डोंगरा गांव के 22 वर्षिय अन्नतराम अहिरवार ने बताया कि, “मेरी बारात 12 मार्च को जानी थी। मैं घोड़े पर बैठना चाहता हूँ। हमारे गांव में आजतक किसी ने घोड़े पर बैठने की हिम्मत नहीं की क्योंकि हमारे गांव में उच्च जाति के लोग यह बर्दाश्त नहीं करते। एक दलित का लड़का दुल्हा बनकर घोड़े पर बैठकर गांव भर में घूमे”।
हमारा समाज 21वीं सदी में चल रहा है लेकिन आज भी रूढ़ीवादी परम्पराओं में जकड़ा हुआ है। जैसे-जैसे भारत विकास कर रहा है, हर तरह से आगे बढ़ रहा है तो जाति की वजह से क्यों पिछड़ रहा है? शुरू से ही शादियों में लड़के को घोड़ी पर बैठने का प्रचलन आज तक बना हुआ है। अब शादियों की ऐसी रस्मों को देखकर बाकि दूसरे लोगों का भी मन होता ही है कि हम भी ऐसे एक दिन घोड़ी पर सवार होकर जायेंगे पर ये सपना सिर्फ सपना ही रहेगा क्या? अब एक ही दिन की तो बात है। ऐसी इच्छा है भी तो किसको क्या तकलीफ? जाति नहीं होती तो शायद तकलीफ नहीं होती। अब जो शुरू से चला आ रहा है कि उच्च जाति कही जानेवाली (सवर्ण) जातियों को ही ये विशेषाधिकार प्राप्त है। उन्हीं के घर के पुरुष घोड़ी चढ़ सकते है यदि किसी और जाति में ये हुआ तो इसका मतलब निम्न जाति के लोग खुद को उच्च जाति के बराबर समझते हैं।
दलित लड़के को घोड़ी पर बैठने से रोकने और उन पर पथराव करने के मामले खबरों में देखने सुनने मिलते हैं। इसके बावजूद आज भी दलित को घोड़ी पर बैठने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग करनी पड़ती है उसमें भी पुलिस ध्यान नहीं देती है। यही वजह है कि आज भी भारत के कई गावं ऐसे हैं जहां ये प्रथा है।
इसी तरह के मामले को खबर लहरिया की रिपोर्टर नाज़नी ने रिपोट किया। ये मामला है यूपी के `ललितपुर` जिले का एक गावं `डोंगरा`जहां पर एक दलित जाति के लड़के की इच्छा है कि अपनी बारात में वह घोड़ी पर बैठे। गावं में उच्च जाति कहे जाने वाले ही हमेशा से घोड़ी पर बैठने का अधिकार रखते हैं। ऐसा करने की हिम्मत किसी दलित में नहीं है। जो रीत सदियों से चली आ रही है। उसे भला कैसे टूटने दिया जा सकता है। ऐसी भावना रखने वालो का जवाब देने के लिए 22 वर्षिय अन्नतराम अहिरवार ने अपनी शादी में घोड़ी पर बैठने का फैसला किया।
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गांव में चली आ रही प्रथा को बदलने की कोशिश
ललितपुर जिले के `मड़ावरा` थाना के अंतर्गत आने वाला डोंगरा गांव के 22 वर्षिय अन्नतराम अहिरवार ने बताया कि, “मेरी बारात 12 मार्च को जानी थी। मैं घोड़े पर बैठना चाहता हूँ। हमारे गांव में आजतक किसी ने घोड़े पर बैठने की हिम्मत नहीं की क्योंकि हमारे गांव में उच्च जाति के लोग यह बर्दाश्त नहीं करते। एक दलित का लड़का दुल्हा बनकर घोड़े पर बैठकर गांव भर में घूमें। जहां तक है हर जगह यह रूढ़ीवादी प्रथा बंद हो गई है। हमारे क्षेत्र में अभी भी कई गांवों में ये प्रथा चल रही है जिसे मैं तोड़ना चाहता हूं।”
प्रथा तोड़ने का डर
लड़के के घरवालों का कहना है कि, “अंजाम के डर से कोशिश ही नहीं की। कुछ भी हो सकता है अब हमारे समाज के नए लड़के अपनी इच्छा से घोड़े पर बारात निकालना चाहते हैं लेकिन हमें डर है कहीं कुछ हो न जाए। वर्षों से ऐसी हिम्मत किसी ने नहीं की जो करेगा पहली बार परंपरा तोड़ने की उसके साथ कुछ भी हो जाएगा हमने पूलिस को पहले सुचना दी की हम घोड़े पर बरौनी निकलना चाहते हैं। पुलिस आयी पर हमें ही उल्टा डांट कर गई की तुम घोड़े पर चढ़कर मंदिर की तरफ मत जाना।”
दलित लड़के को इस प्रथा को तोड़ने का डर है साथ ही बहुत खतरा भी महसूस हो रहा है। परिवार वाले साथ है फिर भी उन्हें डर है कि उनके साथ कुछ भी बुरा घटित घट सकता है। इस वजह से अन्नतराम ने भीम आर्मी से मदद मांगी।
भीम आर्मी से मांगी मदद
इसी डर और खौफ के बीच अपनी शादी की बिनौली (बारात) निकालनें के लिए भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद से सहयोग मांगा था। मड़ावरा थाने में भी एप्लीकशन देकर पुलिस से सहयोग की गुहार लगाई थी। दलित लड़के ने कहा, “मैंने 10 मार्च को ललितपुर के भीम आर्मी के जिला अध्यक्ष द्वारा भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मदद मांगी है। ललितपुर भीम आर्मी जिला अध्यक्ष कमलेश अहिरवार ने कहा “हमें जब यह सुचना मिली तो हमने अपने स्तर से यह जानकारी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद जी को भी दी। उन्होंने हमें आदेश दिया साथ ही मार्गदर्शन दिया कि हम उस बच्चे की शादी में पहूंचे और प्रशासन की मदद से बच्चे की बरात शांति पूर्वक घोड़े पर बैठकर निकाली जाए।”
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गावं में यह पहला प्रयास
अन्नतराम की मां यशोदा ने बताया कि “मेरी शादी बचपन में हुई थी। शादी को लगभग 35 साल हो गए। आज तक मैंने किसी भी छोटी जाति के लड़के को घोड़ी पर बैठकर बरात निकलते नहीं देखा। मैंने अपने बड़े बेटे की भी शादी ऐसे ही कर दी थी। जब की मेरा अरमान था, मैं भी अपने बेटे की बरौनी यानी बारात घोड़े में बैठाकर निकालूं पर बड़ी जाति के लोगों का इतना डर था। कहीं कोई हादसा न हो जाए इसलिए ऐसे ही कर ली जैसे इतने सालों से हमारे बड़े बुढे करते चले आ रहे हैं।“
सवर्णों को ही घोड़ी पर बैठने का अधिकार
डोंगरा गांव के 62 वर्षिय अगुमांन ने बताया, “हम में इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि हम बडे लोगों से लड़ाई करते। हमने बड़ी जाति के लोगों की बारात देखी है। अधिकतर उच्च जाति के लड़कों (ठाकुर, पंडित, राजपूतों) को घोड़ी चढ़ते देखा है पर अपने समाज में कभी नहीं देखा। अंजाम के डर से कोशिश ही नहीं करी कुछ भी हो सकता है अब हमारे समाज के नये लड़के अपनी इच्छा से घोड़े पर बरात निकलना चाहते हैं लेकिन हमें डर है कहीं कुछ हो न जाए वर्षों से ऐसी हिम्मत किसी ने नहीं की जो करेगा पहली बार परंपरा तोड़ने की उसके साथ कुछ भी हो जाएगा हमने पूलिस को पहले सुचना दी की हम घोड़े पर बरौनी निकलना चाहते हैं पूलिस आई तो उल्टा हमें ही डांट कर गई की तुम घोड़े पर चढ़कर मंदिर की तरफ मत जाना।”
पुलिस थाना अध्यक्ष इसको सच मानाने से कर रहे हैं इंकार
मंडावरा थाना अध्यक्ष स्वास्तिक द्रिवेदी ने कहा “यह सब हाइलाइट होने के लिए कर रहा ऐसा कुछ नहीं है। न ही किसी से कोई रंजिश है, न किसी ने रोका। अभी बरात चढ़ी नहीं मनगढ़ंत कहानी बना रहा है। लगभग चार साल पहले एक दलित की बरात थी वह चढ़ा था घोड़े पर कुछ नहीं हुआ था। बस शोशल मिडिया में फेमस होने के लिए है कर रहा है। भीम आर्मी के लोग उसे सपोर्ट कर रहें हैं इसलिए।”
गांव वालों का कहना है कि “हम क्या कर सकते हैं कभी कुछ हुआ होता तो समझते भी। अभी कोई घोड़े पर नहीं चढ़ा तो इसमें गांव वालों की की क्या ग़लती है।”
जाति के आधार पर कब तक यह भेदभाव किया जाएगा? दलितों को अपनी कितनी इच्छाओं को यूँ ही त्यागना पडेगा? पुलिस वाले ऐसे गंभीर मुद्दों को सच नहीं मानते। जल्दी कारवाही नहीं करते तो जाति के नाम पर ऐसे ही अलग-अलग तरीकों से दलितों का शोषण होता रहेगा।
इस खबर की रिपोर्टिंग नाज़नी रिज़वी द्वारा की गई है।
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