हर साल 14 और 15 जनवरी को मकर सक्रांति का ये त्योहर देश के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाने वाला पर्व है| जिसे लोग बडे धूम-धाम से मनाते है| इस त्योहार की स्थानीय, समाजिक और आर्थिक स्थितियां भले ही अलग-अलग हों परंतु इस उत्सव का मूल-भाव एक ही है| खेतों में लहराती सरसों की फसलेंअन्नदाता को सुख देती हैं| सूर्य की उत्तरायणी किरण लोगों कि आत्मा तृप्त करती है| लेकिन स्थानीय रिती-रिवाजों के साथ इस त्योहार को मनाने के अपने तरीके हैं और इस दिन बनने वाले पकवान अलग हो सकते हैं| लेकिन भारत देश को ये त्योहार एक सूत्र में बांधकर रखता है|
इस त्योहार का आनंद सभी राज्यों, जिलों और गांव के लोग अपनी-अपनी परंपराओं के साथ मनाते है| जैसे कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ सहित हर जिलों में पतंगबाजी में ये मारा, वो काटा चिल्लाते हैं और खिचडी के रुप में मनाया जाता है| उस दिन बहुत जगहों पर मेले भी लगते हैं| इसकी एक खास परंपरा ये भी है कि उस दिन लोग नदियों-तालाबों में नहाते है और तील, गुड और घी खाते हैं और अपने घरों में खिचडी़ और पकवान बना कर खाते है और मेला घुमने जाते हैं, तो वहीं पर हरियाणा और पंजाब में इस त्योहार को मनाने का ढंग कुछ और है| वहाँ पर पुरुष अपनी हवेलियों में बैठकर महिलाओं से उपहार लेते हैं और उनको घी-चूरमा,खीर, हलवा आदि खिलाते है और लोकगीत का आनंद उठाते हैं| कहा जाता है कि 1705 ईसवी में गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ पंजाब के मुक्तसर में आखिरी लडाई लडी थी और उस लडाई में उनके चालिस शिष्य वीरगति को प्राप्त हुए थे और उस दिन मकर सक्रांति का दिन था| इस लिए वहाँ इस त्योहार को माघी और लोहडी़ के नाम से मनाते है और मुक्तसर का भारी मेला लगता है और मेले में घुमने वाले लोग उस एतिहासिक दिन को याद कर शहीदों को श्रद्धांजलि देते है और धूम-धाम से ये त्योहार मनाते है|