हमारे यूपी में वैसे तो बहुत से कल्चर हैं पर उनमें से बहुत ही मशहूर है मेला। मेला हर जगह लगता है लेकिन बुन्देलखण्ड में तो हर छोटे, छोटे त्योहार पर मेला लगता है, कुछ जगह तो दिन बंधे हुए हैं, और उस-उस दिन मेला लगता है। ग्रामीण स्तर पर लोग झुंड में मेला देखने जाते हैं और मस्ती के साथ साज सज्जा,घर के इस्तेमाल का समान भी लाते हैं।
चित्रकूट जिले की बात करें तो पहाड़ी कसबे में हिन्दी महीने के फागुन में और इग्लिश महीने के फरवरी में पालेश्वर नाथ का मेला लगता है, यह इस ज़िले का सबसे बड़ा मेला होता है। इसे पहाड़ी का मेला भी कहते हैं। यहाँ मौजूद पहाड़ के ऊपर लोग मंदिर में दर्शन करने आते हैं और फिर नीचे लगे मेले में चले जाते हैं। इस मेले में दुकानों के साथ-साथ झूले, खान-पान की सामग्री आदि भी मौजूद होती है।
बांदा: तीन दिवसीय किसान मेले की झलक
बता दूँ कि पालेश्वर नाथ पहाड़ी का मेला 1948 से लग रहा है , यानी देश के आज़ाद होने के बाद से यह मेला लगने लगा था। इस मेले में आसपास के गाँव से लगभग सैकड़ों लोग आते हैं। और इस मेले का लोग सालभर इन्तजार करते हैं, यहां सबसे ज्यादा बिकने वाले समान मे से हैं एक खाने में गुड़ की जलेबी, सिल चकरी और खल बट्टा।
कहा जाता है कि यहां जो भी पत्थर का समान बिकता है वो बहुत अच्छा होता है और एमपी के सतना जिले से लोग उस सामान को बेचने यहाँ आते हैं। यहाँ सबसे ज्यादा बिकने वाला समान है बड़ी-बड़ी लोहे की कढ़ाई, इसके साथ ही किसानी के समान का भी लोग बहुत इन्तजार करते हैं। हमें लोगों ने बताया कि वो साल भर इस मेले का इंतज़ार करते हैं ताकि वो यहाँ से सामान खरीद सकें। इस मेले में लोग हर साल आते हैं और लगभग 70 सालों से लग रहे इस मेले भीड़ देखने लायक होती है।