यूपी के हाथरस जिले में 20 साल की युवती से हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में आज पीड़िता का परिवार सुनवाई के लिए लखनऊ अदालत पहुँच चुका है। हाथरस से लखनऊ की दूरी तकरीबन 380 किमी. है। सुबह करीब साढ़े पांच बजे के करीब, पुलिस और कई प्रशासनिक अधिकारियों की सुरक्षा के बीच परिवार अदालत के लिए निकला था। जिसमें उप्रभागीय न्यायधीश अंजलि गंगवार, सीईओ शैलेंद्र बाजपयी आदि अधिकारी, पुलिस की छह गाड़ियों से परिवार को सुरक्षा देते हुए, कोर्ट के लिए निकले थे। परिवार के पांच लोग, जिसमें पीड़िता की माँ, पिता, दो भाई और एक भाभी, यह सभी पुलिस के साथ अदालत के लिए रवाना हुए थे। लखनऊ की उच्च अदालत ने परिवार को अपना पक्ष रखने के लिए 2 बजे का समय दिया था।
मामले की जांच के लिए इन्हें दिया गया था दायित्व
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने हाथरस के मामले की लगातार रिपोर्ट लेने के लिए आला अधिकारियों को 1 अक्टूबर 2020 को नियुक्त किया था। जिसमें न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह ने यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव, राज्य के पुलिस प्रमुख और एक अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को रखा था। साथ ही न्यायधीश पीठ ने हाथरस के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक को 12 अक्टूबर यानी आज अदालत में इसकी संक्षिप्त जांच के लिए उपस्थित होने का आदेश भी दिया था।
परिवार की सुरक्षा के लिए तैनात की गयी थी पुलिस
यह कहा जा रहा है कि परिवार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, घर के बाहर तकरीबन 60 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। साथ में, घर के बाहर आठ सीसीटीवी कैमरा भी लगाए गए थे ताकि होने वाली सारी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि परिवार के घर के दरवाजे पर एक पुलिसकर्मी तैनात किया गया है जो हर आने–जाने वाले व्यक्ति का नाम और पता एक रजिस्टर में लिखता रहता है।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विनीत ने कहा, “पीड़ित परिवार के लिए पर्याप्त सुरक्षा है। स्थानीय पुलिस परिवार और आस–पास के गांवों के संपर्क में है। अधिकारियों ने आसपास के गांवों में शांति बैठक कर रहे हैं और उनसे अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील की है।“
सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ़ एफआईआर करी दर्ज़
केंद्रीय एजेंसी ने रविवार 11 अक्टूबर को आईपीसी की धारा 376 डी (सामूहिक बलात्कार), धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 302 (हत्या) और एससी / एसटी एक्ट (अत्याचार के अपराध) के तहत प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज की है।
एफआईआर दर्ज करने के कुछ घंटों बाद, सीबीआई की एक टीम हाथरस पहुंची और पुलिस अधीक्षक से मुलाकात की। हाथरस के एसपी विनीत जायसवाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि सीबीआई की एक टीम जिले में पहुंची है, जिन्होंने मामले से जुड़े हुए दस्तावेज़ एकत्र किए हैं।
मामले के मुख्य आरोपी ने अपना पक्ष में लिखा पत्र, की जा रही है जांच
हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले में लव कुश, रवि, राम कुमार और संदीप को पीड़िता के बयान के बाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। पत्र, मामले के मुख्य आरोपी संदीप द्वारा लिखा गया था। इंडियन एक्सप्रेस की 9 अक्टूबर 2020 की रिपोर्ट में संदीप द्वारा लिखे पत्र को प्रकाशित किया गया था।
जिसमें संदीप ने यह लिखा था कि वह और पीड़िता पहले से ही दोस्त थे,लेकिन पीड़िता के परिवार को उनकी दोस्ती पसंद नहीं थी। पत्र के अनुसार, घटना वाले दिन यानी 14 सितंबर 2020 को वह खेतों में पीड़िता से मिलने गया था, उस वक़्त लड़की का भाई और माँ, दोनों जगह पर मौजूद थे। संदीप का कहना था कि जब पीड़िता के भाई और माँ ने उसे जाने को कहा तो वह चला गया था। और बाद में पीड़िता के परिवार द्वारा संदीप के अनुसार मारा भी गया था।
पत्र के जवाब में पीड़िता के परिवार ने कहा कि यह सब बस मामले को भटकाने के लिए की जाने वाली कोशिश है। लेकिन वह हार नही मानेगें और लड़ते रहेंगे।
अलीगढ़ जेल, जहां पर आरोपियों को रखा गया है, उसके अध्यक्ष आलोक सिंह का कहना है कि उन्होंने कानून के नियमों के अनुसार पत्र को 7 अक्टूबर की शाम को हाथरस पुलिस को भेज दिया था।
निर्भया की वकील सीमा कुशवाहा और एडवोकेट एम एस आर्या लड़ रही हैं केस
वकील सीमा कुशवाहा हाथरस मामले के पीड़िता के परिवार का केस लड़ रही है। यह वही वकील हैं जिसने दिल्ली के 16 दिसंबर 2020, निर्भया सामूहिक बलात्कार घटना का मामला लड़ा था। एडवोकेट एम एस आर्या, जो कि भीम आर्मी से भी संबंध रखती हैं, सीमा कुशवाहा के साथ मामले को लड़ रही है। उनके अनुसार परिवार को खुलेआम धमकियां मिल रही हैं। पड़ोसी परिवार से बुरी तरह से व्यवहार कर रहे हैं।
जब से मामला दर्ज़ हुआ है, तब से ही यह देखा जा रहा है कि मामले को तोड़ने–मरोड़ने की बहुत कोशिश की जा रही है। कभी पूरे बलात्कार के मामले को ही यूपी पुलिस द्वारा झूठा साबित किया जाता है। तो कभी आरोपियों को बेगुनाह बताकर, लोग उन्हें बचाने के लिए लड़ते दिखाई दे रहे हैं। यूपी में नेताओं द्वारा इस मामले पर अलग–अलग बयान सुनने को मिल रहे हैं, जो कि बस इस बात से संबंध रखते हैं कि लड़की को ये करना चाहिए, ये नहीं करना चाहिए, ऐसा इसलिए हुआ आदि। लेकिन कोई भी अभी मामले की गंभीरता को समझते हुए दिखाई नहीं दिया। सीबीआई जांच भी लगभग एक महीने के बाद राज्य सरकार द्वारा शुरू की गयी है। जबकि मामला जब से सामने आया है तब से उसकी नाज़ुकता लोगों में बड़े आक्रोश में नज़र आती है। जिसके बावजूद भी अभी तक कुछ साफ़ होता दिखाई नहीं दे रहा।
जो लोग मामले को भटकाने की कोशिश कर रही है, यूपी पुलिस उनके खिलाफ कुछ क्यों नहीं करती? पुलिस सुरक्षा के बाद भी, परिवार को जान की धमकियां मिल रही है। ये कैसी सुरक्षा है? हमने 16 दिसम्बर 2020, दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले में भी देखा कि अदालत की सुनवाई और इंसाफ को तरसते परिवार को 20 मार्च 2020 को जाकर तसल्ली मिली थी। इंसाफ का इंतज़ार लगभग आठ साल का था। देखना यह है कि आज परिवार का पक्ष सुनने के बाद लखनऊ की अदालत क्या कहती है। परिवार को इंसाफ मिलता है या फिर इंसाफ के लिए लम्बा इंतेज़ार।