बांदा: मेला दिलों का आता है, एक बार आ के चला जाता है। यह गाना बिल्कुल फिट बैठता है इस प्रेम के मेले के ऊपर। बांदा शहर से गुजरने वाली सुंदर केन नदी और उसके बगल में स्थित भूरागढ़ किला आज फिर से सज–धज गया। मानों बुला रहा हो कि आओ प्रेमियों अपना प्रेम अमर करो मेरी दीवाल में अपना नाम लिखकर। हालांकि इस प्रेम के मेले को लेकर अलग–अलग राय है। बहुत लोग यह कहते हैं कि प्रेम का नहीं यह शहीदों की याद में मेला लगता है जो हर साल 14 जनवरी मकर सक्रांति के दिन लगता है। चाहे जितनी बातें हों लेकिन हम बात करेंगे आज प्रेम कहानी की।
नट से राजकुमारी को हुआ था प्रेम
कई सालों से मैं भूरागढ़ किले की रिपोर्टिंग करती आई हूं उसी तरह इस साल भी की हूं। हर बार मुझे कुछ नया सुनने को मिलता है परन्तु मैं बात करूंगी नट और राजकुमारी के बीच हुए प्रेम के बारे में। लोगों ने बताया कि भूरागढ़ किले के राजा की बेटी (राजकुमारी) को एक नट से प्रेम हो गया था।
राजा ने रखी शर्त लेकिन गद्दारी भी की
जब बात शादी तक पहुंची तो यह बात राजा को नागवार गुजरी। उसने कूटनीति के चलते नट से एक शर्त रखी। बोला कि अगर नट रस्सी के ऊपर चलकर केन नदी पार कर ले तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी। नट ने शर्त मान ली और नदी के एक तरफ बाम्बेश्वर पहाड़ और दूसरी तरफ भूरागढ़ किले में रस्सी बांध दी और उसी में चलकर नदी पार करने लगा। वह रस्सी से चलते हुए लगभग नदी पार करने ही वाला था कि राजा ने गद्दारी करते हुए रस्सी को कटवा दिया।
दोनों एक दूसरे के लिए मरकर अमर हो गए
रस्सी कटने से नट सीधे नदी में गिरा और मर गया। यह देख राजकुमारी भी कूद गई जिससे दोनों की मौत एक जगह हो गई। वह दोनों एक दूसरे के लिए मरकर अमर हो गए। उन दोनों की याद में अगल–बगल दो मंदिर बनाए गए जो नटबलि नाम से जाने जाते हैं। हर साल मकर संक्रांति के दिन मेला लगता है।
दीवाल में नाम लिखने से प्रेम हो जाता है अमर
ऐसा माना जाता कि इस मेले को घूमने आए प्रेमी जोड़े अपना नाम दीवाल में जरूर लिखते हैं ताकि उनका प्रेम अमर हो जाए और प्रेम के बीच आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाएं। यही नहीं शादी के बाद दूल्हा दुल्हन भी यहां अपना नाम लिखने जरूर आते हैं।
आइए आप भी इस मेले में और लीजिए इस मेले और इस प्रेम कहानी का मजा। यह बुंदेलखंड का अकेले एक ऐसा मेला है जो प्रेम के मायने को बखूबी बयां करता है।