दशेहरा, धनतेरस और दिवाली के त्यौहार अपने साथ लेकर आते हैं हर्षोउल्लास, प्रेम और उत्साह। लोग इस समय अपने सभी गिले शिकवे मिटाकर एक दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं। लेकिन त्योहारों के इस सीज़न में आपको एक चीज़ और देखने को मिलेगी, वो है जुएं का खेल ! धनतेरस के मौके पर धन इकट्ठा करने और बांटने का पुरुषों के पास ये सबसे बड़ा बहाना होता है। गली मोहल्ले के पुरूष से लेकर बुज़ुर्ग तक त्योहारों के मौके पर आपको जुआ खेलते मिल जाएंगे। लेकिन क्या आपने सोचा है कि आपके इस शौक का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? हमने महोबा ज़िले के कुलपहाड़ कसबे से कुछ लोगों की जुए को लेकर राय जानी, तो चलिए आप भी सुनिए कि इन लोगों का क्या कहना है।
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जुआं अगर पुरूष खेलें तो ठीक है, लेकिन वही जुआ अगर महिलाएं खेलती पायी जाएँ, तो उनपर समाज ताने कसने लगता है! अरे भई ये भेदभाव कैसा? कुछ ऐसा ही हुआ कुलपहाड़ की एक महिला के साथ। समाज ने उसके जुआ खेलने को लेकर अलग-अलग तरह की बातें बनाई जिसके बाद महिला ने जुआ खेलना छोड़ दिया।
तो देखा आपने धनतेरस-दिवाली के दौरान खेले जाने वाले जुए के बारे में लोगों की की अलग-अलग राय। हमारा तो यह मानना है कि त्यौहार को त्योहार की तरह ही मनाया जाना चाहिए। मिठाइयां खाइये, गले मिलिए, खुशियां बाँटिये और फिर देखिए अपनों के चेहरों पर आने वाली मुस्कान आपको हर धन-दौलत से बेहतर लगने लगेगी।
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