जब 1952 में सबसे पहले आम चुनाव के दौरान मतपेटियां रखी गई हैं तो लोगों ने मतपेटी को तरह-तरह से सज़ा दिया। कुछ मतपेटियां फूलों से सजी हुईं मिलीं तो कुछ सिन्दूर से सनी हुई पाई गईं।
मतपेटी या पवित्र पेटी? यह किस्सा शुरू होता है 1952 से, जब सबसे पहले आम चुनावों में मतपत्र यानी बैलेट बॉक्स रखने की शुरुआत की गई थी। इस चुनावी किस्से के कहानी कर्ता हैं चुनाव आयोग, जिसे अब हम आपको बता रहे हैं।
जब 1952 में सबसे पहले आम चुनाव के दौरान मतपेटियां रखी गई हैं तो लोगों ने मतपेटी को तरह-तरह से सज़ा दिया। कुछ मतपेटियां फूलों से सजी हुईं मिलीं तो कुछ सिन्दूर से सनी हुई पाई गईं। इससे यह समझ आया कि लोगों को लगा कि मतपेटी पूजा करने की कोई वस्तु है जिस वजह से उन्होंने उस पर फूल और सिन्दूर चढ़ा दिया।
इतना ही नहीं, कई बक्सों में तो मतपत्रों के अलावा अलग-अलग तरह की वस्तुएं भी पाई गईं। जैसे- सफलता की कामना करने वाली चिट्ठी, हॉलीवुड सितारों की तस्वीरें, सिक्के, करेंसी नोट और बहुत कुछ।
हाहा! वैसे देखा जाए तो मतपेटी कामना पूरा करने वाली पेटी तो ज़रूर से है। अगर मतपत्र की गिनती करने के बाद देश के लिए चुना गया नेता जनता की इच्छाओं को पूरा करने का काम करता है तो, जिसके लिए उसे चुना भी गया है।
जहां तक बात रही, मतपेटी को पवित्र मानने की तो उस समय मतपत्र नया-नया आया था। लोगों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ऊपर से उसे इतना सुरक्षित करके रखा जाता था क्योंकि देश का भविष्य उससे जुड़ा हुआ था।
अगर आज के परिदृश्य को देखें तो मतपेटी जिसकी महत्वता पूरे देश के वर्तमान, भूतकाल व भविष्य से जुड़ी हुई है है, उसमें भी भ्रष्टाचार, मतपत्रों के साथ हेरा-फेरी इत्यादि देखने को मिलता आया है। शायद,इसे पवित्र ही रहने देना चाहिए था, इसे यही समझते हुए आना चाहिए था। शायद, तब देश बच जाता। जनता के मतपत्र जो उनकी कामनाओं को दर्शाते हैं,वह पूरे हो जातें, शायद!
तो यह थी पहली मतपेटी की कहानी….
(स्त्रोत – भारत चुनाव आयोग)
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’