विशेषज्ञों के अनुसार यदि भारतीय महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र नहीं हैं और घरेलू हिंसा की घटनाओं का सामना कर रही हैं, तो महिलाओं में आत्महत्या की घटनाओं में दोगनी गिरावट देखने को मिलेगी।
द लांसेट पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट भारत में आत्महत्या की मौत में लिंग विभेदक और राज्य विविधतः 1990-2016 के अनुसार भारत में 100,000 आत्महत्याओं में 15 आत्महत्याओं के केस महिलाओं के होते हैं और जो 2016 में विश्व में छठी सबसे बड़ी संख्या है।
1990 से 2016 के बीच भारतीय महिलाओं की आयु मानकीकृत आत्महत्या दर में 27 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि पुरुषों की आत्महत्या दर में कोई कमी नहीं आई। आपको बता दें कि आयु मानकीकृत दर से अलग-अलग जनसंख्या के बीच चल रहे चलन का पता लगता है।
इस रिपोर्ट की लेखक राखी डोंडोना ने अनुसार इस कमी का मुख्य कारण 1990 और 2016 में महिलाओं बढ़ी उम्र में शादी, शिक्षा के स्तर में और आर्थिक स्तर में सुधार है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में आत्महत्या करने वाली महिलाओं के अनुपात में सबसे ज्यादा अनुपात शादीशुदा महिलाओं का है। जबकि इस रिपोर्ट के अलग देखें तो विश्व स्तर में शादी आत्महत्या से बचाव का कारक है। वहीं आत्महत्या के कारण माता पिता द्वारा कराई गई शादी, छोटी उम्र की शादी, छोटी उम्र में मां बनना, गरीबी, घरेलू हिंसा और आर्थिक स्वतंत्रता की कमी है।
छोटी उम्र में शादी और कमजोर आर्थिक स्तर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 4 के अनुसार देश में आज भी 27 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती हैं, जबकि 15 से 19 साल की उम्र की 8 प्रतिशत लड़कियां मां भी बन जाती हैं।
घरेलू हिंसा का आत्महत्या से सीधा सम्बंध है, जो पूरी दुनिया की महिलाओं की आत्महत्या का एक सीध कारण भी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 4 के अनुसार 29 प्रतिशत 15 से 49 साल उम्र की महिलाएं पति के द्वारा की जा रही हिंसा की शिकार हैं, वहीं 3 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था में हिंसा का सामना करती हैं।
केवल 36 प्रतिशत भारतीया 15- 49 उम्र वाली महिलाएं 10 साल से अधिक शिक्षा लेती हैं, इसलिए महिलाओं की छोटी उम्र में शादी, बच्चे और घरेलू हिंसा जैसी बातें महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता को पीछे धकेल देती हैं।
लक्ष्मी विजयाकुमार, जो इस रिपोर्ट की दूसरी लेखक हैं के अनसार शिक्षा महिलाओं की आत्महत्या जैसी घटनाओं को रोकने का मुख्य कारण हैं। वहीं पुरुषों में आर्थिक कर्ज आत्महत्या का मुख्य कारण है, जबकि महिलाओं के लिए परिवार और वैवाहिक कारण हैं।
छोटी उम्र की शादी को रोककर, लड़कियों को पढ़ाने और दहेज प्रथा को रोकने से महिलाओं की आत्महत्या को रोका जा सकता है। महिलाओं के आत्महत्या करने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण पुरुषों में शराब का सेवक है। बहुत से अध्ययनों में यह बात दिखी की पुरुष के द्वारा शराब पीकर महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार, घरेलू हिंसा और आत्महत्या तक कराई गई।
शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाले साथी की द्वारा की गई हिंसा में कमी से महिला आत्महत्या में कमी आई। लैंगिक हिंसा से अलग देखें तो महिलाएं अपने पूरे जीवनकाल में 28 प्रतिशत रिश्तेदारों और 7 प्रतिशत पुरुष हिंसा के कारण आत्महत्या का प्रयास करती हैं।
महिला और पुरुष के बीच अंतर
राखी डोंडोना के अनुसार महिलाओं में आत्महत्या करने के आंकड़ों में कमी के लिए कई सामाजिक कारण हैं, जबकि चिंता की बात ये हैं कि पुरुषों की आत्महत्या करने के आंकड़ों में पिछले तीन दशकों से कोई अंतर नहीं आया हैं।
आत्महत्या से मौतों का आंकड़ा महिलाओं में देखें तो 1990 में एक लाख महिलाओं में 20 महिलाओं ने आत्महत्या की, जो 2016 में कम होकर एक लाख पर 15 महिला हो गई। वहीं पुरुषों में 1990 में एक लाख पुरुष में 22 आत्महत्या की संख्या थी, जो 2016 में भी सामान ही बनी है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत में आत्महत्या करने का खतरा पुरुषों में 200 प्रतिशत अधिक हैं, जबकि महिलाओं में ये खतरा 50 प्रतिशत है। वहीं आत्महत्या करने की उम्र देखें तो 15 से 39 साल के बीच अधिक आत्महत्या होती हैं, जिनमें 71 प्रतिशत मौत महिलाओं की और 58 प्रतिशत मौत पुरुषों की होती हैं।
महिलाओं की आत्महत्या के प्रयास दर्ज नहीं होते हैं
भारत में आत्महत्या को व्यापाक समझने की कोशिश में पाया कि बहुत से आत्महत्या के प्रयास दर्ज ही नहीं होते हैं। वास्तविक में महिलाओं की आत्महत्या को दर्ज नहीं किया जाता हैं, क्योंकि आत्महत्या का कारण परिवार होता है, वहीं देखा गया कि ये आत्महत्याएं शादी के सात सालों की बीच होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 में आत्महत्या मृत्यु दर में महिलाओं की अनुमानित आत्महत्या में 37 प्रतिशत का अंतर था, वहीं पुरुषों की आत्महत्या की अनुमानित दर में 25 प्रतिशत का अन्तर है।
सीईएचएटी की संयोजक संगीता रेगे कहती हैं कि महिलाओं के आत्महत्या के प्रयास को धोखे से जहर खाने की घटना दिखाया जाता है। किसी भी समय, सरकारी अस्पताओं में 25 प्रतिशत महिलाएं धोखे से जहर खाने के कारण ही भर्ती कराई जाती हैं।
हम 2000 में कई जहर खाने से अस्पताल में भर्ती हुई महिलाओं से मिले। अस्पताल में इन महिलाओं को चिकित्सा इलाज तो मिल रहा था लेकिन उन्हें ऐसा को सहयोग नहीं मिला कि वे भविष्य में आत्महत्या जैसे प्रयास को न करें।
संगीता रेगे आगे कहती हैं कि मनोचिकित्सक महिलाओं को प्रतिकूल हालातों में देखते हैं, जबकि वह उस माहौल को अनदेख कर देते हैं, जिसमें महिलाएं ये आत्मघाती कदम उठाती हैं।
अध्ययन के अनुसार किशोरावस्था में आत्महत्या में वृद्धि हुई है। 15 से 19 साल की उम्र की लड़कियों की मौत 17 प्रतिशत आत्महत्या से हुई हैं, जो सभी आयु के वर्ग में तीसरा सबसे बड़ा वर्ग है। संगीता रेगे कहती हैं कि माता-पिता के दुव्यवहार के बारे में हम कभी बात नहीं करते हैं, लेकिन ये कभी-कभी बहुत नियंत्रित और अपमानजनक होता है। युवा लड़कियों के पास अपने निर्णय लेने के लिए कोई आजादी नहीं होती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार माता-पिता और सौतेले माता-पिता के हाथों 30 प्रतिशत हिंसा होती हैं।
क्षेत्रीय अंतर
लांसेट रिपोर्ट के अनुसार देश के 31 राज्यों में से 26 राज्यों में 15 से 29 साल उम्र की महिलाओं की मौत का कारण आत्महत्या थी। वहीं आत्महत्या की घटनाएं कम विकसित राज्यों में कम हैं, वहीं इस तरह की घटनाएं विकसित और विकासशील राज्यों में अधिक देखी गई।
देश के आंध्र प्रदेश, तेलांगाना, कर्णाटक और तमिलनाडू में आत्महत्या का प्रतिशत अधिक है, वहां 100,0000 जनसंख्या में 18 लोग आत्महत्या के कारण मरते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्णाटक और तमिलनाडू में आत्महत्या करने वाले महिला पुरुष का प्रतिशत अन्य राज्यों की तुलना में यहां अधिक है।
डंडोना कहती हैं कि आत्महत्या बहुत ही जटिल चीज है और आप उसे किसी एक कारण को खत्म करके हल नहीं कर सकते हैं।
दक्षिण के ये राज्य अधिक शहरी हैं, जो भीड़ से भरे, एकल परिवार और खर्चीली जीवन स्तर जैसे कारणों से आत्महत्या के कारणों को बढ़ा देती है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन भी इस प्रतिशत को बढ़ाने का एक कारण है।
1990 से 2016 के बीच महिलाओं के आत्महत्या के प्रतिशत में कमी को देखें तो उत्तरखण्ड (45 प्रतिशत), सिक्कम (43 प्रतिशत) , हिमाचल प्रदेश (40 प्रतिशत) और नागालैण्ड (40 प्रतिशत) जैसे राज्यों में आत्महत्याओं में कमी आई है।
भारत में आत्महत्या पर और अधिक शोध की आवश्यकता है
देश में युवा यानि 15-39 साल के बीच होने वाली मौत का मुख्य कारण आत्महत्या हैं, लेकिन आत्महत्या पर बहुत कम शोध होता है और किसान आत्महत्या पर भी सार्वजनिक तौर पर ध्यान दिया जाता है, उन्हें रोकने के उपाय पर काम नहीं किया जाता है।
पुरुषों में आत्महत्या कम नहीं होने वाले आकड़ों पर भी खोज की जरूरत है। लांसेट के अध्ययन के अनुसार भारत में पुरुषों के बीच होने वाली आत्महत्या पर ऐसा लगता है कि युवा वयस्क एक कमजोर वर्ग हैं, और शादी भी उनके लिए सुरक्षात्मक संकेत नहीं होती है।
डंडोना कहती हैं कि पुरुष तनाव को निजी बनाते हैं और भावनात्मक मुद्दों का सामना करते समय मदद मांगने में हिचकते हैं। ऐसे कई मामले हैं जहां पुरुषों ने आत्महत्या जैसा कोई कदम नहीं उठाया, तब तक परेशानी का कोई संकेत नहीं रहा है।
अध्ययन के अनुसार 2017 में आत्महत्या को गैर- अपराधी होने के साथ राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के पास होने से मानसिक स्वास्थ्य उपचार में सुधार और इस कलंक में कमी आई है।
विजय कुमार के अनुसार कीटनाशकों के उपयोग को सीमित करना, जो आत्महत्या करने का सबसे आसान तरीक था, साथ ही शराब की बिक्री को विनियमित करने से भी आत्महत्या को कम करने में मदद हो सकती है। सामान्य चिकित्सकों की मदद से अवसाद, अकेलापन और आत्महत्या के संकेतों का पता लगाने का काम हो सकता है और पारस्परिक लड़ाईयों को सुलझाने और गुस्से जैसी भावनाओं से निपटने में मदद करने के लिए विद्यालयों के स्तर की शिक्षा से मदद ली जाए।
हार्वर्ड टी चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर विक्रम पटेल जो इस रिपोर्ट के लेखक है के अनुसार हमें सबसे पहले आत्महत्या को राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। आत्महत्या को कम करने के लिए रणनीतियों को प्राथमिकता देने, लागू करने और मूल्यांकन करने के लिए एक क्षेत्रीय और मंत्री आयोग की स्थापना का करनी चाहिए।
पटेल आगे कहते हैं कि भारत को चीन और श्रीलंका से प्रेरणा लेनी चाहिए, जहां पिछले दशक में आत्महत्या के प्रतिशत में कमी आई है, यह पता लगाने की जरुरत है कि कौन-सी चीज इन आत्महत्याओं को रोक सकती है।