जिला महोबा ब्लाक जैतपुर कुलपहाड़ के गांव गारा पहाड़िया के रहने वाले रामसनेही का कहना है कि वह तकरीबन आठ साल से बहरूपिया पार्टी में काम कर रहे हैं। बहरूपिया पार्टी अर्थात इसमें लोग वेश-भूषा बदलकर दूसरों व्यक्तियों के चरित्र का अभिनय करते हैं। रामसनेही का कहना है कि शुरू में उन्हें बहरूपिया बनने का काम कुछ खास पसंद नहीं था और वह पहले इस काम से सिर्फ 150 से 200 रुपये ही कमा पाते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें यह काम अच्छा लगने लगा।
वह ज़्यादातर कमेटी का रोल करते थे, जैसे- लोहार का, साधु का भेष और बन्दर का रोल भी। इसी तरह के वह कई सारे चरित्र निभाते थे। वह कहते हैं कि एक महीने में उनके कई सारे कार्यक्रम होते थे, जिससे वह तकरीबन हज़ार रुपये तक कमा लेते थे।
वह कहते हैं कि जबसे कोरोना महामारी आयी, एक दिन भी उन लोगों का काम नहीं चला। पहले कमाते थे तो परिवार चल जाता था लेकिन महामारी की वजह से घर चलाना भी मुश्किल हो गया है। उनके बहरूपिया पार्टी का हर एक सदस्य इससे परेशान हैं।
रामसनेही कहते हैं कि बहरूपिया पार्टी छह लोगों की होती हैं। जिसमें कुछ गाने -बजाने वाले, कुछ कॉमेडी करने वाले और कुछ अलग-अलग गांव के लोग उनकी पार्टी में हैं। जब भी कोई कार्यक्रम होता है तो वह सब एक जगह इकट्ठा होते हैं। तब तक वह सब अलग-अलग थोड़ी बहुत अपनी मज़दूरी का काम करते हैं।
देखा जाए तो कोरोना महामारी से सबसे ज़्यादा नुकसान ऐसे ही सांस्कृतिक कार्यक्रम करने वालों व स्थानीय कलाकारों का हुआ है। जो की रोज़ाना काम करके पैसे कमाते थे। लेकिन महामारी ने उनसे उनका यह ज़रिया भी छिन गया। क्या प्रधान या जिला अधिकारी को ऐसे कलाकारों के रोज़गार के लिए कुछ करना नहीं चाहिए? क्या यह उनकी जिम्मेदारी नहीं कि वह स्थानीय लोगों को भी आगे निकलने के मौका दे?