कहा जाता है कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता, जातिपांति का भेदभाव नहीं समझाया हर धार्मिक ग्रंथों में अहिंसा की बात लिखी होती है तो फिर क्यों तुलसी दास जी की लिखी रामचरितमानस जो लगभग साढ़े चार सौ साल पुरानी है। इस समय एक चौपाई में मुद्दा बना हुआ है।
‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ये सब हैं ताणन के अधिकारी’, ढोल की तरह महिलाओं को भी पीटने जैसे शब्द कहे गए हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या ने इस चौपाई को रामचरितमानस से हटाने की मांग की है।
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इतना ही नहीं अब ये मुद्दा लोगों में बेहद बढ़ता जा रहा है। आक्रोश है कि किस तरह की सोच रही होगी। उस समय भी उच्च जाति के माने जाने वाले लोगों की जब धार्मिक किताबों में इस तरह की कठोर बातें लिखी गई हैं तो आज जो भेदभाव हो रहा, यही कारण रहा होगा। उच्च जाति के माने जाने वाले लोग महिलाओं को जानवर की तरह ही समझते रहे हैं।
छोटी जाति के लोगों को भी जानवरों की तरह ही समझते रहे हैं और अत्याचार करते थे इसलिए ही पढ़ाई से दूर रखतें थे। उनको डर था कहीं छोटी जाति के लोग या महिलाएं पढ़-लिख गए तो जागरूक हो जाएंगे। अपने अधिकार जानेंगे फिर मांगने लगेंगे इसलिए शिक्षा से दूर रखा गया और जिस तरह से रामचरितमानस में लिखा है वहीं बर्ताव महिलाओं के साथ करते रहे हैं।
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