खबर लहरिया Blog ‘सड़क पर किसान’ – जसिंता केरकेट्टा की कविता

‘सड़क पर किसान’ – जसिंता केरकेट्टा की कविता

सड़क पर किसान

                                                          किसान आंदोलन की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

2020 से शुरू हुआ किसान आंदोलन 2024 के आखिरी दिनों में पहुंच गया है पर उनकी मांगे इन बीते सालों में किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन आज भी फैसले के इंतज़ार में है।

जगजीत सिंह डल्लेवाल (70) जो इस समय किसान आंदोलन का चेहरा बने हुए हैं। वह कैंसर के मरीज़ हैं। वह काफी समय से पंजाब और हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। वे केंद्र सरकार से किसानों की मांगों को मानने, जिसमें फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का कानूनी गारंटी शामिल है, की अपील कर रहे हैं।

सड़कों पर बैठे, धरना देते ये किसान, अरसो से घर नहीं लौटें। किसानों के आंदोलन को बताती आदिवासी कवयित्री जसिंता केरकेट्टा की कविता बखूबी से उनकी लड़ाई को बताती है, जिसका टाइटल है…..

सड़क पर किसान

सड़कों पर नंगे पाँव
चल पड़ा है पूरा गाँव

अँधेरे के ख़िलाफ़ खड़ा बिहान
पूछ रहा

क्यों आत्महत्या करे किसान?
कभी सोचा है तुमने

कहाँ से यह अनाज आता है
क्या यह देश सिर्फ़ धूप खाता है?

हर एक चीज़ का दाम वसूलने वालों
तुम्हारी भूख की क़ीमत कौन चुकाता है?

क्यों खेत हल लेकर
देश के चौराहे पर पड़ा रहेगा?

क्यों उसका आँगन
नई सड़क के नीचे गड़ा रहेगा?

क्यों शहर की नींव में
कोई गाँव दबा रहेगा?

क्यों पोकलेनों से
कटकर छाँव गिरा करेगा?

क्यों अन्नदाता सड़क पर दम तोड़ेंगे
गाँव से निकलकर वे

तुम्हारे शहर को घेरेंगे
तुम्हारे बदन पर लाखों का सूट

उनके लिए नहीं पानी की एक घूँट
जिनकी जेबें भरने के लिए

किसानों का पेट तुम काट रहे
सब जानते हैं छुप-छुप कर

किस-किसके तलवे चाट रहे
क्यों तुमसे न वह आज लड़ेगा

मूर्तियाँ गिराते-गिराते
गिर गए हैं जो अपने भीतर

हुजूम किसानों का फिर से उन्हें
सवालों के चौराहे पर खड़ा करेगा।

– जसिंता केरकेट्टा

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, किसान समन्वित किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के तहत 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। उनका दिल्ली मार्च सुरक्षा बलों द्वारा रोका दिया गया था।

यह आंदोलन, यह प्रतिरोध, यह गुस्सा किसी का एक नहीं, बल्कि सबका है। उन सभी का जिसके पेट में किसानों द्वारा उगाया अन्न जा रहा है। वह अन्न जिसकी सही कीमत की मांग किसान ‘सड़कों’ पर बैठे हुए सरकार से कर रहे हैं।

 

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