वेबकूफ टीम ने वायरॉलजिस्ट और एपिडेमियॉलजिस्ट से बातचीत में पाया कि ये दावे गलत हैं.
सोशल मीडिया पर एक स्वघोषित ‘इंडिपेंडेंट वायरोलॉजिस्ट और वैक्सीन एक्सपर्ट’ जी वी बॉश्चे का वीडियो इंटरव्यू वायरल हो रहा है. इस वीडियो में ये शख्स कोविड वैक्सीन से जुड़े कई भ्रामक और गलत दावे करता नजर आ रहा है. इस शख्स ने ट्विटर और अपनी वेबसाइट पर लिखे ओपन लेटरर्स (पत्र) की सीरीज में भी ऐसे ही दावे किए हैं.
हमने वायरॉलजिस्ट और एपिडिमियॉलजिस्ट से इस बारे में बात की और पाया कि बॉश्चे के दावे गलत हैं. हमें इन दावों का कोई प्रमाण भी नहीं मिला.
कौन होते हैं वायरोलॉजिस्ट और एपिडिमियॉलजिस्ट?
वायरोलॉजिस्ट- वायरस विज्ञानी को वायरोलॉजिस्ट कहा जाता है। यह एक चिकित्सा शोधकर्ता या वैज्ञानिक होते हैं जो वायरस और उनके कारण होने वाली बीमारियों का अध्ययन करते हैं।
एपिडिमियॉलजिस्ट – महामारी विज्ञानी को एपिडिमियॉलजिस्ट कहा जाता है। महामारी विज्ञानी बीमारी के कारण की खोज करते हैं। यह उन लोगों की पहचान करते हैं जिन्हें खतरा होता है। वह यह भी निर्धारित करते हैं कि वायरस के प्रसार को कैसे नियंत्रित करना है या रोकना है या फिर इसे दोबारा होने से कैसे रोका जा सकता है।
दावा
6 मार्च 2021 को पब्लिश अपने ओपन लेटर में उन्होंने दावा किया कि “महामारी के दौरान बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन करने से वायरस का खतरनाक वैरिएंट पैदा होगा.”
इन लेटर्स में और जाने-माने एंटी वैक्सीनेशन पर्सनैलिटीज को दिए इंटरव्यू में बॉश्चे ने इस तरह के दावे किए. वायरल हो रहा इंटरव्यू HighWire नाम के एक प्लैटफॉर्म में दिया गया था. इस शो को वैक्सीनेशन का विरोध करने वाले डेल बिगट्री होस्ट करते हैं.
इंटरव्यू में बॉश्चे ने कहा कि युवाओं में “कोरोना वायरस के प्रति इनमेट इम्यूनिटी(जन्मजात इम्यूनिटी)’’, इनफेक्शन की रोकथाम करने वाले उपायों, जैसे कि लॉकडाउन से कमजोर होगी.
बॉश्चे ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि महामारी की शुरुआत में लागू कड़े रोकथाम के उपायों को लागू करने की वजह से एक्सपोजर में कमी आई है, यानी लोगों का बाहर निकलना बंद हो गया है. इस वजह से लोगों की इनमेट इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) पर बुरा प्रभाव पड़ा है.
बॉश्चे ने कहा कि विशेष एंटीबॉडी (रक्त में उत्पन्न होने वाला रोगनिरोधी पदार्थ) कम समय के लिए होती हैं और उस तरह से काम नहीं करती हैं जैसे कि इनमेट इम्यूनिटी ( यह जन्म से ही हमारे शरीर में मौजूद होती है जो अन्य बीमारियों से लड़ने का काम करती हैं।) करती है.
ये वीडियो क्लिप कई यूजर्स ने फेसबुक पर शेयर की है. इनके आर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं. ये क्लिप हमारी WhatsApp टिपलाइन पर भी आई है.
बॉश्चे के दावों का सच जानने के लिए हमने डॉ. सत्यजीत रथ से बात की. डॉ. सत्यजीत IISER के सहायक फैकल्टी और इम्यूनोलॉजिस्ट (यह प्रतिरक्षाविज्ञानी वैज्ञानिक या चिकित्सक होते हैं) हैं.
इसके अलावा, हमने वायरोलॉजिस्ट और वेल्लूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर डॉ. जैकब टी जॉन से और Health Desk से भी संपर्क किया. Health Desk पत्रकारों के लिए कोविड-19 से जुड़ी जानकारी पाने का एक रिसोर्स है. इसका संचालन पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट करते हैं.
चलिए इनमें से कुछ दावों से जुड़े सच के बारे में जानने के लिए विस्तार में देखते हैं.
दावा 1: वैक्सीनेशन से पैदा होगा वायरस का मॉन्स्टर वैरिएंट
Health Desk ने इस दावे का दो टूक जवाब नहीं में दिया है. Health Desk ने कहा, “ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है कि किसी ज्ञात कोविड वैक्सीन से नए तरह का या कोविड 19 का खतरनाक वैरिएंट आ जाएगा.”
इसमें कोई संदेह नहीं है कि वायरस ‘म्यूटेट’ (रूप बदलना) होते हैं. इसके लिए वायरस रिप्रोड्यूस करते हैं, ताकि और सेल्स बना सकें. इस तरह का म्यूटेशन वायरस का अपडेटेट रूप बनाता है जिसे वेरिएंट कहते हैं. और वैक्सीनेशन शुरू होने से पहले भी SARS-CoV-2 के नए वेरिएंट पाए गए थे.
डॉ. रथ बताते हैं, “अगर ज्यादातर लोग ओरिजिनल वायरस स्ट्रेन के लिए ‘इम्यून’ हो जाएंगे, तो ओरिजिनल वायरस स्ट्रेन इन्फेक्शन को आसानी से इस्टैब्लिश नहीं कर पाएगा, यानी इससे इनफेक्शन फैलना कम हो जाएगा. लेकिन ऐसे वेरिएंट, जो इस इम्यूनिटी के प्रति उतने संवेदनशील नहीं हैं. वो फिर से फैलने लग जाएंगे.”
‘’हमें ये ध्यान में रखना चाहिए कि जरूरी नहीं है कि ये वेरिएंट ‘घातक’ हों. हालांकि, वैक्सीनेशन के बाद नया वेरिएंट आ सकता है. आने वाले जो वेरिएंट फॉर्म होंगे, उनके फैलने का और इन्फेक्शन का खतरा तो हो सकता है, लेकिन वो हमारे लिए घातक नहीं होंगे.’’
-डॉ. सत्यजीत रथ, इम्यूनोलॉजिस्ट
डॉ. रथ ने ये भी कहा कि ये ध्यान देना जरूरी है कि हम नैचुरल इन्फेक्शन और वैक्सीनेशन दोनों से ‘इम्यून’ होते हैं. इसलिए, अगर हम वैक्सीनेशन नहीं करते हैं और वायरस फैलता रहता है, तो लोग बहुत जल्द ही वास्तविक नैचुरल इन्फेक्शन के जरिए ओरिजिनल स्ट्रेन के लिए इम्यून हो जाएंगे और समान चयन दबाव बन जाएगा.
दावा 2: लॉकडाउन से युवाओं की ‘इनमेट इम्यूनिटी’ पर असर पड़ता है
डॉ. रथ ने इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि ‘इनमेट इम्यूनिटी’, लॉकडाउन या वैक्सीनेशन से प्रभावित होती है.
Health Desk ने बताया कि “कई स्टडी से पता चला है कि जब नवजात और बच्चों का पालन अच्छे साफ-सफाई वाले माहौल में किया जाता है, तो उन्हें बाद में इम्यूनिटी से जुड़ी और एलर्जी से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं. हाइजीन यानी साफ-सफाई से जुड़ी इस हाइपोथीसिस से कई बार भ्रम की स्थिति पैदा होती है. लेकिन इस हाइपोथीसिस का मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए हर समय जर्म्स के संपर्क में रहा जाए.”
डॉ. जॉन इन दोनों बातों से सहमति जताते हुए कहते हैं, “इनमेट इम्यूनिटी स्वाभाविक होती है और ये लॉकडाउन या मास्क पहनने या भीड़ से दूर रहने जैसी चीजों से प्रभावित नहीं होती.”
दावा 3: कोविड वैक्सीन या कोविड संक्रमण से बनी एंटीबॉडी कम समय के लिए रहती है
अभी तक ऐसा कोई डेटा नहीं आया है जिससे ये साबित होता हो. शुरुआती रिपोर्ट्स के आधार पर, AIIMS के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि वैक्सीनेशन के बाद बनी एंटीबॉडी 8 महीने तक या इससे ज्यादा समय तक बनी रहेगी.
उन्होंने The Economic Times को बताया, “फिलहाल, वैज्ञानिक वैक्सीन से मिली लंबे समय की सुरक्षा पर युद्धस्तर पर स्टडी कर रहे हैं.”
यूके में नैचुरल इन्फेक्शन पर एक स्टडी की गई है, जो British Medical नाम के जर्नल में प्रकाशित भी हुई है. इसमें कहा गया है कि एंटीबॉडी कम से कम 6 महीनों तक दोबारा संक्रमण होने से बचाती है.
Health Desk ने डॉ. गुलेरिया से सहमति जताते हुए कहा, “कोविड 19 वैक्सीनेशन से कितने समय तक इम्यूनिटी बनी रहेगी, ये जानने के लिए हमें अभी और समय और प्रमाण चाहिए. अभी मौजूद प्रमाण के मुताबिक कोविड वैक्सीन से मिली इम्यूनिटी करीब 6 महीनों तक बनी रहती है और ऐसा अनुमान है कि ये उससे भी लंबे समय तक बनी रहेगी.”
बॉश्चे ने ये भी कहा कि वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी फिलहाल जो वैरिएंट है उसके लिए हैं. और इससे पूरी सुरक्षा नहीं मिलेगी.
डॉ. जॉन ने इसे नकारते हुए कहा, “एंटीबॉडी सभी एंटीजन के खिलाफ काम करती हैं – सभी एंटीबॉडी हर वेरिएंट पर काम करती हैं. चाहे वो इन्फेक्शन से मिली एंटीबॉडी हो या वैक्सीन से.’’
कौन हैं डॉ. गीर्ट वैन्डेन बॉश्चे (Geert Vanden Bossche)?
बिगट्री ने वायरल वीडियो के शुरुआती कुछ सेकंड में बॉश्चे को “दुनिया भर में जाने-माने वैक्सीन स्पेशलिस्ट” के तौर पर इंट्रोड्यूस किया गया और उनसे जुड़ी जरूरी जानकारी बताई गई.
बॉश्चे की LinkedIn प्रोफाइल में कई मान्यता प्राप्त हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में उनकी पिछली भूमिकाओं के बारे में बताया गया है. इनमें Gates Foundation, Global Alliance for Vaccines Immunization (GAVI) और The German Centre for Infection Research (DZIF) जैसे ऑर्गनाइजेशन शामिल हैं.
DZIF, GAVI और Solvay ने AFP से पुष्टि की थी कि बॉश्चे उनके यहां कार्यरत थे. बॉश्चे के जिस काम का बिगट्री, वेकफील्ड और रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर जैसे एंटी वैक्सर्स अक्सर हवाला देते रहते हैं, वो काम किसी भी रिप्यूटेड पीयर-रिव्यूव्ड जर्नल में नहीं छपा.
यहां एक आर्टिकल में ये बताया गया है कि कैसे बॉश्चे ने कई एंटी वैक्सीनेशन ऐक्टिविस्ट की बातों को दोहराया है.
यह श्रृंखला क्विंट हिंदी और ख़बर लहरिया पार्टनरशिप का अंश है। लेख क्विंट द्वारा लिखा और रिसर्च किया गया है।
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