जिला बांदा: 19 मार्च की देर शाम डीआईजी से मिली प्रेस रिपोर्ट के अनुसार बांदा में 16 मार्च के दिन से वाहन चेकिंग के दौरान बहुचर्चित रहा थप्पड़ केस में छह पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के ऊपर कार्यवाही कर दी गई। भारतीय जनता पार्टी जिलाध्यक्ष रामकेश निषाद के बेटे जयप्रकाश को सिविल लाइन पुलिस चौकी के पुलिस कर्मियों द्वारा वाहन चेकिंग के दौरान पुलिस ने थप्पड़ मार दिया। यह मामला भाजपाई और उनके समर्थकों के बीच आग की तरह फैल गई। जहां पार्टी समर्थकों ने पुलिस चौकी और कोतवाली का घेराव किया वहीं बांदा से चित्रकूट, कानपुर जैसे हाइवे में जाम लगा कर तुरंत कार्यवाही की मांग की गई।
पूरा मामला सिविल लाइन पुलिस चौकी का है कि वाहन चेकिंग के दौरान हुई झड़प में पुलिस ने जयप्रकाश पुत्र रामकेश निषाद को थप्पड़ मार दिया। मामला 16 मार्च लगभग दोपहर का है। डीआईजी की ओर से जारी प्रेस नोट में यह जानकारी दी गई कि 16 मार्च की घटना को अफसोसजनक माना गया। हालांकि जिलाधिकारी इसकी मजिस्ट्रेटी जांच करा रहे हैं। निष्पक्ष जांच के लिए महोबा के अपर पुलिस अधीक्षक वीरेंद्र कुमार को जांच सौंपी गई है। डीआईजी ने कहा है कि वीडियो फुटेज देखने से यह पता चला कि प्रथम दृष्टया पुलिस अधिकारी/कर्मचारियों ने गैर जिम्मेदाराना तरीके से गैर पेशेवर कार्य किए। इसके आधार पर 6 पुलिस अधिकारी/कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई शुरू की जा चुकी है। इन सभी का स्थानांतरण डीआईजी की अध्यक्षता में गठित बोर्ड ने गैर जनपदों के लिए कर दिया है। इसके पहले घटना के दिन ही देर शाम तमाचा मारने के आरोपी सिविल लाइन चौकी के दोनों कांस्टेबलों राजेंद्र और विमलेश को निलंबित कर दिया गया था। चौकी प्रभारी प्रमोद सिंह को हटाकर पुलिस लाइन भेज दिया गया था। कोतवाली में भाजपाइयों को पीटने वाले दो पुलिस कर्मियों पर भी कार्रवाई की बात कही गई थी। सबके तीन दिन बाद भाजपा जिलाध्यक्ष रामकेश निषाद, विधायक प्रकाश द्विवेदी और पूर्व सांसद भैरो प्रसाद मिश्र ने मंडलायुक्त गौरव दयाल के कैंप कार्यालय में आयुक्त और डीआईजी दीपक कुमार से मुलाकात की। दोनों आला अफसरों और भाजपा नेताओं ने घटना पर चर्चा की।
ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटना पहली बार हुई है। हर रोज पुलिस ये चेकिंग अभियान चलाती है तो जाहिर सी बात है कि इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि पुलिस को इस तरह की कार्यवाही करनी पड़ी। इस मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए। यह कि पुलिस प्रशासन को इतना क्यों मजबूर होना पड़ा थप्पड़ के बदले अपने छह अधिकारी और कर्मचारी के ऊपर कार्यवाही करने के लिए? ऐसी सख्त कार्यवाही ऐसे केस में पहली बार देखने को मिल रही है। अगर आपको भी इस बात को जांचना परखना हो तो छोटे से बड़े पुलिस कार्यालयों की चौखट में खड़े हो जाइए, फरियादियों की लाइन लगी रहती है। कई लोग तो बताते हैं कि वह पुलिस चौकी से लेकर डीआईजी तक फ़रिवाद कर चुके हैं पर कार्यवाही नहीं हुई। दूसरा कि भारतीय जनता पार्टी भी सत्ता की हनक में चूर सोच रही थी कि पुलिस की क्या मजाल कि कार्यवाही न करे। पार्टी के अंदर पदाधिकारी की बात छोड़िए जिसने भारतीय जनता पार्टी बस ज्वाइन कर लिया हो तो वह भी दावा कर सकता है कि पुलिस को छोटे छोटे मामलों में भी कार्यवाही करनी ही पड़ेगी। यह काम न तो पुलिस प्रशासन के लिए ठीक है और न ही पार्टी के लिए क्योंकि जनता के बीच से खुद का भरोसा खोते नज़र आते हैं।