जिला बांदा| भीख मांग कर अपना गुजारा करने वालों की ज़िन्दगी में लॉकडाउन का असर : कोरोना वायरस जैसी महामारी के खतरे को देखते हुए पूरे देश को 21 दिन के लिए लॉकडाउन कर दिया गया| लेकिन लॉक डाउन का सबसे बुरा असर भीख मांग कर खाने वालों पर पडा़ है इस समय उनके एक-एक रोटी के लाले पडे़ हैं| ऐसा ही एक मामला है नरैनी कस्बे में रहने वाली मुन्नी नाम की महिला का जिसके पास न रहने का ठिकान है न ही खाने का?
मुन्नी नाम कि महिला अपने एक बेटी के साथ रहती है इनके पास ना सिर ढकने के लिए छप्पर है ना खाने के लिए राशन है| खबर लहरिया पत्रकार हमेशा इनको आते-जाते देखती है कि ये महिला तहसील,ब्लाक,थाना और बाजार में हमेशा लोगों से भीख मांगते देखती है और उसी से अपना और अपनी बेटी का पेट पालती है लेकिन इस समय ये सब भी बंद चल रहे हैं और बाजर में सब्जी भी कुछ ही समय के लिए लगती है, जिससे वह लोगों के घरों में जा जा कर खाना मांग कर खाती और बेटी को खिलाती है| लेकिन उसको सरकारी कोई मदद नहीं मिलती| जबकि सरकार ऐसे ही गरीब लोगों के लिए छत और राशन देने के बडे- बडे वादे करती है, तो फिर आज इस तरह की गंभीर पस्थित में जहाँ लोग इस बीमारी से बचने के लिए घर से नहीं निकल रहे साफ सफाई का इतना ज्यादा ध्यान दे रहे है| वहाँ पर इस महिला और इसकी लडकी के लिए क्या है|
एक तरफ जहाँ सरकार ने कोरोना वायरस जैसी महामारी से बचने के लिए पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया है और हर रोज पुलिस प्रसाशन एनाउंस करता है की कोई घर से बाहर न निकले जरुरत मंद चीजों के लिए संपर्क करें| लेकिन जब इनके पास रहने और खाने की व्यवस्था ही नहीं है और दिन भर वह इस तरह की तपती धूप में बाहर दो रोटी के लिए घूमती है और रात में इस -उस दरवाजे खुले आसमान के नीचे सडक पर जमीन में सोती हैं, चाहे शर्दी हो या गर्मी तो कैसे इस बीमारी से बचेंगी| क्योंकि जब इनके खाने को ही नहीं है तो मास्क और साबुन से हांथ धुलना तो दूर की बात है, तो क्या इस महिला के ऊपर भी किसी की नजर पड़ेगी|
अब सवाल ये उठता है की जिस तरह सरकार ने मजदूरों और अन्य वर्गो की मदद के लिए कदम उठाए है और उनसे उनके रिकॉर्ड मांगे हैं बडे-बडे वादे किए है की कोई भी गरीब और असहाय भूखा नहीं सोयगा क्या उस तरह की मदद इस महिला को भी मिलेगी| क्योंकि इसके पास तो कोई रिकॉर्ड ही नहीं है या फिर ये महिला इसी तरह भटकती रहेंगीl