कोरोना महामारी ने लोगों को शारीरिक रूप से ज्यादा मानसिक रूप से कमजोर बना दिया है. इस वक्त जगह जगह पर लोगों के आत्महत्या की ख़बरें आती रहती है. इसी क्रम में दो नाम और जुड़ गया वो है अर्पित और अंकित का. 26 अगस्त को दोनों भाई दिन में 3 बजे अपनी ज्वैलरी की दुकान में फांसी के फंदे से लटके मिले।
क्या है पूरा मामला
मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक़,अंकित और अर्पित के दादा विश्वनाथ गुप्ता ने 100 साल पहले दिल्ली के चांदनी चौक में घड़ी की दुकान खोली थी जिसे उनके बेटे आदिश्वर नाथ गुप्ता चला रहे हैं। इसमें आदिश्वर का साथ उनके दोनों बेटे अंकित और अर्पित देते थे। इसके साथ ही उनके बेटे अंकित और अर्पित की दूकान भी थी जो पिछले 20 सालों से चला रहे थे|
उनकी दुकान को लोग घड़ी वाले के नाम से ही जानते है. लॉकडाउन के दौरान सबके काम बंद हो गए। लोकडाउन खुलने के बाद भी बाजार में काफी उतार – चढ़ाव थे और आमदनी ठप हो गई. ज्वेलरी के व्यापार में घाटा होने के चलते दोनों भाइयों ने चांदनी चौक के कई ज्वेलर्स से ब्याज पर लगभग 60 लाख रुपये लिए थे। लॉकडाउन में काम ठप होने के कारण ब्याज का पैसा बढ़ता चला गया, जिसके कारण सूदखोर उन्हें लगातार परेशान कर रहे थे । जिस वजह से उसने ऐसा कदम उठाया।
मरने से पहले माँ से फोन पर बात की ख़बरों के अनुसार 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 48 मिनट पर उनकी मां ऊषा ने कॉल किया। उनसे बात करते हुए दोनों भाइयों ने दर्द भरी आवाज में कहा कि अब उनके पास वक्त नहीं रहा और कॉल काट दिया। इसके कुछ देर बाद दूकान में उनके सहायक वहां पहुंचे तो दोनों को फांसी पर लटके हुए पाया। अंकित के दो बच्चे थे जबकि अर्पित की शादी नहीं हुई थी।
पुलिस जाँच में जुटी
दोनों भाइयों ने सुसाइड नोट में किसी का नाम नहीं लिया है। पुलिस ने परिजनों के बयान दर्ज किए हैं और मामले की जांच जारी है। पुलिस उन साहूकारों की खोज भी कर रही है जिससे दोनों भाइयों ने कर्ज लिया था और जो उन्हें परेशान करते थे |
देश के लोग भयंकर मानसिक बिमारी का हो रहे है शिकार
इंडियन साइकियाट्री सोसाइटी (आईपीएस ) के एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से, मानसिक बीमारी के मामलों की संख्या में 20% की वृद्धि हुई थी और पांच में से कम से कम एक भारतीय प्रभावित हुआ है। आईपीएस ने यह भी चेतावनी दी कि आजीविका का नुकसान और आर्थिक कठिनाई का स्तर, अलगाव, साथ ही साथ महामारी से उत्पन्न घरेलू दुरुपयोग में वृद्धि भारत में एक नए मानसिक स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकती है और “आत्महत्या के खतरे को काफी बढ़ा सकती है”
स्थिति सामन्य होने में वक्त लगेगा
बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-2020 की अपनी सालाना रिपोर्ट में यह भी माना है कि कोरोना महामारी की वजह से जो आर्थिक स्थिति बिगड़ी, उसकी सबसे ज़्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है जो सबसे अधिक ग़रीब थे। आरबीआई ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के जो लक्षण मई-जून में दिखे थे, वे जुलाई-अगस्त आते-आते कमज़ोर पड़ गए। इसकी वजह लॉकडाउन को सख़्ती से लागू करना है। इसके साथ ही आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर यह मान लिया है और कहा है कि अर्थव्यवस्था को दुरुस्त होने में अभी समय लगेगा।