हेलो दोस्तों, मैं हूं मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ़, मेरे शो राजनीति रस राय में आपका फिर स्वागत करती हूं। मैं इस शो में बात करने वाली हूँ लड़कियों के फ्रीडम मतलब आज़ादी को लेकर। हां आपने सही सुना लड़कियों की आज़ादी को लेकर। क्योंकि जब भी लड़कियों की आज़ादी की बात की जाय तो स्वतः अनेकों सवाल उठने लगते हैं, मानो तूफान आ जाएगा, धरती हिल जाएगी।
सामाजिक ताने बाने में ये सवाल आज भी बहुत गंभीर रूप लिए हमेशा बहस के लिए तैयार रहते हैं। यह बहुत बड़ी राजनीति भी है कि कुछ भी हो जाए लड़कियों को आज़ादी नहीं मिलना चाहिए। सरकार सरकारी या गैर सरकारी रूप से ये दावे पेश करती है कि वह लड़कियों के प्रति सम्बेदनशील है। उनको खुल कर आज़ादी से जीने का अधिकार है।
वह अपनी मनमुताबिक पढ़ाई कर सकती हैं, जॉब कर सकती हैं, पहनने खाने पीने की आज़ादी देती है लेकिन वहां पर इन दावों की पोल खुल जाती है जहां पर मन मुताबिक शादी को लेकर, जॉब, पढ़ाई, खाने और पहनने को लेकर नियम थोप दिए जाते हैं। अगर इनमे लड़कियां आवाज उठाएं तो मुंह बंद कराने की पूरी कोशिश होती है या फिर सामाजिक तौर पर टार्चर किया जाता है कि वह खुद चुप हो जाए।
या ये भी की उसका समाज से तिरस्कार कर दिया जाता है। बहुत मुश्किल से लड़कियों को जॉब या पढ़ाई को लेकर गांव से शहर में रहने की आज़ादी मिली थी लेकिन कोरोना ने वह भी छीन लिया। कोरोना के चलते चाहे जॉब हों या पढ़ाई सब छोड़कर अपने घर वापस आना पड़ा और आगे का अभी पता भी नहीं है कि क्या ये लड़कियां उसी तरह से जॉब या पढ़ाई कर पाएंगी।
अपने कैरियर और भविष्य को लेकर अंधेरे में हैं। फिर से गांव में आकर उन्हीं सामाजिक ढांचे के अंदर फंस गई हैं। इस मुद्दे को लेकर हमने रिपोर्टिंग की। लगभग दस ऐसी लड़कियों से इंटररव्यू किया जो गांव से निकलकर शहरों में पढ़ाई और जॉब करने कर रही थीं लेकिन उनको घर आना पड़ा है।
रिपोर्टिंग से हमें पता चला कि लड़कियां घुट घुट कर अपना समय गुजार रही हैं, वह घर आकर दोबारा से आज़ादी छिन जाना महसूस कर रहीं हैं। उनको यह भी चिंता खाये जा रही थी कि अगर जॉब और पढ़ाई नहीं है तो उनकी शादी कर दी जाएगी क्योकि उनकी सहेलियों की शादी कर दी गई थी जिनकी अभी उम्र भी शादी की नहीं हुई थी।
बाल विवाह के चंगुल में फंसने का डर भी बढ़ रहा था। आप ये कह सकते हैं कि कोरोना ने लड़की लड़का नहीं देखा सबको प्रभावित किया है। सोचिये जरा क्या लड़को की आज़ादी में फर्क पडा है। हां पड़ा भी होगा तो उसकी संख्या बहुत कम है। पर लड़कियों की आज़ादी आप सोच भी नहीं सकते, यह समाज से सवाल है कि लड़कियों की आज़ादी बर्दाश्त क्यों नहीं? क्यों हजम नहीं होती? क्यों और किस तरह का डर सताता है आपको।
क्यों नहीं उड़ने देते उनको, क्यों नहीं पंख लगाते उनको। उनको भी आज़ाद रहना है। दोस्तों इन्हीं सवालों और वविचारों के साथ मैं लेती हूं विदा। अगर यह चर्चा आपको पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर करें साथ ही लाइक और कमेंट करना न भूलें। अगर आप हमारे चैनल में नए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब करें और बेल आइकॉन जरूर दबाएं, ताकि हर शो आपको मिलता रहे। अभी के लिए बस इतना ही, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ, तब तक के लिए नमस्कार।