मामले में केरल राज्य विद्युत बोर्ड में सीनियर असिस्टेंट के रूप में काम करने वाली महिला ने उप-इंजीनियर र. रामचंद्रन नायर (आरोपी) के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। आरोपी पर महिला ने आरोप लगाया था कि उसने उसके शरीर को लेकर अनुचित टिप्पणियां की व कई मौकों पर उसे यौन सुझाव हेतु कई मेसज भी भेजे हैं।
“एक महिला के ‘शारीरिक संरचना’ पर टिप्पणी करना, यौन उत्पीड़न माना जाएगा” – केरल उच्च न्यायालय ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया। यह फैसला आर. रामचंद्रन नायर बनाम केरल राज्य सरकार, केरल (R Ramachandran Nair v. State of Kerala) मामले में दिया गया।
न्यायमूर्ति ए बदरुद्दीन ने यह फैसला केरल राज्य विद्युत बोर्ड (KSEB) के एक पूर्व कर्मचारी की याचिका खारिज करते हुए सुनाया। याचिका में कर्मचारी ने उस पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप को खारिज़ करने की मांग की थी।
मामले में आरोपी का पक्ष वकील पी. मोहम्मद सबाह पेश कर रहे थे। वहीं शिकायतकर्ता का पक्ष वकील विनय विजय शंकर ने पेश किया।
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कोर्ट का फैसला व मामला
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में केरल राज्य विद्युत बोर्ड में सीनियर असिस्टेंट के रूप में काम करने वाली महिला ने उप-इंजीनियर आर. रामचंद्रन नायर (आरोपी) के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। आरोपी पर महिला ने आरोप लगाया था कि उसने उसके शरीर को लेकर अनुचित टिप्पणियां की व कई मौकों पर उसे यौन सुझाव हेतु कई मेसज भी भेजे हैं।
विशेष रूप से आरोप इसे लेकर था कि आरोपी ने महिला के ‘शरीर को ठीक (fine)’ कहा।
कोर्ट ने कहा, “इस मामले में अभियोजन का आरोप है कि आरोपी ने महिला की शालीनता को आहत करने के उद्देश्य से यौन प्रकृति की टिप्पणी की और फिर उसने महिला को अश्लील संदेश भेजे। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह साफ़ दिखाई देता है कि अभियोजन का मामला इस प्रकार की धाराओं (354 ए और 509 आईपीसी) के तहत बनता है।” यह आदेश 6 जनवरी को पारित किया गया था।
इसके अलावा आरोपी पर, केरल पुलिस अधिनियम, 2011 केरल पुलिस एक्ट) की धारा 120 (सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन और अव्यवस्था फैलाने के लिए दंड) भी लगाई गई है।
मामला रद्द कराने की हुई थी मांग
मामले को रद्द करवाने की अर्ज़ी डालते हुए आरोपी ने तर्क दिया कि किसी के शरीर की संरचना को अच्छा कहना यौन प्रकृति की टिप्पणी नहीं हो सकती, इसलिए जो आरोप उस पर लगाए गए हैं, वह नहीं बनते।
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क से सहमति नहीं जताई।
आरोपी पर पहले भी उत्पीड़न करने का है रिकॉर्ड
कोर्ट ने यह सूचीबद्ध किया कि आरोपी का महिला के साथ उत्पीड़न करने का इतिहास रहा है। उसने महिला को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया है। उसे निजी तौर पर मेसज और कॉल किये हैं, जबकि उसने इसकी शिकायत अपने उच्च अधिकारियों से भी की थी।
कोर्ट ने कहा कि यह भी यौन उत्पीड़न का संकेत है। इस तरह का व्यवहार केरल पुलिस अधिनियम के तहत भी अपराध के रूप में आता है। यह देखते हुए कोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज़ की और कार्यवाही को रद्द करने से मना कर दिया।
केरल उच्च न्यायालय का यह फैसला महवत्पूर्ण है जो महिलाओं को क़ानूनी अधिकार देता है, उन भाषाओं व व्यवहारों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए जो लोग उनके शरीर से जोड़कर बोलते हैं व उन्हें मानसिक चोट पहुंचाते हैं।
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