जिला बांदा। बुंदेलखंड का किसान आए दिन सूखा, पाला, बारिश और ओलावृष्टि जैसी अन्य समस्याओं से जूझता रहता है। कभी भी उसे अपनी खेती-किसानी से इतनी इनकम नहीं होती कि उसका परिवार खुशहाल रुप से चल सके। यही कारण है कि किसान आए दिन कर्ज के बोझ तले दबता नजर आ रहा है। और आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।
अभी हाल का उदाहरण दूँ तो बांदा जिले के नरैनी तहसील अंतर्गत आने वाले गुड़ा ग्राम पंचायत में हजारों बीघा खेती जलमग्न पड़ी हुई हैं। और उसमें एक भी दाना किसानों के हाथ नहीं आएगा जिससे किसान बहुत ही चिंतित नजर आ रहा है।
कच्ची नहर बनीं किसानों के लिए आफत
बसरेही गांव के किसान जगन्नाथ पटेल बताते हैं कि उनके लगभग 10 बीघा जमीन है। जिसमें से 4 बीघे जमीन कच्ची नहर और उनसे होने वाले रिसाव की वजह से डूब गई है और यह दसियों साल से होता आ रहा है। इस साल भी उनकी वही बुवाई फसल सड़ गई। कई बार उन्होंने सिंचाई विभाग में शिकायत की और मांग किया कि नहर पूरी तरह पक्की करवा दी जाए। जिससे लीकेज की समस्या खत्म हो जाए, और हमारे खेतों में फसल तैयार होने लगे। लेकिन प्रशासन कोई सुनवाई नहीं करता।
उगने से पहले ही खेतों में सड़ गया गेहूं
इसी गांव के धर्मेंद्र बताते हैं कि इस समय किसानों की बहुत बुरी स्थिति है। वह बताते हैं की मेरी चार बीघे जमीन में नहर कि लीकेज की वजह से पानी भरा है। जबकि उन्होंने जोताई-बुवाई में लगभग 25 सौ रुपए खर्च करके घर से बीज भी डाला और गेहूं उगने भी लगा था लेकिन, पानी के भराव की वजह से वहीं का वहीं खेत में ही गेहूँ सड़ गया। अगर नाहर में लीकेज नहीं होता और गेहूं तैयार होता तो कम से कम साल भर के खाने के लिए अनाज हो जाता। अब क्या करें कोई चारा ही नहीं है इसलिए वह खेती के सहारे नहीं रह पाते। बाहर प्रदेशों में मजदूरी करके अपने परिवार का गुजारा करते है
विभाग नहीं कर रहा सुनवाई
रत्नम बताती है कि हम किसान जरूर हैं लेकिन खेत में पानी भरा होने के कारण दसियों साल से कुछ भी पैदा नहीं होता। अपने खाने के लिए हो या जानवरों के खाने के लिए सब कुछ खरीदना पड़ता है। ऐसी स्थिति है कि किसान होकर भी खेती का दाना घर में नहीं रख पाते। अगर यह जलभराव की स्थिति खत्म हो जाए तो हम किसानों का बहुत ही अच्छे से गुजारा होने लगे। इस एरिया की लगभग हजारों बीघे खेत ऐसी ही हैं जो जलभराव के कारण पड़ी हुई हैं। और किसान इस समस्या से जूझता चला रहा है।
रानी बताती है कि उसके खेत में भी यही स्थिति है कोई भी फ़सल नहीं उगा पाते। थोड़ा बहुत धान की फसल हो पाती है तो कटाई के समय उसको भी खटिया डाल कर सुखाया जाता है। ऐसी स्थिति में 5 बच्चों का कैसे गुजारा चले। इसलिए लड़का बहू परदेश जाते हैं और वहां से गुजारा चलता है। लगभग 10 साल से बराबर लोगों से शिकायतें कर रहे हैं और जो भी यहां पर नेता विधायक आते हैं उनसे भी कहते हैं। सिंचाई विभाग में भी कहा लेकिन वह लोग आज तक आश्वासन ही देते चले आ रहे हैं।
बजट आने पर बनेगी पक्की नहर- शरद चौहान अधिशासी अभियंता
सिंचाई विभाग लघु डाल के अधिशासी अभियंता शरद चौहान का कहना है कि काफी पुरानी नहर है और कच्ची होने की वजह से लीकेज है। इसकी शिकायतें तो आई हैं और प्रस्ताव भी डाला गया है। अगर प्रस्ताव पास हो जाता है और बजट आ जाता है तो कोशिश की जाएगी कि समस्याएं खत्म हो जाए। ताकि किसानों के खेतों में पानी भी ना भरे और उन्हें पर्याप्त मात्रा में जहां तक नहर है वहां तक बराबर सिंचाई के लिए पानी भी मिल सके।
सरकार किसानों के प्रति कितनी जिम्मेदार है यह इस खबर से अंदाजा लगाया जा सकता है। इतने साल में किसानों की क्या स्थिति है ये किसानों से बेहतर कौन समझ पायेगा? क्या इन दस सालों में विभाग के पास बजट नहीं आया? और आया तो इतनी लापरवाही क्यों? एक तरफ सरकार कहती है की किसान अन्नदाता हैं तो उन किसानों से निवाला क्यों छीना जा रहा?