दिव्यांग लड़की के पिता ने हमें बताया कि जब उनकी बेटी छोटी थी, तब भी वो भी कई बार प्रशासन आए और सहायता मिलने की मांग करी, लेकिन तब उन्हें यह कह कर वापस लौटा दिया गया कि विकलांगों को किसी भी योजना का लाभ 14 साल की उम्र के बाद ही मिलेगा।
मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले की डेरी रोड पर रहने वाली एक लड़की जो कि पैदाइशी दिव्यांग है, उसके परिवार का आरोप है कि दिव्यांग लड़की को प्रशासन की तरफ से कोई भी सुविधा नहीं दी जा रही है।
लड़की के पिता मनोज अहिरवार का कहना है कि उनकी बेटी की उम्र 16 वर्ष है, लेकिन आजतक उसे सरकार या प्रशासन की तरफ से किसी भी आधिकारिक योजना या आर्थिक सहायता का लाभ नहीं दिया गया है। विकलांग लड़की के पिता ने हमें बताया कि जब उनकी बेटी छोटी थी, तब भी वो भी कई बार प्रशासन आए और सहायता मिलने की मांग करी, लेकिन तब उन्हें यह कह कर वापस लौटा दिया गया कि विकलांगों को किसी भी योजना का लाभ 14 साल की उम्र के बाद ही मिलेगा। और अब जब उनकी बेटी इतनी बड़ी हो गई है, तब भी वो सरकारी सेवाओं से वंचित है।
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स्कूली शिक्षा से भी वंचित है बच्ची-
दिव्यांग लड़की के पिता का कहना है कि आर्थिक समस्याओं के चलते वो अपनी बेटी का दाखिला किसी प्राइवेट स्कूल में नहीं करा पा रहे हैं, उनकी बेटी का न ही अबतक आधार कार्ड बना है और न ही इस परिवार के पास राशन कार्ड है। इन दोनों ही चीज़ों की कमी के कारण उनकी बेटी का दाखिला सरकारी स्कूल में भी नहीं हो पा रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी दोनों पैरों से दिव्यांग है, और वैसे तो सरकार हर दिव्यांग बच्चे को सुविधाएं प्रदान करती है, लेकिन किसी भी अधिकारी से जान पहचान न होने के चलते वो अपनी बेटी को उसका हक़ दिला पाने में असक्षम हैं।
साइकिल वाली व्हीलचेयर चाहता है परिवार-
बच्ची के पिता ने हमें यह भी बताया कि उन्हें ही हर विभाग और हर दफ्तर में अपनी बेटी के साथ जाना पड़ता है। वैसे तो सरकार द्वारा दिव्यांगों को साइकिल वाली व्हीलचेयर मिलती है, लेकिन उनकी बच्ची को अबतक ऐसा कुछ भी नहीं दिया गया है। बच्ची के पिता की मानें तो अगर उनकी बेटी को भी साइकिल वाली व्हीलचेयर मिल जाए तो वो खुद ही हर जगह जा सकती है और परिवार के सदस्यों को अपना काम छोड़ कर उसके साथ नहीं जाना पड़ेगा।
मनोज का कहना है कि उन्होंने अपने गाँव की प्रधान रानू रैकवार से भी इस मामले को लेकर बात करी थी, जिसके बाद व्हीलचेयर दिलवाने के लिए प्रधान ने फॉर्म भी भरवा दिया था, पर उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ और उसे अबतक व्हीलचेयर नहीं मिली। उन्होंने बताया कि कुछ सालों पहले भी जब छतरपुर जिले में व्हीलचेयर बांटी जा रही थी, तब बीजेपी कार्यकर्ता अर्चना सिंह ने कहा था कि जब दिव्यांग बच्ची 14 साल की हो जाएगी, तब उसे अवश्य व्हीलचेयर दी जाएगी। लेकिन उन्होंने भी उसके बाद इस परिवार की कोई मदद नहीं की है।
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कलक्ट्रेट से मिला है आश्वासन-
फिलहाल दिव्यांग लड़की के परिवार ने ज़िला कलेक्टर शैलेंद्र सिंह से आवेदन देकर कहा है कि उनकी लड़की को भी दिव्यांगों के लिए चलाई जा रहीं सभी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए, इसके साथ परिवार ने बच्ची का विकलांग सर्टिफिकेट भी बनवाने की मांग की है। बता दें कि कलक्ट्रेट के अधिकारियों ने परिवार को आश्वासन दिया है कि उनकी लड़की को जल्द ही व्हीलचेयर दिलवाई जाएगी और जिला अस्पताल से उसका दिव्यांग सर्टिफिकेट भी जल्द से जल्द बनवा दिया जाएगा।
सरकारी योजनाओं के बावजूद नहीं मिल रहा लाभ-
बता दें कि केंद्र सरकार ने वैसे तो दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कई तरह की योजनाओं को चला रखा है, लेकिन इसका लाभ कितने लोग उठा पाते हैं, यह किसी को नहीं पता। सुप्रीम कोर्ट ने यह कानून बनाया था कि विकलांग बच्चों को 18 वर्ष की उम्र तक मुफ्त और आवश्यक रूप से शिक्षा दी जाए। यदि व्यक्ति का विकलांग सर्टिफिकेट बना हुआ है, तो उनकी शादी के लिए प्रोत्साहन राशि के रूप में आर्थिक भी मदद की जाएगी।
उत्तर प्रदेश विकलांग पेंशन योजना के अंतर्गत प्रदेश के दिव्यांग नागरिकों को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ₹500 प्रति माह की धनराशि भी प्रदान की जाती है। दिव्यांगों को रोज़गार से लेकर उनकी दिव्यांगता से जुड़ी ज़रूरी सहूलियत प्रदान करने के लिए भी सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। परन्तु फिर भी छतरपुर की रहने वाली इस विकलांग लड़की की तरह देश के न जाने कितने विकलांग आज भी इन सुविधाओं से वंचित हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग अलीमा द्वारा की गयी है।
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