किसानों ने अपनी समस्या का हल निकाल खेती के नए तरीके और आये बढ़ाने के साधन खुद ही ढूंढ़ लिए हैं।
देश भर में किसानों की समस्या किसी से भी छुपी नहीं है। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी मंडियां तो कभी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने की वजह से किसान अच्छी पैदावार नहीं कर पाता। जो की धीरे-धीरे उनकी चिंता का विषय बन जाता है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के किसानों ने अलग तरह की खेती करने की ओर अपने कदम बढ़ायें हैं। जिससे खेती के तरीके के साथ-साथ उससे होने वाले पैदावार में भी काफी बदलाव देखने को मिलेगा। तो आइये जानते कुछ ऐसे किसानों के बारे में जिन्होंने नई फसलों को उगाने के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने का भी काम किया।
चित्रकूट – काले गेहूं उगाने की करी शुरुआत
खबर लहरिया ने 11 अप्रैल की अपनी रिपोर्टिंग में चित्रकूट के दो किसानों के बारे में बताया। जिन्होंने जैविक खेती करने की शुरुआत की है और वह इसके ज़रिये काले गेहूं की फसल उगा रहे हैं। चित्रकूट जिले के ब्लॉक मऊ गाँव चित्रवार मजरा रामू का पुरवा में दोनों किसान रहते हैं। जिनका नाम उदित नरायण तिवारी और जितेंद्र सिंह चुन्नू है।
उदित नरायण तिवारी कहते हैं कि पिछले साल उन्होंने कई राज्यों में काले गेहूं के बीज के बारे में पता किया। लेकिन उन्हें कहीं नहीं मिला। फिर पंजाब के मोहाली से उन्होंने बीज मंगवाया। वह कहते हैं कि उन्होंने सुना था कि यह गेहूं प्रोटीन युक्त है। इसकी खेती उन्होंने जैविक खाद के ज़रिए की है। जिसमें गोबर, गौमूत्र, बेसन, गुढ़ आदि चीज़ों का इस्तेमाल किया गया है।
वह कहते हैं कि उन्होंने सुना था कि काला गेहूं रोगों को दूर करने का काम करता है। जैसे की मधुमेह, रक्तचाप, पेट संबंधी बीमारी आदि। उन्होंने 50 किलो बीज मंगवाया था। जिसमें से उन्होंने 10 से 12 किलो बीज उनके मऊ में रहने वाले दोस्त को दिया। वह हर दूसरे-तीसरे दिन फसलों को देखते हैं।
दूसरे किसान, जितेंद्र सिंह चुन्नू जो काले गेहूं की खेती करते हैं। उनका कहना है खबरों के द्वारा उन्हें इसके बारे में पता चला। जहां उन्होंने काले बीज को लेकर पढ़ा था। वहीं बीज मंगवाने के लिए नंबर भी दिया गया था। फिर किसान उदित नरायण तिवारी की मदद से जितेंद्र ने भी अपने लिए बीज मंगवाए।
वह कहते हैं कि उन्होंने खबर में पढ़ा था की काला गेहूं कैंसर आदि बीमारियों के लिए भी काम करता है। इसलिए उनका उद्देश्य था कि क्यों न एक बार फसल उगाकर देखा जाए। इस समय उनकी 1 बीघा ज़मीन पर काला गेहूं लगा हुआ है।
चित्रकूट के उप कृषि निदेशक टी. पी. शाही कहते हैं कि पहली बार चित्रकूट में काला गेहूं उगाया जा रहा है। वह कहते हैं कि इस गेहूं को उगाने का यह फायदा है कि अन्य गेहूं की ही तरह इसकी पैदावार होती है। इस गेहूं में प्रोटीन की मात्रा सामान्य गेहूं से ज़्यादा होती है। वह कहते हैं कि यह अभी वैज्ञानिक तौर पर तो साफ़ नहीं हुआ है। लेकिन इस गेहूं में मीठापन ( शुगर) की मात्रा कम होती है। जो की मधुमेह वाले लोगों के लिए बेहतर है।
वह कहते हैं कि अन्य किसानों ने भी बीजों की मांग के लिए उनसे सम्पर्क किया है। जिसे देखते हुए वह संस्था की मदद से एक-दो साल में आम जनता के लिए भी काले गेहूं के बीज उपलब्ध कराने का काम करेंगे। ( इस खबर पर की हुई रिपोर्ट आप नीचे दिए हुए लिंक पर जाकर देख सकते हैं।)
टीकमगढ़ : अनार की खेती से बढ़ सकती है आय
खबर लहरिया की 6 अप्रैल की रिपोर्ट में दिखाया गया कि किसान किस तरह से अनार की पैदावार बढ़ा सकते हैं। यूपी के टीकमगढ़ जिले के जतारा ब्लॉक के गाँव ताललिधौरा में रहने वाले बालचंद अहिरवार ने अनार की खेती करने और उसके पैदावार को बढ़ाने का तरीका बताया है। जिसमें उन्हें भी कामयाबी मिली है।
बालचंद का कहना है कि उन्होंने आधे एकड़ में अनार की खेती करी है। जिसकी शुरुआत उन्होंने 120 पौधे लगाकर करी थी। उन्होंने बताया कि मटर, चने, गेहूं की फसल के बर्बाद होने की संभावना रहती है। अगर बारिश कम या ज़्यादा हो जाए तब भी यही खतरा रहता है कि कहीं पूरी फसल खराब न हो जाए। इसलिए सृजन नाम की एक संस्था ने इन किसानों को सुझाव दिया कि क्यों न वे फलों की खेती करें। जिसमें उन्हें आर्थिक लाभ भी ज़्यादा मिलेगा और फसल खराब होने की चिंता भी नहीं रहेगी।
रिपोर्ट के अनुसार किसानों ने बताया कि अनार की खेती में समय तो लगता है क्यूंकि ढाई-तीन साल में जाकर इसके पेड़ तैयार होते हैं। लेकिन इससे मुनाफ़ा बहुत होता है। यह किसान साल भर में 20 हज़ार तक अनार की खेती से कमा लेते हैं। दूर-दूर से खरीददार भी आते हैं इन फलों को खरीदने के लिए।
गाँव दोर के मंगलसिंह घोष कहते हैं कि इस साल उन्हें अनार लगाए हुए तीन साल हो गए। अगस्त से पौधों में फल आना शुरू हो जाएंगे। जिससे की लगभग 10 क्यूंटल तक की फसल निकलेगी।
सृजन संस्था के अधिकारी कमलेश ने बताया कि जतारा ब्लॉक के करीब 150 किसान ऐसे हैं जिन्हें अनार की खेती करना सिखाया गया है। इस संस्था का यह उद्देश्य था कि वे लोगों को फलों की खेती के फायदे समझाए। गेहूं या दालों की खेती करने के बजाय अनार और अमरुद की खेती कर किसान अपनी आय बढ़ा सकें। यह संस्था किसानों को प्रशिक्षण देती है कि कैसे वे फलों की खेती अच्छे से कर सकते हैं। ( इस खबर पर की हुई रिपोर्ट आप नीचे दिए हुए लिंक पर जाकर देख सकते हैं।)
बाँदा : किसान के बेटे ने बनाई महुआ इकठ्ठा करने की नई तकनीक
जिला बांदा के सबसे पिछड़े क्षेत्र कहे जाने वाले नरैनी ब्लॉक के सढा़ ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले छोटे से मजरा छतफरा के रहने वाले किसान के बेटे विनय कुमार ने नई तकनीक निकाली है। जो की देखते ही बनती है। विनय का यह कोई पहला काम नहीं है। इससे पहले भी विनय ने और भी चीजें बनाई है। जैसे कि पहले शुरुआती दौर में उसने किसानों का आनाज छानने के लिए एक छन्ना बनाया था ताकि किसानों का समय बच सके।
एक व्यक्ति बस डालने का काम करे, पकड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके बाद उसने कोरोना काल में सैनिटाइज़र मशीन बनाई थी। जिसमें बटन लगाने के बाद उसको पहन लो और अपना काम करते रहो। हाथ अपने आप सैनिटाइज़ होते रहेंगे।अभी हाल में ही उसने किसानों के लिए एक जाल बनाया है। जो महुआ के पेड़ में बांध दिया जाता है और महुआ उस जाल से सीधे आकर बर्तन में गिरता है।
जबकि महुआ बीनने के लिए लोग बहुत ज्यादा परेशान होते रहते हैं। सुबह 4:00 बजे से जाकर दोपहर तक एक-एक महुआ बीनते हैं। लेकिन इस जाल के जरिए अब खुद लोगों को महुआ के पेड़ के नीचे जाकर महुआ बीनने की जरूरत नहीं पड़ेगी। न ही जिस तरह से पेड़ों के नीचे महुआ बर्बाद होता था, वह होगा। जब लोग समय न मिलने के कारण महुआ बीन नहीं पाते थे तो उसको जानवर खा जाते थे और किसानों का नुकसान होता था। लेकिन अब वह भी बचेगा।
विनय का कहना है कि एक जाल तीन से चार साल तक आराम से चल जाएगा। वहीं एक पेड़ से 40 से 50 किलो महुआ गिरता है। अब इस जाल की मदद से गिरे हुए महुए बर्बाद नहीं होंगे और किसानों को भी फायदा मिलेगा। ( इस खबर पर की हुई रिपोर्ट आप नीचे दिए हुए लिंक पर जाकर देख सकते हैं।)
अब किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने अपनी परेशानियों का हल अपने आप ही ढूंढ लिया है। जो की तारीफ के काबिल है। पैदावार, आय और खेती के नए तरीके, अब किसान खुद ही खोज रहा है। उसे अपना रहा है। जिसे देखते हुए अन्य किसान भी उनकी तकनीकों को अपना अपनी फसलों को और भी बेहतर बनाने का काम कर रहे हैं।