देश में 3 महीने लॉकडाउन होने के बाद भी कोरोना वायरस की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है और दिन पे दिन पैर पसारती जा रही है| जब से लॉकडाउन खुला,साधनों और बाजारों में भीड़ शुरू हुई और लोगों का आवा-गमन हो गया तब से दिन पर दिन यह वायरस अपना पैर पसारता जा रहा है| अब स्थिति यह है कि ग्रामीण स्तर पर भी इसका भारी प्रकोप है| जिसका समना करना हम पत्रकारों के लिए भी एक चुनौती है| क्योंकि अब साधन चलने लगे हैं, तो खबरों के कबरेज के लिए सफर तो करना ही पड़ता है, ऐसा ही एक अनुभव मैं अपना भी शेयर कर रही हूं|
1 जून से साधन चलने की शुरुआत हो गई थी लेकिन काम के साथ-साथ मेरे अंदर थोड़ा डर भी था कि साधनों में भीड़ के साथ कैसे बैठूंगी और क्या करुगीं| इस बात को मैं कई दिनों तक सोचती रही और साधन चलने के बावजूद भी मैं पैदल चल कर ही आस-पास के गांव और कस्बे का कबरेज करती रही, लेकिन एक दिन अचानक एक ऐसा मामला सामने आया जिसको मैं करना भी चाहती थी मगर मेरे अंदर डर था कि यह दूर का गांव है कैसे जाऊंगी|
इन सभी चीजों को सोचते हुए मैंने उस मामले तक पहुंचने की कोशिश पर जब मैं उस गांव जाने के लिए करतल रोड बस स्टैंड तक पहुंची तो देखा कि एक बस खडी है पर उसमें बहुत भीड़ है और कोई साधन नहीं दिख रहा यह देखकर मैं वापस दूसरी कबरेज के लिए चली गई, क्योंकि काम के साथ-साथ अपने आपको भी सुरक्षित रखने की चिन्ता सता रही थी|
लेकिन उस केश तक ना पहुंचने की भी मुझे बहुत निराशा हुई और सोचती रही की हम पत्रकारों का काम है कि किसी भी मामले को अपने अखबार के लिए सबसे पहले कबरेज करने की होड़ होती है, लेकिन मेरा यह केश आज छूट रहा है जबकि मुझे इसकी सूचना भी मिल चुकी है और मैंने यह भी सोचा कि कल फिर कोशिश करूंगी और डर हटाते हुए गांव जाऊंगी|
यह मेरे मन में विचार ही चल रहा था लेकिन इस बीमारी के चलते भीड़ को देखते हुए मेरे पैर आगे नहीं बढ़ रहे थे साधन में जाने के लिए ऐसा सोचते ही मेरे ऑफिस से उस केश को पता करने के लिए मुझे एक मैसेज आया मैंने वह मैसेज देखा और पूरी बात बताई कि मुझे यह मामला पता तो है, लेकिन मैं साधनों की भीड़ के कारण जाने से डर रही हूं क्योंकि कोरोना वायरस का इतना प्रकोप है और वह दूर के गांव का मामला है साधन नहीं चलते हैं एक दो बसें जाती हैं, तो वह बहुत ही भरी होती हैं खैर उन्होंने मेरा पूरा सपोर्ट किया और कहा कि कोई बात नहीं है
अगर तुम्हें मामला पता है, तो तुम लिखकर थोड़ा मुझे भेज दो और मैं उसको फेसबुक में डाल दूंगी लेकिन फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा था मैं सोच रही थी कि मामला तो मुझे पता है लेकिन मैंने उस परिवार से और लड़की से बात नहीं की है, तो मैं कैसे लिख कर दूं क्योंकि जो हमारी सोच है और हम कबरेज करते हैं उसमें और अन्य मीडिया में काफी फर्क होता है|
यह सोचते हुए मैंने आगे कदम बढ़ाए और उस गांव के टेंपो स्टैंड गांव जाने के लिए पहुंची और एक खाली आटो खड़ी थी जिसमें मैं बैठ गई| मेरे बैठने के बाद वहां पर कई लोग आए और बहुत सारा अपना सामान रख कर ऑटो में मेरी ही सीट में मेरे बगल से बैठ गये| इसके बाद वह आटो चलने लगा| मुझे उनको देखकर थोड़ा अजीब लगा कि इतना सारा सामान लेकर यह लोग आए हैं,तो कहीं प्रवासी मजदूर तो नहीं और पता नहीं कहां से आए होंगे|
लेकिन फिर भी मैंने अपने आप में हिम्मत रखी और बैठी रही कुछ देर बाद वह चारों लोग आपस में बताने लगे| उनमें से एक व्यक्ति बोला अरे भाई मैं तो 4 दिन का चला हूं और बहुत थक गया हूं बंगलुरु से आया हूं लेकिन सीधी ट्रेन ना आने के कारण मुझे बिहार घूम के आना पड़ा है यह कोरोना वायरस तो हम लोगों के लिए मुसीबत बन गया है
काम भी जब से लॉकडाउन हुआ तो बंद चल रहा था और घर भी आने को नहीं मिल रहा था बड़ी मुश्किल से किसी तरह आए हैं तभी दूसरे ने कहा अरे भाई मैं तो दिल्ली में था वहां की तो बहुत ही बुरी स्थिति है मैं भी बहुत बुरी तरह फंसा था और काम भी बंद चल रहा था 6 महीने का गया हूं मात्र ₹2000 घर भेजे हैं जो कमाया था वह लॉकडाउन में बैठे-बैठे खा लिया|
जब नहीं बचा और थोडा साधन चलने लगा तो किसी तरह घर आ गया नहीं तो भूखों मर जाता| अब देखो अगर वहां से किसी तरह मुसीबत झेल कर आ गए हैं और सोचा की जांच करा ले अस्पताल गये,तो डॉक्टरों ने भगा दिया बिना जांच किये कहते हैं की अपने घर जाओ कल आना जांच के लिए इस तरह की धंधागर्दी चल रही है,तो चलते हैं सब लोग गांव के स्कूल में रुकेंगे 14 दिन तक इसके बाद ही घर चलेंगे और कल फिर वापस आ के जांच करा लेगें, तो दूसरे ने कहा कि हां भाई सामान रख देंगे और फिर स्कूल में ही रहेंगे हम मजदूरों को कहीं सकून नहीं है,
पर क्या करें मजबूरी में हम लोगों को बाहर मजदूरी के लिए जाना पड़ता है क्योंकि हमारे यहां बांदा जिले में कोई ऐसा काम ही नहीं है, जिसे हम कर सकें| तभी बैंगलोर से आए लड़के ने कहा अरे भाई मैं तो अब कहीं नहीं जाने वाला बहुत ही मुसीबत झेली है| इस लॉकडाउन में एक-एक रुपए के लिए तरसा हूं पर यह था कि कंपनी मालिक थोड़ा अच्छा था तो उसने थोड़ी मदद कर दी थी नहीं भूखों मर जाता| इसलिए अब गांव में ही जो मिलेगा वह काम करूंगा भले ही नमक रोटी मिले तो खा लूंगा|
उनकी यह सब बातें सुन मैं बहुत ही डर गई और उनसे बोली कि भैया आप स्कूल में रहने की बात कर रहे हो और जांच भी नहीं हुई लेकिन गाड़ी में ऐसे चिपक के बैठ गए हो कम से कम अपने सुरक्षा के साथ दूसरों का भी तो ध्यान रखना चाहिए ना तुम्हें और दूर बैठो तो उन्होंने कहा कि इसमें हमारी क्या गलती है हम तो गये थे अस्पताल जांच करवाने के लिए पर डॉक्टरों ने किया ही नहीं हर जगह भरव चल रहा है,तो क्या करें|
फिर मैं जब तक उन लोगों का गांव नहीं आ गया और वह उतर नहीं गये तब तक बिल्कुल दुबकी बैठी रही और मेरे मन में बार-बार वही ख्याल आ रहा था कि कहीं इनको कोरोना वायरस के लक्षण ना हो क्योंकि इनकी तो अभी जांच भी नहीं हुई|वहां से कबरेज करके आने के बाद मेरा सिर बूरी तरह दर्द करने लगा और मैने घर आ कर नहाया कपड़े धुले और चुपचाप लेट गई|
पर जब मेरा सिर दर्द हो रहा था तो मुझे बार-बार वही ख्याल आ रहे थे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि कोरोना वायरस के लक्षण सच में उन लोगों के रहे हों और इसी कारण मेरा सिर दर्द कर रहा हो और रात में काफी देर तक मुझे नींद भी नहीं आई फिर मैंने सिर दर्द की दवा ली और सो गई| तब से मेरा डर काफी खत्म हुआ है| पर अभी भी साधनों में ज्यादा भीड़ के बीच बैठने से बचती हूँ और पूरी कोशिश करती हूँ कि पूरा शरीर घर से बाहर निकलते समय कपडो़ और माक्स से ढ़का रहे और ये सवाधानी हम सब को रखनी चाहिए|