नमस्कार दोस्तों, कैसे हैं आप सब? मैं मीरा देवी खबर लहरिया की प्रबन्ध संपादक अपने शो ‘राजनीति रस राय’ में आपका बहुत बहुत स्वागत करती हूं। गजब की राजनीति चल रही है। बधाई आपको कि देश भर के टॉप -10 सरकारी अस्पताल के लिस्ट में से यूपी के नौ अस्पताल शामिल हुए हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर शहर का एक अस्पताल शामिल हुआ।
देश के टॉप-10 सरकारी अस्पताल
– यूएचएम हॉस्पीटल, कानपुर नगर
– कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय, कानपुर
– एलबीआरएन हॉस्पीटल, लखनऊ
– तेज बहादुर सप्रू हॉस्पीटल, प्रयागराज
– बाबू ईश्वर शरण जिला अस्पताल, गोंडा
– जिला पुरुष चिकित्सालय, आजमगढ़
– जिला पुरुष चिकित्सालय, गोरखपुर
– मोती लाल नेहरू डिवीजनल अस्पताल, प्रयागराज
– बलरामपुर हॉस्पीटल, लखनऊ
इसके बाद उत्तर प्रदेश के राज्य स्वाथ्य मंत्री और मुख्यमंत्री फूले नहीं समा रहे होंगे। होना भी चाहिए भयी, क्योंकि गुजरात सिटी का सपना संजोए बैठा गुजरात मॉडल भी पीछे रह गया। जो काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं कर पाए वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कर दिखाया। यह रिपोर्ट मीडिया चैनलों में छाई हुई है। यह रिपोर्ट देखकर कोरोना कॉल में गंगा किनारे लाशों को जलाने के लिए जगह कम पड़ने का मंजर आखों के सामने घूमने लगा। वह दिन आज भी याद है जिनकी टीस जिंदगी भर चुभेगी।
राज्य स्वाथ्य मंत्री ब्रजेश पाठक कभी बुंदेलखंड के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा भी देखने आइए। आपकी ही रिपोर्ट बताती है कि बुंदेलखंड के सांसद और विधायक ऐसा काम क्यों नहीं कर पाते कि कभी यहां के सरकारी अस्पतालों को यह उपाधि मिल सके। वैसे यहां के अस्पतालों के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। अस्पतालों में अव्यवस्था, डॉक्टरों की कमी, सही इलाज न मिलना, समय से अस्पताल न खुलना।
बांदा जिला सरकारी अस्पताल और रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज का तो हाल हाल बेहाल है। मरीजों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव, डिलीवरी को गई महिलाओं के परिवारों से सुविधा शुल्क के नाम पर पैसा ऐंठना, बाहर से दवाई लिखना। आपको क्या-क्या गिनाऊँ। कानपुर के इन अस्पतालों की स्थिति कुछ अलग नहीं है फिर भी वह टॉप निकले। यह लिस्ट निकालने वालों से लोग पूछ रहे हैं कि रिपोर्ट निकालने का आधार क्या था?
बता दें, इस लिस्ट में गोरखपुर जिला भी शामिल है। गोरखपुर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ है। गोरखपुर अस्पताल त्रासदी तो सबको याद है न। 10 अगस्त 2017 की शाम को गोरखपुर में सरकारी बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के नेहरू अस्पताल में लिक्विड ऑक्सीजन खत्म हो गई। कथित तौर पर अगले दो दिनों में 80 से अधिक रोगियों ( 63 बच्चों और 18 वयस्कों) ने अपनी जान गंवा दी थी। अपनी अव्यवस्था की पोल छुपाने के लिए कुछ इस तरह से लोगों का ध्यान भटकाया जाता है ताकि आम जनता सरकार से सवाल न कर सके।
कोरोना कॉल में जब लगातार मौते हो रही थीं और गंगा किनारे लाश जलाने के लिए जगह कम पड़ गई थी तब यह अस्पताल कहां मर गए थे? पिछले महीने कानपुर से हार्ट अटैक के 90 मामले सामने आए थे तब इन अस्पतालों में इलाज क्यों नहीं मिला? सारी सुविधाएं यूपी में हैं ही तो मरीज दिल्ली या बाहर अस्पतालों में धक्के क्यों खा रहे हैं? क्या यह सच नहीं है योगी जी? शहर के अस्पतालों की लिस्ट न बनाइये साहब! अगर दम है तो ग्रामीण भारत के सरकारी असपालों की देश में टॉप-10 की लिस्ट बनाकर दिखाइए। जनता को मरने दीजिए क्या फर्क पड़ता है लेकिन दोस्तों क्या आपको फर्क पड़ता है? अगर जवाब हां या न भी है तो लिख भेजिए अपने कमेंट। बस एक निवेदन है कि अपने दोस्तों के साथ शेयर कर दीजिए, धन्यवाद!
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