खबर लहरिया Blog संकट में कुओं का अस्तित्व

संकट में कुओं का अस्तित्व

एक समय था जब पेयजल व सिचाई का मुख्य स्त्रोत कुआं हुआ करते थे। लेकिन समय के बदलाव के साथ कुओं की अनदेखी इस तरह से भारी पड़ रही है कि जलापूर्ति की रीढ़ माने जाने वाले कुएं सामाजिक व सरकारी उपेक्षा के शिकार हो गये हैं। गांव-गांव गली-गली शहर व कस्बों में बनें तमाम कुएं ढहने की कगार पर पहुंच चुके हैं या यूँ कहें की ज्यादातर जमींदोज हो गए हैं।और लोग पानी की तलास में भटक रहे हैं।

जिला बांदा। कुंआ जो सदियों से लोगों की प्यास बुझाता आ रहा है लेकिन बदलते समय के साथ इनकी उपेक्षा किसी से भी छिपी नहीं है। यही कारण है कि ज्यादातर कुआँ जमीदोज़ हो गए हैं, और जो बचे हैं उन्हें सिर्फ निशानी के रूप में ही देखा जा रहा है। इसी तरह एक कुआं है अतर्रा कस्बे के लाल चौक में जिसे लोग मीठा कुमार के नाम से भी जानते हैं।

पानी की मिठास ने दी कुएं को अलग पहचान

वर्ष 1802 के तकरीबन यहाँ के जमींदार गोरेलाल दुबे ने नगर वासियों की प्यास बुझाने के लिए इस कुएं को बनवाया था। कहते हैं उसका पानी स्वाद से भरपूर है इसलिए इसका नाम मीठा कुमार है। 1965 में नगर पालिका अध्यक्ष ने इस प्राचीन धरोहर को बचाने के लिए जीर्णोद्धार कराया था। इसके बाद प्रशासनिक उदासीनता के चलते मीठा कुमार समस्याओं के भंवर में फंसकर कसैला हो गया।

कुआँ के जीर्णोद्धार की उठाई मांग

लाल चौक निवासी कमला और रानी कहन है कि उस कुएं का एक बार फिर से जीर्णोद्धार करा दिया जाए तो नगरवासियों को पेयजल की मूल धरोहर मिल जाएगी। क्योंकि अतर्रा कस्बा भी पानी की समस्याओं से काफी दिनों से जूझ रहा है। लोगों ने हमें यह भी बताया कि जल निगम द्वारा 2001 और 2002 में पानी की टंकी बनवाई गई थी जिससे लाल चौक, मूसानगर और सुकून थोक जैसे कई मोहल्ले को जल पूर्ति होगी लेकिन वह
टंकी भी जरजर हो गई पर आज तक हैंडवर नहीं हुई।

शिवकुमार का कहना है कि अतर्रा कस्बा एक जमाने में कुआँ और तालाबों का श्रृंखला था। हर मोहल्ले में पानी से ही पेयजल पूर्ति समेत घरेलू उपयोग भी किए जाते थे, लेकिन बीते दो दशक से शासन-प्रशासन समेत कस्बे के लोगों की कमी के कारण भी यह कुएं जमींदोज होने लगे हैं, जबकि पेयजल आपूर्ति समेत जल संरक्षण में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता था। पर आज के जमाने में हैंडपंप और टोटी वाले नलों के आगे लोग कुएं का अस्तित्व भूल गए हैं। यही कारण है कि लोगों को पर्याप्त जलापूर्ति का लाभ नहीं मिल पाता और पानी की समस्या आए दिन खड़ी रहती है।

गर्मी शुरू होते ही छा जाता है पानी का संकट

बांदा जिला भारत के उन स्थानों में शामिल है, जो हर साल गर्मिया शुरु होते ही जल संकट और सूखे का सामना करता है। धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद भी जिले के अधिकांश तालाब और कुएं कूड़ेदान में तब्दील हो गए हैं। मई जून का महीना आते आते यहाँ पानी का संकट आ जाता है। जिस कारण बांदा के लोगों को हर साल पीने और सिंचाई के लिए बूंद बूंद पानी का मोहताज़ होना पड़ता है। और यह बहुत बड़ी सच्चाई है
कि जब से कुएं और तालाबों ने हमारा साथ छोड़ा, तब से हमारे सामने पानी का विकट संकट खड़ा हो गया है। अगर बंद पड़े कुओं का जीर्णोद्धार करा दिया जाए तो बुंदेलखंड की पानी की समस्या खत्म हो सकती है।

अभियान का कितना हुआ असर

बाँदा जिले के पूर्व डीएम हीरालाल ने बांदा को जल संकट से उबारने के लिए 6 अक्टूबर 2018 को दो चरणों में अभियान चलाए चलाया गया। पहले चरण में ‘भूजल बढ़ाओ, पेयजल बचाओ’ अभियान और दूसरे चरण में ‘कुआं-तालाब जियाओ अभियान चलाया गया।  जिसके तहत कुआं पूजन और साफ-सफाई का काम जोरों पर शुरू हुआ था लेकिन वह सिर्फ कुछ ही दिन चला और हवा हवाई रहा, जिसमें पैसे का बहुत ज्यादा बंदरबांट हुआ लेकिन जमीनी स्तर पर वह काम नहीं दिखा जो होना चाहिए था और आज भी पानी की समस्या उसी तरह बनी हुई है।