महाराष्ट्र के मलिन बस्ती जो की एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती में से एक है जिसे धारावी पुनर्विकास परियोजना (डीआरपी) के तहत एक बेहतर और साफ-सुथरा इलाका बनाने की तैयारी की जा रही है।
चमचमाते हुए मुंबई शहर के बीचोंबीच बसा धारावी मानो एक अलग ही दुनिया है। यह इलाक़ा 600 एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ है। इस इलाके में दस लाख से भी ज़्यादा लोग रहते हैं। यहाँ उन लोगों का घर है जो किसी भी तरह मेहनत मज़दूरी कर अपना जीवन चला रहे हैं। इस बस्ती में जितनी गलियाँ और जितने परिवार हैं सभी की एक अलग कहानी और संघर्ष है। अब वर्तमान में इस बस्ती में “गली बॉय” की गानों और ‘स्लम डॉग मिलियनेर” ऑस्कर से प्रसिद्ध हुई धारावी का नया रूप क्या होगा, कैसे होगा ये आगे देखने वाली बात है। एक नई योजना की जानकारी सामने आई है जिसमें धारावी को एक आधुनिक टाउनशिप में बदलने की बात कही जा रही है। इसमें वहाँ के लोगों के लिए कई मंजिलों की इमारतें बनेगी, पात्र निवासियों को मुफ़्त घर मिलेंगे और बाकी लोगों को पास के इलाक़ों में शिफ्ट किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि इससे लोगों को बेहतर मकान, दुकान और सुविधाएँ मिलेंगी। मुंबई की धारावी जो एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती मानी जाती है। अब एक बड़े पुनर्विकास परियोजना के तहत बदलने जा रही है।
धारावी का पुनर्विकास कैसे होगा और कौन करेगा?
इस परियोजना का नाम ‘धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ है। इसे महाराष्ट्र की सरकार और एक बड़े उद्योगपति गौतम अदानी की कंपनी के द्वारा अमल में लाया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार का मानना है कि पुनर्विकास के बाद धारावी के 10 लाख से ज़्यादा लोग एक बेहतर और सम्मानजनक ज़िंदगी जी पाएंगे। साथ ही इस परियोजना का उद्देश्य है कि धारावी के निवासियों को बेहतर आवास, स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवायें और रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इस परियोजना के तहत लगभग 1.4 लाख परिवारों को पुनर्वासित किया जाएगा और 590 एकड़ क्षेत्र में आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक विकास किया जाएगा। इस परियोजना को अदानी समूह की सहायक कंपनी, नवभारत मेगा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (एनएमडीपीएल) द्वारा लागू किया जा रहा है। अदानी समूह ने इस परियोजना के लिए ₹5,069 करोड़ की बोली दी थी जिसे महाराष्ट्र सरकार ने स्वीकार किया।
धारावी क्या है और यहां कौन लोग रहते हैं?
धारावी एक घनी आबादी वाली झुग्गी बस्ती है जो मुंबई में स्थित है और यहां रहने वाले अधिकतर लोग प्रवासी कर्मचारी और मेहनत-मजदूरी से अपना जीवन चलाने वाले लोग रहते हैं। धारावी में हर साल चमड़ा, प्लास्टिक जैसे छोटे उद्योगों से लगभग एक अरब डॉलर की आमदनी होती है। इससे क़रीब एक लाख लोगों को रोज़गार मिलता है। एक समय था जब धारावी मछुवारों का गांव था जो हर साल क़रीब एक साल से ज़्यादा लोगों को रोजगार देती रही। इसकी गली में धुवां भी है और मिट्टी की ख़ुशबू भी। गरीबी भी है और मेहनत भी। धारावी की इन संकरी गलियों में झाड़ू बनाने वालों से लेकर टूर गाइड और होम-बेस्ड वर्कर तक रहते हैं और काम करते हैं। यहाँ का चमड़ा उद्योग काफ़ी बड़ा है। इसमें हर धर्म के लोग काम करते हैं।
धारावी के लोगों को पुनर्विकास का कई सालों से इंतज़ार
कुछ मीडिया चैनलों जैसे इंडियन एक्सप्रेस, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, बीबीसी आदि के रिसर्चों द्वारा ये पता लगा कि धारावी के पुनर्विकास का मामला पिछले कई सालों से चल रही है। धारावी पुनर्विकास परियोजना (डीआरपी) की शुरुआत 2003 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा की गई थी लेकिन विभिन्न कारणों से यह योजना लंबे समय तक ठंडे बस्ते में रही। 2022 में अदानी समूह ने इस परियोजना के लिए ₹5,069 करोड़ की बोली लगाई थी जिसे सरकार ने स्वीकार किया। इसके बाद मार्च 2023 में अदानी समूह को इस परियोजना का ठेका दिया गया। महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल 2025 में इस परियोजना को फिर से सक्रिय किया और टेंडर आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू की। 2025 में इस परियोजना को फिर से सक्रिय किया गया है और इसके कार्यान्वयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। वर्ष 2003 से धारावी के लोग इस परियोजना का केवल नाम ही सुन पा रहे हैं। वे तब से उम्मीद लगाएँ हुए हैं कि कब उनके जीवन में भी कुछ विकास हो जो सरकार द्वारा कहा जाता है।
धारावी का विकास का वादा या धोखा?
देश में विकास की बातें हमेशा चर्चा में रहती हैं। लगभग जगहों में आम लोगों को वादा किया जाता है कि पक्के मकान होंगे, रोजगार होगा, साफ सुथरी गलियाँ होंगी, उनके जीवन में बदलाव आएगा। लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। लोगों को विकास के नाम पर नोटिस देकर घर खाली करवा दिया जाता है और फिर लोग डर के मारे घर छोड़ देते हैं लेकिन उसके बाद उन्हें ना रहने की ज़मीन मिल पाती है और ना कोई मुआवजा। अगर लोग घर खाली करने से मना करें तो घरों में बुलडोज़र चलवा दिया जाता है। धारावी नई जगह नहीं है जहाँ अच्छा मकान और सुख सुविधाओं की बात की जा रही है देश के कई अलग अलग जगहों में मेहनतकश लोगों को अच्छी सुविधाओं और विकास के नाम पर घर खाली करवा दिया जाता जिसके बदले उन्हें बेघर और बेसहारा के के अलावा कुछ भी नहीं मिल पता। वर्तमान की सबसे बड़ी उदाहरण है छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले की जहाँ लोग अपने ज़मीन और मुआवजा के लिए 57 सालों से संघर्ष कर रहे हैं। पुनर्विकास का मतलब सिर्फ बिल्डिंग बनाना नहीं है बल्कि लोगों का भरोसा जीतना और उन्हें बेहतर जीवन देना भी है।
धारावी के लोग भी इसी उम्मीद में है कि कब उनका जीवन भी बेहतर होगा। आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि धारावी और वहाँ रहने वाले लोगों का जीवन कितना सुधर पाया है। धारावी पुनर्विकास परियोजना न केवल झुग्गीवासियों को सम्मानजनक जीवन देने की दिशा में एक बड़ा कदम है बल्कि मुंबई के शहरी विकास की तस्वीर भी बदल सकती है।
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