जिला चित्रकूट ब्लॉक मानिकपुर के निही चिरैया गांव में आदिवासी समुदाय कभी जंगल से मिलने वाली जड़ी-बूटियों पर निर्भर था। मुहलेठी, बहेरा, चिरौंजी, अमेठी, फेनी और पेटमुर्री जैसी औषधीय जड़ी-बूटियाँ न केवल उनका रोजगार थीं, बल्कि घर-घर में इलाज का सहारा भी। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। 👉 जंगलों में आग लगने से जड़ी-बूटियाँ राख हो रही हैं। 👉 सरकार की तरफ से नए पौधे नहीं लगाए जा रहे। 👉 आदिवासी समुदाय का रोजगार पूरी तरह ठप हो गया है और लोग मज़दूरी करने को मजबूर हैं। क्या सरकार और प्रशासन इस समस्या का हल निकाल पाएंगे? क्या जंगल फिर से जीवनदायिनी जड़ी-बूटियों से हरे-भरे होंगे?
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