Bjp सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है। इस अभियान की कोई जरुरत है। इस अभियान से न बेटी बची न बेटी पढ़ पा रहीं। जब स्कूल चलो अभियान और सर्व शिक्षा अभियान इं बेटियों को पढ़ाने में सफल नहीं हो पा रहें तो नाम भर के लिए bjp का इस अभियान का क्या रोल है। अभी हाल में ही बाल एवं पुष्टाहार विभाग और बेसिक शिक्षा विभाग की सर्वे रिपोर्ट में निकल कर आया कि मंडल (चित्रकूट, महोबा, बांदा और हमीरपुर) की 11 हज़ार लड़कियां स्कूल से ड्रॉप आउट हैं। हालांकि बांदा के बेसिक शिक्षा अधिकारी का कहना है कि उन्होने 31 जुलाई तक में बेसिक शिक्षा विभाग के आँकड़ों के आधार पर सभी ड्रॉप आउट बच्चों का एडमीसन करवा दिया है। बाल एवं पुष्टाहार विभाग ने अपने आकड़े की फाइल अब तक नहीं दी जिससे कि उन बच्चों का भी दाखिला कराया जा सके।
रिपोर्टिंग के दौरान बहुत लड़कियाँ मिलीं जो 5 या फिर 8 के बाद स्कूल छोड़ चुकी हैं। कुछ ही इन ड्रॉप आउट लड़कियों का दाखिला हो पाया है। सर्वे के लिए लड़कियों के घर न ही कोई टीचर गया न ही आँगनबाड़ी। अगर सर्वे ही नहीं किया तो लड़कियाँ कैसे जा पायेंगी स्कूल। अविभावको से भी बात हुई। उन्होने सुरक्षा की बात की। घर के काम और जिम्मेदारियां भी हैं। कुछ तो जागरूकता की भी कमी है। क्यों जिम्मेदारी नहीं समझी जाती लड़कियों के पढ़ाने के लिए। आखिकार लड़कियाँ ही घर का काम क्यों करें। हम हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं इस लड़कियों के लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हैं, क्या यही। घर्तक सीमित रहना, घर के कामों में हाथ बताना, लोगों का लड़कियों के प्रति पराये धन कहा जाना।