खबर लहरिया Blog Eid: ईद के लिए तैयार हो रही खास सेवइयां

Eid: ईद के लिए तैयार हो रही खास सेवइयां

रहमत मंसूरी जो इस साल कानपुर से छतरपुर जिले में आए हैं वह अलग तरह की लखनवी सेवइयां बनाते हैं। उनका कहना है कि वह पहले लखनऊ जाते थे सेवइयां बनाने और लखनऊ से ही उन्होंने यह कला सीखी है।

सेवइयां की तस्वीर (फोटो साभार: अलीमा)

रिपोर्ट – अलीमा, लेखन – सुचित्रा 

ईद मुस्लिम समाज का सबसे प्रिय त्यौहार होता है क्योंकि यह साल में एक बार आता है। इसकी खास बात यह है कि इसके पहले रमजान आता है, जिसमें लोग रोजा रखते हैं। रोजा रखने की प्रक्रिया सुबह 5:00 बजे शहरी करके शुरू होती है और शाम को 6:00 बजे अफ़्तारी करके रोजा खोला जाता है। रोजे पूरे एक महीने के होते हैं और इसके बाद ईद का त्यौहार आता है।

ईद की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार: अलीमा)

ईद में लोग नए-नए कपड़े पहनते हैं और सेवइयां खाकर मीठा मुंह करके ईदगाह जाकर नमाज अदा करते हैं। ईद मुसलमानों का खास त्यौहार इसलिए होता है क्योंकि यह रमजान के पवित्र महीने के बाद आता है।  ईद में सभी लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं। नए-नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे के घर सेवइयां खाने जाते हैं। ईद साल में दो बार आती है लेकिन ईद उल फितर सबसे खास होती है क्योंकि यह रमजान के 30 रोजे रखने के बाद जो खुशी होती है वह अलग होती है। दूसरी ईद, ईद उल अजहा होती है जिसमें कुर्बानियां होती हैं।

ईद उल फितर की तैयारी लोग एक महीने पहले से करने लगते हैं। तरह-तरह की सेवइयां लाते हैं। पुरानी रंजिशों को तोड़कर नई शुरुआत करते हैं। इस त्यौहार का बच्चे हो या बड़े सभी साल भर इसका इंतजार करते हैं और जैसे ही यह पाक महीना आ जाता है तो लोग इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं।

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में इस साल भी सेवइयां बनाने का काम हो रहा है जैसे कि हर साल होता है। इस बार सेवइयां बनाने वाली लोग अलग जगह से आए हैं। पहले इलाहाबाद और फतेहपुर से आया करते थे लेकिन इस बार कानपुर नगर से भी सेवइयां बनाने वाले लोग आए हैं।

रहमत मंसूरी जो इस साल कानपुर से छतरपुर जिले में आए हैं वह अलग तरह की लखनवी सेवइयां बनाते हैं। उनका कहना है कि वह पहले लखनऊ जाते थे सेवइयां बनाने और लखनऊ से ही उन्होंने यह कला सीखी है। इस कला को सीखकर अब वह छतरपुर जिले में हाथ से लखनवी सेवई बना रहे हैं।

रहमत मंसूरी की तस्वीर (फोटो साभार: अलीमा)

शुद्ध देशी घी में बनती हैं सेवइयां

यह सेवइयां पूरी तरह शुद्ध घी से बनती हैं और दिखने में सुंदर होती हैं। इन सेवइयों में कुछ विशेष सामग्री डाली जाती है जिसे लखनवी सेवई कहा जाता है। आप तस्वीर में देख सकते हैं कि बड़ा सा कढ़ाई आग की भट्टी पर चढ़ा हुआ है जिसमें देशी घी डाला है। इसके बाद सेवइयों को इसमें डालकर तला जाता है। पहले हाफ फ्राई कर निकाल लिया जाता है फिर उसे सूखने दिया जाता है और अंत में उसे पूरी तरह फ्राई किया जाता है जिससे उसका स्वाद दोगुना हो जाता है।

रहमत मंसूरी का कहना है कि वह एक घंटे में 10 से 12 किलो सेवइयां तैयार कर लेते हैं और ईद के एक दिन पहले तक सेवइयां बनाते रहेंगे। इसके बाद वह वापस चले जाएंगे। वह यहां पहली बार आए हैं लेकिन यहां पर हर तरह के लोग आते हैं। यदि उनकी बनाई हुई सेवइयां यहां लोगों को पसंद आएंगी तो वह अगली बार भी यहां आने की कोशिश करेंगे।

ईद के लिए बनारसी सेवइयां

डिब्बे में जो सेवइयां हैं वह बनारसी सेवइयां हैं। यह सेवइयां यहीं पर बनई जाती हैं। बनारसी सेवइयां बनाने के लिए ईद के एक महीने पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। बनारसी सेवइयां ऐसी होती हैं कि यदि आप एक डिब्बा ले लें और उसे एक साल तक रखकर रखें तो वह खराब नहीं होती। इस समय इसकी बहुत मांग भी है। इसे लोग पसंद भी करते हैं।

एक डिब्बे में 1 किलो सेवई आती है और इसका स्वाद बहुत अच्छा होता है। हमारे यहां हर तरह की सेवइयां मिलती हैं चाहे वह बनारसी हो या लखनवी। इस तस्वीर में जो डिब्बा दिख रहा है वह बनारसी सेवई का डिब्बा है और इसका स्वाद भी बहुत लाजवाब होता है।

बनारसी सेवई देखने में बहुत पतली और बाल जैसी होती है और खाने में भी उतनी ही लाजवाब होती है। बनारसी सेवई बनाने के लिए मावा और ड्राई फ्रूट्स की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि इन्हीं से इसका स्वाद और भी बढ़ता है।

सेवई बनाने की प्रक्रिया 

तस्वीर में मैदे को घी के साथ गुन्दा जा रहा है। इस काम को अकेले नहीं किया जाता इसमें सबकी भागीदारी से यह काम सफल हो पाता है। इस समय इस काम को करने के लिए तीन कारीगर मिलकर इसे अलग-अलग काम कर रहे हैं। कारीगरों का कहना है कि वे सुबह तड़के उठकर इस प्रक्रिया को शुरू करते हैं। एक कारीगर लोई बना रहा है तो दूसरा घी में डुबो रहा है और तीसरा लच्छे (आकार) बना रहा है। ये कारीगर इलाहाबाद के हैं और यहां हर साल आते हैं। तीनों का काम अलग-अलग होता है। पहले मैदे को घी में गूंदना फिर एक कारीगर लोई बनाएगा, दूसरा लोई को अच्छे से गूंथेगा और तीसरा कारीगर उसे रस्सी की तरह मरोड़कर रखेगा। इसके बाद सेवई को 2 से 3 घंटे रखा जाएगा फिर उसे घी में डुबोकर तला जाएगा।

सेवई के लिए मैदे के लछे बनाते कारीगर की तस्वीर (फोटो साभार: अलीमा)

कारीगरों ने बताया कि उन्हें पहले से ही ऑर्डर मिल जाते हैं और वे हर जगह जाते हैं। पिछले 3 सालों से वे यहीं आ रहे हैं क्योंकि यहां के लोग उनके हाथ की बनाई हुई सेवइयां बहुत पसंद करते हैं। इस वजह से उन्हें कहीं और जाने का मौका नहीं मिल रहा है। हालांकि वे कहीं और जाने का सोचते हैं लेकिन यहां से एडवांस मिल जाता है।

तस्वीर में एक बड़ा सा चूल्हा दिखाई दे रहा है जिसमें बड़े से चूल्हे में बड़ी सी कढ़ाई चढ़ाकर सेवइयां तैयार की जाती हैं। दो लोग इस चूल्हे पर लगातार काम करते हैं ताकि आग ठंडी न हो और सेवइयां बराबरी से पक सकें। आप देख सकते हैं कि यह कढ़ाई 20 से 25 किलो की है और चूल्हा इतना बड़ा है कि एक बार में 50 किलो लकड़ी जलाई जा सकती है। इसी चूल्हे पर यह सेवइयां बनकर तैयार होती हैं।

ईद का इंतजार अब सिर्फ मुस्लिमों को नहीं रहा बल्कि अब सभी धर्म के लोग भी इस त्यौहार में शामिल होते हैं। यह एक एकता को भी दर्शाता है जहां सभी धर्म के लोग मिलकर इस खुशी को मनाते हैं। 

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