ग्रामीण क्षेत्र में महीनों से बिजली की समस्या बनी हुई है। बिजली कटौती के कारण किसान खेती भी नहीं कर पा रहे हैं।
जिला बांदा : खरीफ़ फसल की बुवाई का समय नज़दीक है। ऐसे में बिजली की कटौती दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिसकी वजह से घरेलू कनेक्शन धारक और कृषि कार्य के कनेक्शन धारक दोनों ही परेशान हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि घरेलू काम-काज और बच्चों के पढ़ाई-लिखाई में जितनी बिजली की ज़रूरत है उतनी ही बिजली कृषि कार्य में भी चाहिए होती है। यहां सवाल यह है कि आखिर इतनी ज़्यादा बिजली की कटौती क्यों हो रही है।
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दिन में सिर्फ 6-7 घंटे रहती है बिजली
छतैनी ग्राम पंचायत के मजरा बाउर पुरवा के रघुराज यादव बताते हैं कि उनके यहां बड़ी मशक्कत के बाद तो लाइट का उजाला देखने को मिला है। जब से बिजली आई है उनका पुरवा रोशन हो गया है। वहीं किसानी और सिंचाई के लिए भी पानी मिलने लगा है। परेशानी यह है कि इस समय लगभग 2 महीने से बिजली में बहुत ज़्यादा कटौती हो रही है। रात में दो से ढाई घंटे लाइट रहती है और दिन में तीन-साढ़े 3 घंटे लाइट रहती है। कुल मिलाकर 6 से 7 घंटे ही लाइट मिलती है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 18 घंटे लाइट देने का नियम बताया गया है।
वह कहते हैं कि इतनी कम बिजली में ना तो घर रोशन हो पाता है और ना ही खेतों की सिंचाई हो पाती है। इस समय खरीफ की फसल के लिए पलेवा की ज़रूरत है। उसके लिए भरपूर बिजली चाहिए तभी वह फसल को तैयार कर पाएंगे। बिजली की कमी के कारण सब बेकार है। जो धान है वह भी सूख रहा है। वह बताते हैं कि उनका बीहड़ क्षेत्र है। नहर तो है लेकिन उतना पानी नहीं मिल पाता जितनी की ज़रुरत होती है। कोई सरकारी ट्यूबवेल भी नहीं है ताकि वह सिंचाई कर सके।
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पीने के लिए तरसते हैं तो सिंचाई कैसे होगी ?
महाराजपुर के किसान कल्लू, रगौली के किसान गोरेलाल और मुन्नी बताते हैं कि उनका तो बहुत ही पिछड़ा और पहाड़ी क्षेत्र है। यहां पीने के पानी के लाले पड़े हैं। सिंचाई तो भगवान भरोसे होती है। अगर बारिश ठीक-ठाक हो गई तो फसल हो गई वरना नहीं। किसानों ने बताया कि यहां पर सिंचाई के लिए भी कोई साधन नहीं है। गर्मियों में तो पीने के लिए भी पानी दूसरे गांव से मंगाया जाता है। जैसे-टैंकरों द्वारा, लेकिन जिन भी लोगों के पास व्यक्तिगत ट्यूबवेल हैं उससे थोड़ा बहुत सिंचाई हो जाती है। इसके ज़रिये वह लोग खाने भर के लिए अनाज पैदा कर लेते हैं। वहीं बाकी की खेती तो कई बार परती पड़ी रहती है।
किसानों ने बताया कि इस समय बिजली कटौती के कारण सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा। अगर उनको भरपूर बिजली मिले तो उनकी फसल के लिए पानी मिल सकता है और पलेवा हो सकता है। बिना पलेवा के बीज डालते हैं तो वह भी सूख जाएगा। सरकार बड़े-बड़े वादे तो करती है कि किसानों को भरपूर बिजली-पानी देगी लेकिन सब खोखले वादे रह जाते हैं। जब चुनाव का समय आता है तो चाहें जिस की भी सरकार हो वह किसानों के इन्हीं मुद्दों को लेकर चलती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत क्या है और किसान किन परिस्थितियों से गुज़र रहा है या किस क़र्ज़ के बोझ तले डूबता चला जा रहा है यह वही जानता है।
वह आगे बताते हैं कि सरकार की खेत तालाब योजना के तहत उनके क्षेत्र में लगभग 25 तालाब खुदे हैं। उन्होंने सोचा था कि इन्हीं तालाबों से उन्हें कुछ मदद मिलेगी। वह लोग मछली वगैरह का पालन कर लेंगे, सिंघाड़े लगा लेंगे लेकिन इतनी ज़्यादा बारिश ही नहीं होती की तालाब भरा रहे। बारिश के समय तालाब थोड़ा बहुत भर जाते हैं। फिर 2 महीने,3 महीने बाद सूख जाते हैं। जो समतल ज़मीने थी वह भी तालाबों के चक्कर में खुद कर गड्ढे बन गई हैं। लोगों ने बताया कि इन तालाबों से एक बार सिंचाई के लिए पानी मिल जाता है लेकिन बिना बिजली के सिंचाई करना मुश्किल है।
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तिल की फसल भी हो चुकी है बर्बाद
खपटिहा कला गांव के किसान चुन्नू और राधे बताते हैं कि उनके यहां की तिल की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। जिसमें लगभग 8 से 10 हज़ार की लागत आई थी। पानी के बिना फसल पूरी तरह से सूख चुकी है। इसकी जुताई में हज़ार रूपये प्रति घंटा लगता है। इस समय चना, गेहूं जैसी खरीफ फसलों की बुवाई की है लेकिन बिजली कटौती के कारण उन्हें भी पानी नहीं मिल पा रहा है।
मोतियारी गांव के किसान बताते हैं कि उनके यहां कोई सरकारी ट्यूबवेल नहीं है सिर्फ नहर का ही साधन है जिसके सहारे उनकी धान की फसल हो जाती है।
वह कहते हैं कि दूसरी फसल के लिए उन्हें काफी दिक्कत हो रही है। कई बार लोगों ने अपने क्षेत्र में सरकारी ट्यूबवेल की मांग की लेकिन लोगों की कोई सुनवाई नहीं हुई। उनके यहां चार महीने से बिजली की किल्लत लगातार हो रही है। कई बार अधिकारियो से भी कहा तो वह कहते हैं कि कोयले की कमी की वजह से बिजली में कमी हो रही है।
बिजली विभाग को भी लिखा था पत्र
लोग कहते हैं कि घर को रोशन करने के लिए मिट्टी का तेल भी नहीं मिलता। इसी वजह से लोग खाने वाले तेल की ही बत्ती बनाकर जला लेते हैं। शाम होते ही लोग खाना खाकर खटिया पकड़ लेते हैं। लोगों ने बताया कि नवरात्रि के समय 12 अक्टूबर को बांदा के डीएम अनुराग पटेल ने बिजली विभाग के एमडी को पत्र भी लिखा था और वर्ता भी की थी। इसके बावजूद भी बिजली की पूर्ती नहीं हुई।
बिजली विभाग के एसडीओ ने कहा- कर रहें पूरी कोशिश
नरैनी के बिजली विभाग के एसडीओ से हमने बात की। उनका कहना था कि बिजली शहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में बराबर दी जा रही है। जो मानक तय है उसके हिसाब से दी जाती है। कभी-कभार कुछ खराबी की वजह से दिक्कत होती है। वह आगे कहते हैं कि थोड़ा बहुत बिजली की कटौती अगर होती है तो वह ऊपर से हो जाती है। बाकी वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बिजली लोगों को भरपूर मिले।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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