जींद के खनौरी बॉर्डर पर बैठे किसान ने कहा, “सरकार हमारी बातों पर गौर नहीं कर रही इसलिए हमें मज़बूरी में सड़कों पर आना पड़ रहा है। हमारे घरों में भी बहुत काम है, सब अकेले किसान हैं। कई बुज़ुर्ग आये हैं,कई बच्चे, सब मज़बूरी में आये हैं।”
किसानों को अपनी फसलों की सही कीमत मिल जाती तो उन्हें खेती के लिए बैंक से कर्ज़ नहीं लेना पड़ता, उनके फसलों का दाम कोई और नहीं लगा रहा होता, इस मौसम में ओलावृष्टि, कोहरे और ठंड से फसल बर्बाद होने पर अगर सरकार का साथ मिलता तो किसान अपना घर कभी नहीं छोड़ते लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रस्त किसानों की इन परेशानियों को क्या कोई देख रहा है?
अगर एमसीपी कानून बनेगा तो यह हर क्षेत्र और वर्ग के किसानों को कुछ हद तक राहत देगा, यह तो नहीं कहा जा सकता कि कितना? पर हाँ, अगर कानून हो तो कुछ तो होगा और इसलिए ही तो इतने बड़े स्तर पर दिल्ली के ‘शंभू बॉर्डर’ पर किसानों का आंदोलन ज़ारी है जिसे फिलहाल कुछ देर के लिए आरोप के अनुसार हरियाणा पुलिस की हिंसा के परिणामस्वरूप युवा किसान की मौत/ कथित तौर पर हत्या के बाद कुछ देर के लिए रोक दिया गया है।
जींद की महिला किसान खबर लहरिया से बातचीत में सवाल करते हुए पूछती हैं,
“जब किसानों की मांगे घर बैठे पूरी हो जाती तो उन्हें दिल्ली जाने की क्या ज़रूरत है”….
शायद सबका यही सवाल है…..
अगर घर बैठे किसानों की मांगे पूरी हो जाती तो वह कभी “दिल्ली चलो” की तरफ कूच नहीं करते।
देश भर के किसान अपने घरों,परिवारों को छोड़कर सड़क पर दोबारा से इसलिए उतरे हैं। दिल्ली के शंभू बॉर्डर पर मुश्किलों से इसलिए लड़ रहे हैं ताकि वो अनाज जो उन्होंने उगाये हैं, सरकार उसके लिए एमएसपी कानून बनाये। लखीमपुरी में हुई हिंसा को लेकर उन्हें इंसाफ दे, कर्ज़ा माफ़ करे, इत्यादि…. उस सरकार से जो उनसे बनी है और जो उन्हें पोषित कर रही है।
“दिल्ली चलो” के इस कूच में जहां किसानों ने प्लेट में भोजन रखा तो सरकार ने उनके रास्ते में कीलें बिछा दीं। शांति से आगे बढ़ना चाहा तो उन पर धुएं गैस के गोले छोड़ दिए। पैलेट बुलेट्स से उनके शरीर को घायल कर दिया। ये किसान जो देश को पाल-पोष रहे हैं,उनके रस्ते को सीमेंट से मज़बूत की हुई ईंट की दीवारों, बैरिकेड्स और ड्रोन से हमला कर उन्हें विरोधी बना दिया गया, क्यों? क्योंकि वो थमे नहीं, कहते गए, कहते आ रहे हैं कि “सरकार उनकी मांग पूरी कर दे, वो वापस लौट जाएंगे”। उन्हें यह सब करने की ज़रूरत नहीं है पर…..
पटना के एक किसान ने खबर लहरिया से बात करते हुए कहा था कि “उनके पास इतना हक़ नहीं कि वे खुद अपनी फसलों पर एक कीमत लगा सकें। उनके अनाज की कीमत उन्हें छोड़कर हर कोई लगाता है।”
वहीं जींद के खनौरी बॉर्डर पर बैठे किसानों ने बताया कि पुलिस द्वारा उन पर लगातार आंसू गैस के गोले व पैलेट गोलियां चलाई जा रही हैं। सैकड़ों की संख्या में किसान घायल हुए हैं। किसी की आँख तो किसी का पूरा शरीर छलनी हो चुका है।
जींद के खनौरी बॉर्डर पर बैठे अन्य किसान ने कहा, “सरकार हमारी बातों पर गौर नहीं कर रही इसलिए हमें मज़बूरी में सड़कों पर आना पड़ रहा है। हमारे घरों में भी बहुत काम है, सब अकेले किसान हैं। कई बुज़ुर्ग आये हैं,कई बच्चे, सब मज़बूरी में आये हैं।” मज़बूरियों में छूटे घर, और लोग बहुत कुछ कहते हैं शायद कुछ इस कविता की तरह…
“कोई यूं ही घर नहीं छोड़ता”
कोई अपना आराम और घर
यूंही नहीं छोड़ता,
नहीं छोड़ देता
अपने शरीर को छलनी होने के लिए,
नहीं करता इंतज़ार
हर सुबह का
कि वो लड़ सके!
क्योंकि हर किसी की सुबह नहीं होती !
हर कोई आखिर तक नहीं लड़ पाता !
कोई यूंही अपना घर नहीं छोड़ता!
छोड़ता है तो इसलिए
कि जी सके,
कि मांग सके,अपना हक
अपना अधिकार
कि चुप्पी में सब छिन न जाए
इसलिए हर रोज़ लड़ता है,
अपने घर से दूर होकर,
अपना घर छोड़कर,
क्योंकि
कोई यूंही नहीं अपना घर छोड़ता !
कोई यूंही नहीं अपना यौवन छोड़ता
अपनी वृद्धावस्था
और अपनी दैनिक ज़िंदगी
क्योंकि छोड़ना आसान नहीं होता,
क्योंकि छोड़ देने के बाद
फिर लौटना नहीं होता
क्योंकि हर कोई लौट नहीं पाता,
न यौवन, न ज़िंदगी के बचे कुछ आखिरी दिन
क्योंकि रास्ता किसी का नहीं होता,
रास्ते सत्ता से चलते हैं
सत्ता ताकत से
हुजूम, सत्ता को ललकार रहा है,
ललकार चीख लगाती है
पर सत्ता सोने के ढोंग में है
कि आवाज़ टकराकर
उन पर आघात कर रही है
पर उनके पास मलहम नहीं है
जो आराम दे सकता है,
वो आहत कर रहा है
और वे अपना आराम
अपना घर
अपनी दैनिकता
सब छोड़ आये हैं
क्योंकि अब लौटने पर भी
वो घर न जा सकेंगे!!
किसानों की फसल पर सरकार दाम लगाती है-
खबर लहरिया की 21 फरवरी की रिपोर्ट में पटना जिले के फुलवारी ब्लॉक, सुमेरा गांव के किसान रमानुज कुमार का कहना था कि इस साल ठंड में उनकी कई फसलें बर्बाद हो गईं। वह 4 बीघा में खेती करते हैं जिसमें से 2 बीघा पट्टे पर है।
“प्याज की फसल को लेकर कहा, पहले प्याज़ बहुत रोपते थे लेकिन 4-5 सालों में मोदी जी ने प्याज रोपना छोड़वा दिया। जब किसान दो रूपये प्याज़ बेचने जाता है तो मोदी जी 40 से 50 प्रतिशत किसानों की संपत्ति पर टैक्स लाद देते हैं ताकि किसान का प्याज बिके ही नहीं और हमको सस्ता मिल जाए।”
आगे कहा, “हम किसानों की फसलों का कोई रेट फिक्स करने वाला है ही नहीं। कंपनी का माल है 20 रूपये में निकलता है फिर सरकार टैक्स लाद देती है और मार्किट में यह 40 से नीचे बिकता ही नहीं है।”
यह भी कहा, “किसान की चीज़ है, हम लोग जाते हैं तो आप लोग दाम लगाते हैं। सरकार रेट लगाता है, जनता लगाती है, बनिया लगाता है। जो सरकार 40 परसेंट का टेक्स लगाती है,उसकी कटौती भी हम ही लोग से कर लेती है।”
रमानुज का कहना था कि अगर मार्केट में उन्हें सही दाम मिलता है तो वहां भी सरकार आकर बैठ जाती है। “हम लोग खेती कर रहे हैं लेकिन हर साल एक-दो कट्ठा खेत बेच रहे हैं। बैंक का लोन है क़र्ज़ है, कहां से दें, बचेगा तभी तो देंगे।”
बता दें, एमएसपी व्यवस्था एक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करने के लिए है, जिसमें सरकार सीधे किसानों से फसल खरीदती है यदि बाजार मूल्य उसके द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम हो जाता है।
सही भाव मिलता तो कर्ज़ नहीं लेते – किसान
इस साल भी किसानों ने खेती में बेहद नुकसान झेला है। फसलें कोहरा, ओले और सर्दी से बर्बाद हो चुके हैं। कर्ज़ ने उनके कंधों को इतना झुका दिया है कि खेत जोतने का भार भी वो नहीं उठा पा रहे। महोबा जिले के जैतपुर ब्लॉक के भमरोरा गांव में इस महीने इतनी ओलावृष्टि हुई कि उनकी सरसों,मटर इत्यादि की कई फसलें बुरी तरह से बर्बाद हुई हैं। पूरी खबर को को आप नीचे दिए गए लिंक के ज़रिये जाकर देख सकते हैं…..
बांदा जिले के बबेरू ब्लॉक के किसान लालू कहते, “सरकार किसानों को समय से बिजली पानी और उनके अनाज का सही भाव देती जाए तो कर्ज लेने की जरूरत ही नहीं है।”
और किसान अपने इस आंदलोन में यही तो मांग रहे हैं…. अनाज का सही भाव और उसके लिए कानून।
किसानों का कहना, उनका कर्ज़ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होता रहता है। उदाहरण के लिए, अगर पिता ने कर्ज लिया है,तो उनके बेटा या पोते- कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष करते हैं पर बैंक का कर्ज नहीं चुका पाते। कुछ किसानों को आर्थिक तंगी और खेती में पैदावार की कमी मजबूर कर देती है, कर्ज ना भरने पर और इस तरह किसान बैंक के कर्ज़ तले दबते चले जाते हैं।
मांगे पूरी हो जाती तो किसी की मौत नहीं होती
केंद्र की सरकार ने 2020-21 में किसानों द्वारा शुरू किये आंदोलन को खत्म कराने को लेकर कहा था कि किसानों की जो मांगे हैं, उसे वादे के अनुसार पूरा किया जाएगा पर उन्होंने वह वादा नहीं निभाया।
किसानों के दिल्ली कूच की राह में प्रशासन की क्रूरता प्रत्यक्ष रूप से दिखी। एक तरफ प्रशासन बात करके समाधान देने का दिलासा देती रही। तीन से चार राउंड की बातचीत के बाद भी कुछ नहीं हुआ, वहीं दूसरी तरफ लगातार उन पर हमले होते रहे, करवाये जाते रहे। सैकड़ों किसान घायल हो गए और हो रहे हैं, तीन किसानों की मौत हो गई। मौत नहीं, उन्हें मार दिया गया।
मकतूब मीडिया की हेडलाइन ने 21 फरवरी की रिपोर्ट में अंग्रेजी में इसे लिखा, “24 साल के किसान को हरियाणा पुलिस हिंसा में खनौरी बॉर्डर पर मार दिया गया”। मृत 24 वर्षीय युवा किसान का नाम शुभकरन बताया गया।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले 16 फरवरी को शंभू बॉर्डर पर धरना दे रहे 70 साल के किसान ज्ञान सिंह की दिल की धड़कन रुकने से मौत हो गई। 18 फरवरी को, एक अन्य किसान, 72 वर्षीय पटियाला के मंजीत सिंह की खनौरी में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई।
अगर मांगे पूरी हो जाती तो युवा किसान की इस तरह से मौत नहीं होती। अगर मांगे पूरी हो जाती तो बुज़ुर्ग किसान की आंदोलन स्थल पर अपने परिवार से दूर शायद मौत नहीं होती।
केंद्र की सरकार अगर मांगे पूरी कर देती तो किसान ये बर्बरता न देख पातें और उन्हें सरकार के वादों पर विश्वास रहता। वे लगातार उनसे जुड़े अधिकारों की पूर्ती के लिए सरकार से दरख्वास्त कर रहे हैं। हिंसा के लिए न्याय की उम्मीद कर रहे हैं पर उनके पास सरकार का इतना साथ भी नहीं कि उनके किसान साथियों के साथ हुई हिंसा के लिए न्याय मांग सकें। अपने दर्दों की दवा मांग सकें क्योंकि मांगो में देरी व केंद्र के साथ बातों में ऐसा कुछ निकलकर नहीं आ रहा है, जिससे किसान संतुष्ट हो सकें।
अतः, क्या हमारे देश की पहचान कृषि प्रधान देश की बजाय कुर्सी प्रधान हो गई है? हरिशंकर परसाई ने कहा है……
कुर्सी प्रेमियों का कृषि प्रधान देश है भारत..!
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