दिल्ली में प्रदूषण का बढ़ना उस समय देखने को मिला जब अधिकारियों ने GRAP के चरण-III वाले प्रतिबंध हटाए थे। ये नियम आमतौर पर तब लागू किए जाते हैं जब हवा बेहद जहरीली हो जाती है लेकिन प्रतिबंध हटने के सिर्फ एक दिन बाद ही हालात फिर खराब होने लगे। प्रदूषण महिलाओं के स्वास्थ्य को ज़्यादा प्रभावित कर रहा है।
दिल्ली इन दिनों एक बार फिर जहरीली हवा की गिरफ्त में है। प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ चुका है कि राजधानी का AQI लगातार गंभीर श्रेणी से ऊपर बना हुआ है और कई इलाकों में यह लगभग 400 के पार पहुंच गया है जो सीधे तौर पर स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है। हालात ऐसे हैं कि हर सांस मानो जोखिम लेकर लेनी पड़ रही है।
दिल्ली में प्रदूषण का बढ़ना उस समय देखने को मिला जब अधिकारियों ने GRAP के चरण-III वाले प्रतिबंध हटाए थे। ये नियम आमतौर पर तब लागू किए जाते हैं जब हवा बेहद जहरीली हो जाती है लेकिन प्रतिबंध हटने के सिर्फ एक दिन बाद ही हालात फिर खराब होने लगे। कल यानी 27 नवंबर को राजधानी का औसत AQI अचानक बढ़कर 327 से 377 पहुंच गया। यानी 24 घंटे के भीतर हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट दर्ज की गई और प्रदूषण का स्तर फिर गंभीर श्रेणी के करीब पहुँच गया।
अगर मैप (नक़्शा) में देखें तो दिल्ली वर्तमान में लाल रंग में नजर आता है जो खतरे की निशानी है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, 28 नवंबर को पूरे दिन हवा की रफ्तार बहुत कम रहने से दिल्ली-NCR में प्रदूषण लगातार बढ़ता गया। सुबह 8 बजे जहां AQI 351 था वहीँ शाम 7 बजे तक यह 381 पहुंच गया। यह बताता है कि हवा में फैले हानिकारक कण पूरे दिन जमा होते रहे और फैल नहीं पाए।
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि दिनभर हवाएँ लगभग थमी रहीं और सिर्फ 4–5 किमी प्रति घंटे की हल्की हवा चली। यह गति इतनी कम थी कि सूक्ष्म कणों को फैलाने के लिए भी पर्याप्त नहीं रही। अनुमान है कि आने वाले दिनों में भी राजधानी की हवा “बहुत खराब” श्रेणी में ही बनी रह सकती है। इसी दौरान बढ़ती ठंड भी संकट को और गंभीर बना रही है। कम तापमान, कोहरा और खराब हवा। इन तीनों के मिल जाने से लोगों की सेहत पर ज्यादा असर पड़ रहा है। खासकर बच्चों, बुज़ुर्गों और सांस से जुड़ी बीमारियों वाले लोगों पर।
“हमारे पास जादू की छड़ी नहीं है”
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने 28 नवंबर को ये कहा कि दिल्ली एनसीआर में हर कोई प्रदूषण झेल रहा है लेकिन “कोर्ट के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है” जो समस्या को तुरंत हल दे। एमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट अपराजिता सिंह ने हेल्थ एमरजेंसी के हालत बताते हुए तुरंत सुनवाई की मांग की थी। उनकी दलीलों से सहमति जताते हुए सीजेआई ने कहा “ये नहीं हो सकता कि हम कोई आदेश दें और तुरंत साफ हवा मिल जाए? समस्या सबको पता है मुद्दा ये है कि समाधान क्या है? समस्या की एक नहीं कई वजहें हैं। इसका समाधान विशेषज्ञ और वैज्ञानिक ही बता सकते हैं। हमने दीर्घक़ालीन समाधान की उम्मीद है। यह मुद्दा हर साल दिवाली के आसपास औपचारिक तौर पर लिस्ट होता है। हमें इसकी नियमित निगरानी करनी चाहिए।”
लोग दिल्ली छोड़ना चाह रहे हैं
दैनिक भास्कर की खबर अनुसार दिल्ली एनसीआर में चार हजार से ज़्यादा लोगों पर स्माईटन पल्सएआई के सर्वे में चौंकाने वाले नतीजे मिले। 80 प्रतिशत लोग प्रदूषण के कारण दिल्ली एनसीआर छोड़ने की सोच रहे हैं। 37 प्रतिशत लोग दूसरे देश में प्रोपर्टी देखना, स्कूल पता करना जैसे कदम उठाने लगे हैं। 76 प्रतिशत लोगों ने बाहर निकलना कम कर दिया है। वे प्रदूषण से बचना चाह रहे हैं। बता दें कई डॉक्टरों ने कहा है कि जिनके पास विकल्प हैं वे अगले छह महीने के लिए दिल्ली छोड़ दे।
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महिलाओं को इस बीमारी का अधिक खतरा
प्रदूषण लगातार बढ़ने के साथ ही क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) अब एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। यह बीमारी फेफड़ों में हवा के आने-जाने की प्रक्रिया को बाधित कर देती है जिससे सांस लेने में परेशानी होने लगती है। इस स्थिति में वायुमार्ग सूज जाते हैं बलगम बढ़ जाता है और फेफड़ों की थैलियों को नुकसान पहुँचने लगता है। जब हवा में मौजूद बेहद छोटे कण यानी PM2.5 फेफड़ों की गहराई तक चले जाते हैं तो वे सूजन बढ़ाते हैं फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुँचाते हैं और शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव को भी बढ़ा देते हैं। कई प्रदूषक शरीर की कोशिकाओं के ऊर्जा केंद्र यानी माइटोकॉन्ड्रिया के काम में बाधा डालते हैं जिससे कोशिकाएँ कमजोर होकर नष्ट भी हो सकती हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को इस बीमारी का खतरा और अधिक होता है क्योंकि उनके फेफड़े और वायुमार्ग पुरुषों की तुलना में छोटे होते हैं। ऐसे में धुएँ और प्रदूषित हवा के कणों का असर अधिक तीव्र हो जाता है। इसके साथ ही हार्मोन भी उनकी संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं जिससे महिलाएँ सीओपीडी के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं।
प्रदूषण के खिलाफ प्रदर्शन
दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण को लेकर कई कई संगठनों और छात्रों ने मिल कर इसका विरोध प्रदर्शन भी किया है। जिसके बाद उन्हें दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया था। उनका आरोप था कि दिल्ली प्रदूषण पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। ये विरोध प्रदर्शन दिल्ली के इंडिया गेट में किया जा रहा था जिसके बाद उन लोगों को हिरासत में लेकर बस में बैठा दिया गया। इसके ठीक एक सप्ताह बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रों ने दिल्ली प्रदूषण को फिर से उठाया और विरोध किया लेकिन सरकारी जवाब शून्य का शून्य।
क्या कहते हैं लोग?
जया (बदला हुआ नाम), जो दिल्ली में पढ़ने आई हैं वो बताती हैं कि उन्हें यहाँ तीन साल हो चुके हैं और हर साल उन्हें मजबूरन अपने घर जाना पड़ता है। कारण यह है कि उन्हें धूल से एलर्जी है और दिल्ली के प्रदूषण में एक दिन भी रह पाना खतरे से खाली नहीं है। वे कहती हैं, “जब सरकार को पता होता है कि हर साल यही स्थिति आने वाली है, तो वे इसके बचाव के लिए कोई रास्ता क्यों नहीं निकालते?”
अपने तीन साल के अनुभव के आधार पर वे कहती हैं कि बीते दो सालों की तुलना में इस साल प्रदूषण की स्थिति ज़्यादा खराब हो गई है।
कुछ लोगों से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनके पास कहीं और जाने का विकल्प ही नहीं है कि वे यहां को छोड़कर कहीं जा पाएं। अपने अनुभव साझा करते हुए वे कहते हैं कि कुछ घंटे ही घर के बाहर रहने से गले में तेज़ जलन शुरू हो जाती है, खांसी आने लगती है और आँखों में जलन व खुजली होने लगती है। उन्होंने कहा कि किसी की भी सरकार हो अगर मुद्दा जनता के स्वास्थ्य का है तो इस पर लापरवाही किए बिना प्रदूषण से निपटने के लिए काम करना चाहिए।
प्रदूषण से होने वाले आर्थिक नुक़सान
वायु प्रदूषण सिर्फ स्वास्थ्य नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ डाल रहा है। दिल्ली में हर साल प्रदूषण के कारण अरबों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है। इसमें बीमारियों पर बढ़ने वाला खर्च, कामकाजी लोगों की उत्पादकता में गिरावट, स्कूलों/ऑफिसों का बंद होना, और स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ता दबाव शामिल है। 2019 की Lancet रिपोर्ट ने बताया था कि भारत में प्रदूषण के कारण लगभग 1.4 लाख मौतें हुई थीं जिनका आर्थिक असर भी बहुत व्यापक था। दिल्ली जैसे शहर में यह समस्या रोजगार, पर्यटन, व्यवसाय और लोगों के रहने के फैसलों पर सीधा प्रभाव डालने लगी है।
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सवाल सीधा है
दिल्ली में प्रदूषण अब कोई नई या अचानक आने वाली समस्या नहीं रह गई है। हर साल सर्दियों के आते ही हवा ज़हरीली होती है स्कूल बंद होते हैं, बुज़ुर्ग और बच्चे बीमार पड़ते हैं और अस्पतालों में भीड़ बढ़ जाती है। फिर भी हालात वही रहते हैं या कभी और भी बदतर। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब सरकारों को पता है कि हर साल यही स्थिति बनेगी तो फिर तैयारी समय रहते क्यों नहीं की जाती?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब प्रदूषण सर्वाधिक होता है और पटाखे इसका महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं तो इस साल दिवाली पर पटाखों को लेकर ढील क्यों दी गई? वर्षों तक लगाया गया “कम पटाखे जलाएँ” वाला प्रतिबंध अचानक क्यों नरम पड़ा? क्या यह जनस्वास्थ्य से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित था या फिर इस गंभीर संकट को भी राजनीतिक और सामाजिक बहसों में उलझा दिया गया? दूसरी ओर जब लोग अपनी बुनियादी ज़रूरत साफ हवा के लिए सड़कों पर उतरकर विरोध करते हैं तो उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है। यह और भी चिंता पैदा करता है कि क्या नागरिकों की आवाज़ दबाई जा रही है जबकि वे सिर्फ स्वस्थ जीवन का अधिकार मांग रहे हैं। अगर लोगों को बोलने पर रोका जाएगा तो प्रदूषण जैसी जटिल समस्या का समाधान आखिर कैसे निकलेगा?
दिल्ली की हवा साल दर साल केवल चेतावनी नहीं दे रही वह साफ बता रही है कि अब वक्त हाथ से निकल रहा है। विशेषज्ञों की चेतावनियों, आम लोगों की परेशानी, बच्चों के बिगड़ते स्वास्थ्य और हर ओर बढ़ते आक्रोश के बावजूद अगर समाधान की गति इतनी धीमी रहेगी तो आने वाले वर्षों में हालात और भयावह हो सकते हैं।
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