खबर लहरिया Blog बुंदेलखंड की शादियों में ‘बांस के सामान’ देने का रिवाज़ 

बुंदेलखंड की शादियों में ‘बांस के सामान’ देने का रिवाज़ 

शादियां और शादियों में परंपरा के रूप में दी जाने वाली चीज़ें, जिनके बिना न तो बुंदेलखंड में होने वाली शादियों को पूरा माना जाता है और न ही रिवाज़ को। सामाजिक क्रियाएं रिवाज़ों को आगे लेकर चलती है जिसमें शादी भी उसका एक हिस्सा है। एक समय पर आकर यह परंपरा यानी कल्चर का हिस्सा बन जाते हैं। व्यक्ति के अंदर भी वह कल्चर भर जाता है। ऐसे में कल्चर व्यक्ति के साथ-साथ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है और लोगों द्वारा उनके अहम हिस्से के रूप में निभाया जाता है। 

यह आर्टिकल भी बुंदेलखंड की शादियों से जुड़ी उन चीज़ों व परंपरा के बारे में है जिनको शामिल किये बिना, उन्हें दिए बिना शादी-विवाह की रस्में पूरी नहीं मानी जाती। 

बांस का टिपारा 

                                                                                                                          बांस से बने पिटारे की तस्वीर

‘बांस का टिपारा’ हिन्दू रीति-रिवाज़ के अनुसार शादियों में दिया जाता है। ‘टिपारा’ का मतलब होता है ‘बांस का टोपा’ जिसे आम भाषा में बांस की टोपी भी कहा जा सकता है। 

इस टोपी को रंग-बिरंगे कागज़ से मढ़ा जाता है। सुंदर टोपा तैयार हो जाने के बाद उसमें करी के लड्डू और मैदा के पापड़ भरकर लड़की के ससुराल भेजा जाता है। 

जब बेटी विदा होती है तो उसकी माँ द्वारा कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। यह पकवान सूखे होते हैं जिनमें मैदा,बेसन का इस्तेमाल किया जाता है ताकि वह कई दिनों तक चल सकें। इसके अलावा पापड़,बरी, पूड़ी सहित कई अन्य खाने-पीने की सामग्री भी इन बांस के बर्तनों में भेजी जाती है। 

बांस का सूपा 

                                                                                                        बांस से सूपा बनाते हुए बुज़ुर्ग व्यक्ति की तस्वीर

बांदा जिले के भवई गांव में रहने वाली शांति बताती हैं, सूपा सभी की घरों में मिल जाएगा। यह शादी में दिए जाने वाले पांच बर्तनों में से एक होता है। बताया जाता है कि जब नई बहू आती है तो सूपा से उसका निहारना किया जाता है। 

हिन्दू रीति-रिवाज़ में बांस को शुभ माना जाता है। कहते हैं कि यह जन्म से लेकर मरण तक किसी न किसी तरह से साथ रहता है। जब बच्चा पैदा होता है तो उसे बांस और सरई से बने सूपा में लेटाया जाता है। 

बांस की कुछ-कुछ चीज़ें अब विलुप्त हो रही हैं लेकिन सूपा आज भी सबके घरों में मिल जाएगा। आज भी आटा पिसवाने के लिए लोग सूपा से ही गेहूं साफ करते हैं। 

सूपा को अगर बनाने की बात की जाए तो यह भी बेहद मेहनत का काम है। यह बारीकी वाला काम होता है। 

बेना/ हाथ से बनाया हुआ पंखा 

                                                                                              बांस से बनाया गया हाथ से चलाने वाला पंखा

बांस से बने रंग-बिरंगे पंखे भी शादियों में दिए जाते हैं। पंखो को आम-बोलचाल की भाषा में ‘बिजना’ या ‘बेना’ कहते हैं। ये पंखे ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर देखने को मिलेंगे और इस समय तो लोगों के हाथों में। 

अभी गर्मियों का मौसम चल रहा है और इस समय ग्रामीण क्षेत्रों के हर एक घर में आपको यह पंखा देखने को मिल जाएगा। पहले फ्रिज या कूलर तो नहीं होता था लेकिन ये हाथ से बने पंखे होते थे जिन्हें शादियों में आज भी दिया जाता है। 

चंगेलिया

                                                                                                       चंगेलिया की तस्वीर

‘चंगेलिया’, इसे भी बांस से बनाया जाता है। जब बच्चा पैदा होता है तो बच्चे की बुआ गाजे-बाजे के साथ इसे लेकर आती है। इसकी सजावट  कागज़, रंगीन पन्नियां व कई तरह के खिलौने से की गई होती है। 

‘चंगेलिया’ भी लेकिन बस लड़के के जन्म के समय लाया जाता है। लड़कियों के जन्म से समय इसे नहीं लाया जाता क्योंकि रिवाज़ सिर्फ किसी एक लिंग को प्राथमिकता देता है और उसी के लिए खुशी मनाने को कहता है। 

यह रिवाज़ जहां एक तरफ किसी चीज़ को पूरा व अहम बताते हैं। यही रिवाज़ समय के साथ कई सवाल भी लेकर आते हैं। 

रिपोर्ट – गीता देवी 

 

‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke