खबर लहरिया Blog महोबा : गांवो में नहीं चलते एक-दो रुपये के सिक्के, होता है सौदे से ज़्यादा मोल

महोबा : गांवो में नहीं चलते एक-दो रुपये के सिक्के, होता है सौदे से ज़्यादा मोल

Coins of one rupee or two do not run in villages

महोबा के कुलपहाड़ तहसील गांव के लोग एक और दो रुपये के सिक्कों के ना चलने की वजह से काफी परेशान हैं। उनका कहना है कि एक रुपये की चीज़ के लिए भी उन्हें 5 रुपये का सिक्का लेकर जाना पड़ता है। 

सिक्कों की परेशानी, लोगों की ज़बानी

कमकुआं तहसील गांव के रहने वाले राजेन्द्र बताते हैं कि वह एक किसान हैं। वह रोज़ाना रात को अपने खेत की रखवाली के लिए जाते हैं। एक दिन जब वह इसी तरह अपने खेत की तरफ जा रहे थे तो उन्हें याद आया कि उनके पास माचिस नहीं है। फिर वह माचिस खरीदने दुकान गए। राजेन्द्र ने जब दुकानदार से एक माचिस मांगी तो दुकानदार का कहना था कि उसे पांच रुपये की ही माचिस लेनी होगी। वरना उसे माचिस नहीं मिलेगी। और अगर एक माचिस मिलेगी तो बाकी के पांच रुपयों में से बचे पैसे नहीं मिलेंगे। फिर राजेंद्र 5 रुपए की ही माचिस लेकर, अपने खेत की तरफ चला गया। वह कहता है कि उसे ज़रूरत तो बस एक की ही थी, लेकिन एक और दो रुपयों के सिक्कों के ना चलने की वजह से उसे 5 रुपये का ही सौदा करना पड़ा। 

सिरमौर के रहने वाले गेत्री ने बताया कि जब वह दवाई की दुकान पर जाते हैं और सारे सामान की कीमत अगर 22 रुपये है। तब भी उन्हें 25 रुपये ही देने पड़ते हैं।

गांव की रहने वालीं प्रियंका का कहना है कि जब उनके बच्चे रोते थे तो वह उन्हें चुप कराने के लिए एक या दो रुपये की सिक्के चीज़ खाने के लिए दे देती थी। लेकिन जब से उनके गांव में एकदो रुपये के सिक्कों को लेने से मना कर दिया गया, वह अपने बच्चों को उतने पैसे भी नहीं दे पातीं। वह मज़दूरी करके अपना परिवार चलाती हैं और अपने सभी बच्चों को पांचपांच रुपये देना, उनके लिए काफ़ी ज़्यादा है। 

स्कूल जाने वाली नीलम और गिरजा का कहना है कि आधार कार्ड और मार्कशीट की एक फोटोकॉपी कराने के लिए वैसे तो तीन रुपये लगते हैं। लेकिन दुकानदार द्वारा उनसे पांच रुपये ही लिए जाते हैं। 

बैंक के दिये सिक्के, बैंक ही नहीं लेती

Coins of one rupee or two do not run in villages

गांव के ही विजय और फूलारानी का कहना है कि साल 2016 से जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की। उनके गांव में  काफी हलचल मच गयी थी। जब वह नोटों को बैंक में बदलवाने गए तो बैंक वालों ने उन्हें एक और दो रुपयों से भरे सिक्कों की बोरी पकड़ा दी। उनका कहना है कि अब बैंक द्वारा दिए सिक्के ही दुकानों में नहीं लिए जाते। ना ही बैंक अपने दिए हुए सिक्कें वापस लेती है। 

दुकानदार क्यों नहीं लेते सिक्के?

इस विषय में जब ब्रह्मा फोटो  के दुकानदार से बात की गयी  तो उन्होंने बस यह कह दिया कि उनके गांव में एकदो रुपये के सिक्के नहीं चलते। इसलिए वह भी नहीं लेते। लोगों द्वारा भी इस मामले में पुलिस को नहीं बुलाया जाता। उन्हें इस बात का डर रहता है कि अगर पुलिस को बुलाया गया तो शायद बाद में कोई भी दुकानदार उन्हें सौदा ना दे। 

बैंक असिस्टेंट का यह है कहना

कुलपहाड़ इलाहाबाद बैंक के असिस्टेंट मोहम्मद आज़ाद ने बताया है कि वह छोटेमोटे दुकानदार से थोड़े बहुत चिल्लर ले लेते हैं। लेकिन वह बैंक में सिर्फ चिल्लर ही जमा नहीं कर सकते। जबकि नोटबन्दी के दौरान बैंक द्बारा ही लोगों को वह सिक्के दिए गए थे। The

जब 2016 में प्राधानमंत्री द्वारा नोटबन्दी की घोषणा की गयी, तो उसका सबसे ज़्यादा असर गांवकस्बों में ही देखने को मिला। लेकिन सरकार द्वारा उन गांवों की तरफ देखा ही नहीं गया। धीरेधीरे लोगों में एकदो रुपए के सिक्कों को लेकर यह धारणा बन गयी कि यह सिक्के भी नहीं चलेंगे। जैसा कि हम कुलपहाड़ के गांव में देख रहे हैं। तो सवाल यह उठता है कि आखिर किस वजह से लोगों में एकदो रुपये के सिक्कों के ना चलने की धारणा बनी? जिला अधिकारी या अन्य संबंधित अधिकारियों द्वारा लोगों को सिक्कों को लेकर पुष्टि क्यों नहीं की गयी? अगर मौजूदा अधिकारियों द्वारा लोगों को एकदो रुपए के सिक्कों को लेकर उनके मन की बातें साफ़ कर दी गयी होतीं तो शायद गांव के लोग सौदे और मोल को लेकर इतना परेशान नहीं होतें।