हरियाणा और पंजाब के किसान 5 जून को केंद्र द्वारा प्रस्तावित किये गए तीन विधेयक का विरोध कर रहे हैं। किसानों का यह विरोध वीरवार 10 सितम्बर से ज़ारी है। अध्यादेश का विरोध करते हुए भारतीय किसान यूनियन ने रैली निकाली। कुरुकक्षेत्र के पास नेशनल हाईवे 44 को भी जाम कर दिया। विरोध और सामाजिक सम्पत्ति का नुकसान करने की वजह से पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज किया और कुछ को हिरासत में भी कर लिया।
इस सप्ताह संसद के मानसून सत्र के दौरान सरकार ने खेती से जुड़े पुराने अध्यादेश को बदलने के लिए तीन विधेयक पेश किये थे। साथ ही लोकसभा ने इस विधेयक को पारित भी कर दिया। शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखविंदर सिंह बादल ने अदालत में घोषणा की कि उनकी पार्टी के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल , इन बिलों के विरोध में अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे।
“एंटी-फार्मर”/ किसानों के विरोध में
किसानों ने पारित तीन विधेयकों को “एंटी-फार्मर” का नाम दिया। भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह ने संचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि “नए अध्यादेशों से किसानो का सिर्फ नुक्सान ही होगा”।
क्या है कृषि के तीन अध्यादेश ?
पहला ,किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020, दूसरा- मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता और तीसरा -आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 । ये वह तीन अध्यादेश है जिसे केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान पारित किया गया था।
वैसे तो किसान तीनों ही अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं लेकिन किसानों को पहले प्रावधान से ज़्यादा परेशानी है। उनकी चिंता का कारण “व्यापर क्षेत्र” , “व्यापारी” , “विवाद समाधान” और “बाज़ार शुल्क” है।
“व्यापर क्षेत्र” क्या है ?
उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 के अनुसार “व्यापर क्षेत्र” किसी भी क्षेत्र या स्थान, उत्पादन, एकीकरण और संग्रह को एक स्थान के रूप में परिभाषित करता है। इसमें खेत द्वार, कारखाना परिसर, गोदाम, भूमिगत कक्ष, ठंडे या शीतगार गोदाम और ऐसे कई स्थान आते हैं , जहां से किसानों की उपज का व्यापार भारत के किसी भी क्षेत्र में किया जाता है।
कृषि उपज मंडी समिति, भारत में सब्ज़ी मंडियों को देखती है। कृषि उपज मंडी समिति ( एपीएमसी ) अधिनियमों के तहत मौजूदा मंडियों को नए कानून के अनुसार “व्यापर क्षेत्र” की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि मंडियों के बाहर एक अलग व्यापर क्षेत्र खोलने से किसानों को उनकी पसंद से उनकी उपज का व्यापार करने की आज़ादी मिलेगी। लेकिन किसान प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार द्वारा लागू किये गए प्रावधान से एपीएमसी मंडियाँ भौतिक सीमाओं तक बंध कर रह जाएगी।
“व्यापारी” कौन होते हैं और किसानों के विरोध में उनकी क्या भूमिका है ?
व्यापारी वह व्यक्ति होता है जो किसानों से उपज खरीदता है। जो अंतर-राज्य व्यापार या इंट्रा-राज्य व्यापार (इंट्रा =बाहर ) या दोनों के ज़रिये उत्पादन करता है। थोक व्यापार, खुदरा, मूल्य संवर्धन, प्रसंस्करण , विनिर्माण आदि के उद्देश्य से वह ऐसा करता है। इसमें निर्यातक, थोक व्यापारी, चक्कीवाला और खुदरा विक्रेता शामिल होते हैं।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार “पैन कार्ड रखने वाला कोई भी व्यापारी, व्यापर क्षेत्र के अंदर किसानों से उत्पादन खरीद सकता है”। इसके ज़रिये अब व्यापारी एपीएमसी मंडी और व्यापार क्षेत्र दोनों में आ सकता है। मंडी में व्यापार के लिए, व्यापारी के पास लाइसेंस होना ज़रूरी है। किसानों को कहना है कि लाइसेंस कमीशन एजेंट्स को बहुत ही आसानी से मिल जाता है क्यूंकि उनके पास दिखाने के लिए वित्तीय संपत्ति/ घर होता है , जिस पर विश्वास करके उन्हें लाइसेंस मिल जाता है। ऐसे में गरीब किसान क्या करेंगे , क्या दिखाएंगे। जब उनके पास कुछ है ही नहीं।
पंजाब और हरियाणा में अभी भी अरहटिया व्यवस्था है यानी कमिशन एजेंट्स वाली प्रणाली। किसानों को डर है कि ऐसे में उन्हें लाइसेंस मिलना मुश्किल होगा।
मुक्त-बाज़ार किसानों के लिए समस्या कैसे है ?
सरकार ने नए कानून के तहत व्यापार पर लगने वाले शुल्क को हटा दिया गया है। जिस पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रपति बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है कि इसके ज़रिये सरकार अप्रत्यक्ष रूप से बड़े-बड़े कॉर्पोरेट्स को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लागू किया गया यह प्रावधान एपीएमसी मंडियों को बाज़ार के अनुसार एक स्तर पर नहीं रखता। साथ ही किसानों को डर है कि मुक्त-बाज़ार से काला बाज़ारी भी बढ़ जाएगी। जिसमें सिर्फ बड़े-बड़े कॉर्पोरेट्स को ही फ़ायदा होगा। वह इसमें पीछे रह जाएंगे और उन्हें कोई लाभ नहीं होगा।
“विवाद समाधान” को लेकर किसानों को क्या चिंता है ?
प्रदर्शकारियों का कहना है कि विवाद समाधान पर प्रावधान किसानों को उचित सुरक्षा नहीं देता। प्रावधान के ज़रिये अगर व्यापारी और किसान के बीच विवाद पैदा होता है तो विवाद को सुलझाने के लिए उन्हें उप-प्रभागीय न्यायधीश को पत्र लिखना होगा। जिसके बाद विवाद को खत्म करने के लिए बात सुलह मंडल में जाएगी और वह दोनों से बात करके बीच का समाधान निकालेगी।
किसानों को डर है कि सुलह प्रणाली का उनके ख़िलाफ़ गलत उपयोग हो सकता है। उनका कहना है कि यह अध्यादेश किसानों को घरेलू अदालत में जाने की इज़ाज़त नहीं देता। आमतौर पर गाँवों के किसान अपनी समस्या के समधान के लिए घरेलू अदालत का ही दरवाज़ा खटखटाते हैं, क्यूंकि उन्हें उस पर ज़्यादा विश्वास होता है।
वहीं सरकार अपना बचाव करते हुए कहते हैं कि इससे सबसे ज़्यादा फ़ायदा किसान, उपभोक्ता और व्यापारी को ही होगा। इससे किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन लागू किये गए अध्यादेशों में किसानों को ऐसा नहीं लगता। उनके अनुसार नए कानून आने के बाद उन्हें जितना पहले मिलता था , अब नए कानून आने के बाद वह भी नहीं मिलेगा। जिसकी वजह से किसान सरकार का विरोध कर रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसानों की देश में हालत बहुत वक़्त से खराब है। जो किसान पूरे देश का पेट भरता है,सरकार पुलिस के साथ मिलकर उन पर ही लाठी बरसा रही है। भारत के अधिकतर लोग कृषि पर ही निर्भर करते हैं। ऐसे में सरकार किसानों की आवाज़ और परेशानियों को अनदेखा करते हुए , सिर्फ अपने लागू किये हुए कानून को सही साबित करने में लगी हुई है।