बच्चे जुगाड़ते हैं खुशियां
कूड़े के कबाड़ से बच्चों ने मनाई दिवाली
एक हफ्ते पहले मैं बांदा-बिसंडा रोड से गुजरी तो अचानक से हवा के झोंके के साथ बदबू आई इसलिए सड़क के किनारे लगे कूड़े के ढेर में नजर पड़ी। कोई मरा मवेशी पड़ा था और उसके बगल में तीन मासूम बच्चे बड़े-बड़े बोरे कंधे में टांगे कूड़े के ढेर में कुछ ढूढ रहे थे। मैं रुककर उनसे पूंछना चाही तो वह बच्चे बोरा लेकर भागने लगे। समझाने और भरोसा दिलाने पर बहुत मुश्किल से रुके। तीनों में जो सबसे बड़ा था उससे पूंछना शुरू की। उसने बताया कि वह शहर के गायत्री नगर का रहने वाला है।
उसके मां-बाप बहुत बुजुर्ग हैं और बहुत बीमार भी रहते हैं। उसके परिवार में और कोई नहीं है। वह अकेला ही दस सालों से जिंदगी गुजार रहा है। अब उसकी उम्र पन्द्रह साल है तो कमाई करने में उतनी दिक्कत नहीं होती। इसी तरह दूसरे लड़के की उम्र लगभग दस साल रही होगी और तीसरे की आठ साल। दूसरे के पिता नहीं हैं तो तीसरे के माता पिता दोनों नहीं हैं। वह दोनों मजदूरी करते हैं तब उनके घर का चूल्हा जलता है। अब दिवाली के लिए व्यवस्था करनी थी तो कूड़े से कबाड़ बिनकर पैसों का जुगाड़ कर रहे हैं। जब ये सवाल उनसे करी कि क्या क्या व्यवस्था करेंगे तो सोचते हुए बोले कि जितना हो सकेगा उतना तो करेंगे।