पढ़े लिखे युवाओं की मज़बूरी करा रही मजदूरी :कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी कर दी है। लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। मजदूर ही मज़बूरी वश बेरोजगार नहीं हुए, बल्कि शिक्षित वर्ग पर भी इसकी खूब मार पड़ी है। बड़े शहरों से अपने गांव लौटे ऐसे मजदूरों को फिलहाल सरकार की मनरेगा योजना ही अपना और अपनों का पेट भरने का एकमात्र सहारा बचा है।
ऐसे पढ़े लिखे युवा जो बाहर बड़ी बड़ी कंपनियों में काम किया करते थे आज मनरेगा में काम काम करने को मजबूर हैं। कोरोना के चलते किए गए लॉकडाउन ने युवाओं की जिंदगी के कई सपनों को कुचल दिया। अब तो दो वक्त की रोटी के लिए भी भटकना पड़ रहा है। जिन बच्चों के माता-पिता उनके अच्छे भविष्य के लिए सपने बुन रहे थे, वहीं अब लॉकडाउन में सब निराश बैठे हैं।
किसी को नौकरी नहीं मिली तो किसी के पिता का छिना रोजगार
ताज़ा मामला गोरखपुर का सामने आया है दैनिक भास्कर न्यूज़ में छपी खबर के मुताबिक बालखुर्द पहाड़पुर के रहने वाले कमलेश पासवान जिन्होंने 2014 में आईटीआई पास की। काफी तलाश के बाद भी जब काम नहीं मिला, तो वे गांव लौट आए। अब गांव पर ही रहते हैं और उन्हें मनरेगा में मजदूरी करके परिवार का खर्च चलाना पड़ता है। परिवार में मां-पिता के अलावा भाई-बहन भी हैं। पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। वे कहते हैं कि, 201 रुपए में काम तो नहीं चलता, लेकिन, मजबूरी में यहां पर काम करना पड़ता है। अमन इंटर करने के बाद ग्रेजुएशन कर रहे हैं। संदीप और अरविंद भी इसी गांव के युवा हैं। वे भी इंटर पास हैं और आगे की पढ़ाई की तैयारी कर रहे हैं। परिवार में माता-पिता के अलावा भाई-बहन भी हैं। पिता काम करते रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण अब उनके पास काम नहीं है। इसी कारण घर का खर्च चलाने के लिए इंटर पास करने के बाद भी मज़बूरी में मनरेगा में काम करना पड़ रहा है।
ये सिर्फ गोरखपुर की बात नहीं बल्कि हर युवा की कहानी है जो बेरोजगार बैठे हैंबीएड, बीपीएड, बीएससी जैसी परीक्षा पास करने के बाद युवक व युवतियां मनरेगा में काम करके अपने सपनों को कुचलता हुआ देख रहे हैं। कितनी मेहनत और कितने पैसे खर्च कर इस मुकाम पर पहुंचे हैं और जब पैसे कमाने की बारी आई तो मनरेगा में फावड़ा भांजना पड़ रहा है। सरकारी नौकरी की आस में युवावो की उम्र भी निकलती जा रही है ऐसी स्थिति प्राइवेट नौकरी का सहारा था वो भी छीन गई।