारे भट्ठी में हवा देने का काम करता है,
  • दूसरा व्यक्ति गर्म लोहे को पकड़ कर रखता है,
  • महिला झूमर (हथौड़े) से गर्म लोहे को पीटती है।

दुकान पर लोहे के औजार बनाने का काम चल रहा है (फोटो साभार: सुनीता)

इस तरह मेहनत और समन्वय से एक हंसिया या खुर्पी तैयार किया जाता है।

काम और खतरा

लोहे के औजार बनाना आसान बात नहीं है, यह काम जोखिम भरा होता है। गर्म लोहा पीटते समय कभी-कभी उसके छोटे टुकड़े उड़कर शरीर से लग जाते हैं, जिससे जलने की संभावना बनी रहती है। इसके बावजूद लोहार अपना काम पूरी लगन से करते हैं, क्योंकि यही उनका मुख्य रोजगार है और इसी से उनकी रोज़ी-रोटी चलती है।

गांव की एक महिला, रानी, कहती हैं “हम लोग खेती-किसानी करते हैं। सबसे ज़्यादा ज़रूरत हंसिया, खुर्पी और कुल्हाड़ी की पड़ती है। खासकर जब बाजरा, धान, तिल और अरहर जैसी फसलें होती हैं, तब ये औजार बहुत काम आते हैं।”

खुरपी को आग में पकाते हुए (फोटो साभार : सुनीता)

खेती के काम में इस्तेमाल

खेती में किसानों को इन औजारों की अत्यधिक आवश्यकता होती है और लोहार उनके लिए ये ज़रूरी साधन उपलब्ध करवा रहे हैं। फसल काटनी हो या फिर जानवरों के लिए हरी घास काटनी हो तो लोहे के बने हुए खुरपी और हसिया काम आते हैं। इन्ही के माध्यम से खेती से जुड़ा काम आसान और तेजी से हो जाता है।

 

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